रूस-यूक्रेन युद्ध को दो साल पूरे, अर्थव्यवस्था हुई काफी प्रभावित, दुनिया को मिली ये सीख

नई दिल्‍ली (New Delhi) । रूस यूक्रेन युद्ध (russia ukraine war) को 24 फरवरी को दो साल पूरे हो गए हैं. इस युद्ध ने लाखों लोगों की जानें ली हैं और दुनियाभर की अर्थव्यवस्था को प्रभावित (economy affected) किया है. यूक्रेन में लाखों लोगों को बेघर भी होना पड़ा और शहर-के-शहर तबाह कर दिए गए. युद्ध तीसरे साल में प्रवेश कर गया है लेकिन युद्धविराम की कोई संभावना नजर नहीं आती. इस बीच अमेरिका (America) भी अपने हाथ खड़े करते नजर आया लेकिन यूक्रेन अब भी मदद की उम्मीद लगाए हुआ है. आइए इस रिपोर्ट में हम यही जानेंगे कि आत्मनिर्भरता कितना अहम है और निर्भरता कैसे संकट पैदा कर सकता है.

1. सैन्य ताकत: युद्ध में सबसे अहम होती है सैन्य ताकत. यूक्रेनी सेना के मैन पावर पांच लाख का है लेकिन इससे चार गुना बड़ी रूसी सेना के सामने वे दो साल से टिके हैं. तकनीकी रूप से मजबूत, लंबी दूरी और अत्याधुनिक हथियारों से लैस रूसी सेना दो साल में भी यूक्रेन को ‘निपटा’ पाने में विफल रही. यूक्रेनी सेना ने बड़ी ही सूझबूझ और अमेरिकी मदद से रूसी सेना का मजबूती के साथ मुकाबला किया है.

2. साइबर युद्ध: रूस को हैकिंग के मामले में महारत हासिल है और यूक्रेन युद्ध में उसने बखूबी इसका इस्तेमाल भी किया. यूक्रेन पर हमले के साथ ही रूस ने यूक्रेनी सरकार के कामकाज को लगभग ठप कर दिया था. रूसी हैकर्स ने हमले के तुरंत बाद यूक्रेन सरकार की तमाम अहम वेबसाइट पर साइबर हमले किए थे.

जमीनी युद्ध को आगे बढ़ाने में साइबर अटैक रूस के लिए मददगार साबित हुए. यूक्रेन भी पीछे नहीं रहा और उसने भी रूस को इसका जवाब दिया. साइबर स्पेस की मदद से युद्ध के मैदान में कनेक्टिविटी, सपोर्ट इंटेलिजेंस और सूचनाओं के आदान-प्रदान को इंटरसेप्ट करके अहम जानकारी इकट्ठा की जा सकती है, जिसका युद्ध में इस्तेमाल किया जा सकता है.

3. सेटेलाइट डेटा: सितंबर 2022 में यूक्रेन ने सार्वजनिक रूप से इकट्ठा किए गए फंड से रडार सेटेलाइड खरीदी जिससे सेना को बादलों के आर-पार देखने में मदद मिली और दुश्मन के ठिकानों को निशाना बनाना यूक्रेनी सेना के लिए आसान साबित हुआ. हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरों की मदद से यूक्रेनी सेना ने रूसी ठिकानों को सटीकता से अटैक किए.

4. मानवरहित हथियार: मानवरहित हथियार तो युद्ध की नई डार्लिंग मानी जाती है. मसलन, यूक्रेन ने हाल ही में एक अलग मिलिट्री यूनिट स्थापित की है, जहां से सिर्फ और सिर्फ ड्रोन ऑपरेट किया जाएगा. इनके अलावा इस यूनिट के हाथों में हवाई, समुद्री और जमीनी मानवरहित हथियारों के संचालन की भी जिम्मेदारी दी गई है, जो कि मानवरहित हथियारों की महत्वता को बढ़ाता है.

