राहुल गांधी 2 सीट से लड़ रहे चुनाव, कितनी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकता है एक उम्मीदवार?

नई दिल्ली: पिछली बार की तरह ही इस बार भी कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Congress MP Rahul Gandhi) दो सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. राहुल गांधी इस बार केरल की वायनाड और यूपी की रायबरेली सीट (Wayanad seat of Kerala and Rae Bareli seat of UP) से चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 में राहुल ने वायनाड और अमेठी से चुनाव लड़ा था. अमेठी से वो हार गए थे, जबकि वायनाड से उन्होंने चार लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीता था. इस बार के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी वो बड़ा नाम हैं, जो दो सीटों से खड़े हुए हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं. लोकसभा के साथ ही ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं. नवीन पटनायक ने हिंजली और कांटाबांजी सीट से नामांकन दायर किया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 23 उम्मीदवार ऐसे थे, जिन्होंने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था.

2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दो सीटों- वाराणसी (यूपी) और वड़ोदरा (गुजरात) से चुनाव लड़ा था. वो दोनों ही जगह जीत गए थे. इसके बाद वड़ोदरा सीट से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, सोनिया गांधी, मायावती जैसे तमाम बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं. 1957 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने यूपी की तीन सीटों- मथुरा, बलरामपुर और लखनऊ पर चुनाव लड़ा था. सिर्फ बलरामपुर में ही उनकी जीत हुई थी. 1962 में भी उन्होंने बलरामपुर और लखनऊ से चुनाव लड़ा. इसके बाद 1996 के चुनाव में वाजपेयी एक बार फिर दो सीट- गांधीनगर और लखनऊ से उम्मीदवार बने. 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली के अलावा मेडक (अब तेलंगाना) से भी चुनाव लड़ा था. इंदिरा दोनों जगह से जीतीं. बाद में उन्होंने मेडक सीट छोड़ दी थी.

लालकृष्ण आडवाणी ने भी 1991 का चुनाव गांधीनगर और नई दिल्ली सीट से लड़ा था. 1999 में सोनिया गांधी ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत भी दो सीटों से की थी. उस चुनाव में सोनिया गांधी ने कर्नाटक की बेल्लारी और यूपी की अमेठी सीट से चुनाव लड़ा था. वो दोनों ही जगह जीत गई थीं, जिसके बाद उन्होंने बेल्लारी से इस्तीफा दे दिया था. 1989 के चुनाव में पूर्व डिप्टी पीएम देवीलाल ने तीन अलग-अलग राज्यों की तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. उन्होंने हरियाणा की रोहतक, राजस्थान की सीकर और पंजाब की फिरोजपुर से चुनाव लड़ा था. इसमें से उन्हें रोहतक और सीकर में जीत मिली थी. 1991 के चुनाव में मायावती ने भी बिजनौर, बुलंदशहर और हरिद्वार से चुनाव लड़ा था और तीनों ही सीटों से हार गई थीं. 1971 में तो बीजू पटनायक ने चार विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा था.

1996 तक एक व्यक्ति कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ा सकता था. ऐसी कोई पाबंदी नहीं थी. तब तक सिर्फ इतना ही तय था कि एक व्यक्ति सिर्फ एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. 1996 में जनप्रतिनिधि कानून की धारा 33 में संशोधन किया गया. इससे तय हुआ कि एक व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा दो सीटों पर चुनाव लड़ सकता है. हालांकि, अब भी एक व्यक्ति एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. इसलिए दो सीटों पर जीतने के बाद व्यक्ति को एक सीट से इस्तीफा देना होता है.

जुलाई 2004 में चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधि कानून की धारा 33(7) में संशोधन की सिफारिश की थी. चुनाव आयोग ने सुझाव दिया था कि दोनों सीटें जीतने और एक से इस्तीफा देने की स्थिति में उपचुनाव का खर्च उम्मीदवार से ही वसूला जाए. चुनाव आयोग ने सिफारिश की थी कि अगर कोई उम्मीदवार दोनों सीटों से चुनाव जीत जाता है और एक सीट से इस्तीफा दे देता है, तो वहां होने उपचुनाव का खर्च भी उसे ही देना चाहिए. विधानसभा के उपचुनाव के लिए ये रकम 5 लाख रुपये और लोकसभा के उपचुनाव के लिए 10 लाख रुपये की सिफारिश थी.

2015 में लॉ कमीशन ने 255वीं रिपोर्ट में चुनाव आयोग के उस सुझाव पर सहमति जताई थी, जिसमें एक सीट से एक ही उम्मीदवार के चुनाव लड़ने की बात कही गई थी. इतना ही नहीं, दो साल पहले बीजेपी नेता और सीनियर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने जनप्रतिनिधि कानून की धारा 33(7) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. हालांकि, पिछले साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मसले पर कानून बनाने का काम संसद का है.

जब कोई उम्मीदवार दोनों सीट से चुनाव जीत जाता है तो उसे कानूनन एक सीट से इस्तीफा देना पड़ता है. नियमों के मुताबिक, खाली सीट पर छह महीने के भीतर उपचुनाव कराना जरूरी है. जब किसी सीट पर उपचुनाव होता है तो फिर से उतना ही खर्च होता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने लगभग पांच हजार करोड़ रुपये खर्च किए थे. यानी, एक सीट पर औसतन 9.20 करोड़ रुपये. अब उपचुनाव की स्थिति में फिर से लगभग इतना ही खर्च करना पड़ता है.

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