5. आत्मनिर्भरता: एनालिस्ट कहते हैं कि मिलिट्री इक्वीपमेंट के लिए अगर कोई देश किसी पर पूरी तरह या थोड़ा ही निर्भर है तो इससे उनके ग्राउंड ऑपरेशन को धक्का लग सकता है. यूक्रेन इस मामले में पूरी तरह से पश्चिमी देशों पर निर्भर है, और रूस का 30 फीसदी डिफेंस प्रोडक्शन विदेशी इक्वीपमेंट्स पर निर्भर है. मसलन, युद्ध से किसी भी देश को एक बड़ी सीख यही मिलती है कि मिलिट्री इक्वीपमेंट्स का प्रोडक्शन स्थानीय स्तर पर बढ़ाए और अन्य देशों पर निर्भरता कम करे.

6. OSINT का इस्तेमाल: मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो यूक्रेन ने बड़ी ही चतुराई से रूस का मुकाबला किया है. मसलन, यूक्रेनी सेना ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बड़ी संख्या में रूसी सैनिकों को ढेर किए. बताया जाता है कि रूसी सैनिकों के सल्फी और वीडियो का इस्तेमाल करके यूक्रेनी सेना ने ग्राउंड ऑपरेशन में अच्छी कामयाबी हासिल की. इसकी वजह से पुतिन प्रशासन ने युद्ध के मैदान में मोबाइल फोन को बैन कर दिया था.

7. भ्रष्टाचार: युद्ध के दरमियान हथियारों की बड़ी मात्रा में खरीद-फरोख्त की जाती है. इसमें भ्रष्टाचार भी देखा जाता है. यूक्रेन में मिलिट्री इक्वीपमेंट्स की खरीद-फरोख्त में बड़ी धांधली हुई है. इस युद्ध में दोनों ही देशों के मिलिट्री नेताओं पर भ्रष्टाचार और हथियारों की खरीद फरोख्त में अनियमितताएं बरतने के आरोप लगे. वागनेर चीफ येवगेनी प्रिगोझिन लगातार रूसी रक्षा विभाग पर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगा रहे थे. यूक्रेन को भी भ्रष्टाचार के जांच को लेकर मिलिट्री अधिकारियों के देश छोड़ने पर रोक लगानी पड़ी.

8. प्रतिबंधों की सीमाएं: युद्ध की शुरुआत के बाद पश्चिमी देशों ने जो सबसे पहले किया वो थे रूस पर प्रतिबंध लागू करना. अमेरिका से लेकर यूरोपीय यूनियन तक ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए, ताकि राष्ट्रपति पुतिन पर दबाव बनाया जा सके. हालांकि, फिर भी वे व्लादिमीर पुतिन को रोक पाने में विफल रहे और आज यह बात जहजाहिर है कि पश्चिमी और यूरोपीय प्रतिबंधों का रूस पर ज्यादा कुछ असर नहीं हुआ.

9. अपनी प्राथमिकताएं: रूस ने जब यूक्रेन पर हमले किए, तो पश्चिमी और यूरोपीय देशों में एक आत्ममुग्धता का भाव था, जिससे वे यह समझकर चल रहे थे कि पूरी दुनिया पुतिन पर दबाव बनाने में पश्चिम का साथ देंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मसलन, ग्लोबल साउथ, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका और अन्य देशों ने अपनी प्राथमिकताओं को अहम माना. पश्चिमी देशों को इससे बड़ा झटका लगा.

10. ऊर्जा सुरक्षा: रूस यूक्रेन युद्ध की वजह से 2022 में यूरोप में ऊर्जा संकट पैदा हुई. मसलन, शुरुआती दौर में देखा गया कि कई यूरोपीय देशों ने रूस पर दबाव बनाने के नजरिए से पश्चिमी खेमे में चले गए लेकिन तुरंत ही उन्हें ऊर्जा संकट ने घेर लिया. मसलन, जर्मनी जैसे देश रूस पर दबाव बनाने की दिशा में यूरोपीय देशों में आगे रहे. यूरोपीय देशों के रूसी एनर्जी पर निर्भरता ने यूरोपीय देशों को बड़ा झटका दिया. इस संकट ने दुनिया को यह सीख दी कि ऊर्जा या अन्य किसी ईंधन पर भी ज्यादा निर्भरता युद्ध के दौरान बड़ी समस्या पैदा कर सकती हैं.

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