आत्मनिर्भर भारत और बदलता कृषि परिदृश्य

– मुकुंद

देश आत्मनिर्भरता की डगर पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान ने ग्रामीण जनजीवन की दिशा और दशा बदल दी है। खेती-किसानी की बात की जाए तो मोदी सरकार की ‘एक जिला-एक उत्पाद (ओडीओपी)’ पहल ने कृषि परिदृश्य को बदल दिया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ इस पहल को आर्थिक तरक्की और सांस्कृतिक धरोहर के मधुर संगम के रूप में देख रहे हैं। पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने राज्यसभा सत्र-262, अतारांकित प्रश्न क्रमांक– 686, दिनांक-08 दिसंबर 2023 के आधार पर आत्मनिर्भर भारत के बदलते कृषि परिदृश्य पर कुछ उदाहरण देश के सामने रखे हैं।

गुजरती फरवरी की शुरुआत में इस पहल पर शब्द चित्र से याद दिलाया गया कि 2018 में साहसिक दृष्टिकोण के साथ बोया गया बीज आज अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ रहा है। यह पहल क्षेत्रीय आर्थिक विभाजन को पाटती हुई लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रही है। ओडीओपी का उद्देश्य एकल प्रतिष्ठित उत्पाद के माध्यम से प्रत्येक जिले की अनूठी शक्ति की पहचान कर उत्पादन क्षमता को बढ़ाना और स्थानीय समाज को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना है। आज यह पहल “वोकल फॉर लोकल” की खुशबू बिखेर रही है। कारीगर, किसान और उद्यमी सशक्त हो रहे हैं।

चार साल में यह बीज तेजी से विकास करते हुए कोमल पौधे से हरे-भरे बगीचे की शक्ल ले चुका है। पीआईबी के अनुसार, या यूं समझिए कि ओडीओपी के परिश्रम का फल अब पक गया है। इसका मधुर स्वाद संबंधित समाज को मिलने भी लगा है। इस पहल ने देशभर के 760 से अधिक जिलों के एक हजार से अधिक उत्पादों की पहचान की है। हथकरघा, सुगंधित मसालों और उत्कृष्ट हस्तशिल्प की एक जीवंत तस्वीर ‘पीएम-एकता मॉल’ में देखी जा सकती है। यह मॉल गुजरात के नर्मदा जिले के केवडिया में 182 मीटर ऊंची ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ के पास यस्थित है। इसे ‘हथकरघा और हस्तशिल्प में विविधता में एकता’ की थीम पर विकसित किया गया है। यह मॉल 35,000 वर्ग फुट क्षेत्र में फैला है।

‘एक जिला-एक उत्पाद ‘ की छत के नीचे बड़े बदलाव की उल्लेखनीय कहानियां सामने आई हैं। यह एकल प्रतिभा का आख्यान नहीं बल्कि आत्मनिर्भरता और परस्पर सहयोग की जादुई शक्ति के साथ आगे बढ़ रहे सामूहिक विकास का मंगलगान हैं। इस पहल का बड़ा असर यह है कि कश्मीर की बर्फीली हवाओं के बीच शोपियां का सेब विश्व तक पहुंचने की संभावनाओं से चमक रहा है। ओडीओपी का क्रांतिकारी स्पर्श, संबंधित जिलों और राज्यों को आर्थिक और आत्मनिर्भरता के धागों में पिरो रहा है। प्रधानमंत्री विकास पैकेज (पीएमडीपी), एसएमएएम और एमआईडीएच से उत्पादन बढ़ाने के सपने साकार हो रहे हैं। इसी के परिणाम स्वरूप उत्पादन में 20 प्रतिशत की शानदार वृद्धि हुई है।

हिमालय के मनभावन दृश्यों के बीच रचा-बसा उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला तो आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक परिवर्तनकारी शक्ति पर विशेष जोर दे रहा है। यहां गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों, स्थानीय प्रशासनिक कर्मचारियों और 700 से अधिक किसानों को 15 प्रशिक्षण सत्रों के माध्यम से जैविक खेती के लिए निपुण किया गया। एक हजार से अधिक लोगों को महत्वपूर्ण उपकरण भी प्रदान किए गए। इसके फलस्वरूप यहां पर लाल चावल का उत्पादन 25 फीसद बढ़ गया है। यह आत्मनिर्भर भारत की सफलता की कहानी न केवल उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को मजबूत करती है बल्कि टिकाऊ कृषि पद्धतियों के साथ इसके भविष्य को भी सुदृढ़ करती है।

इस पहल का ही नतीजा है कि आंध्र प्रदेश की अराकू घाटी में पैदा होने वाली कॉफी की मांग तेजी से बढ़ी है। अब यहां की कॉफी अपने स्वाद और सुगंध से मन मोह लेती है। लगभग डेढ़ लाख आदिवासी परिवारों की आजीविका इस उद्योग से जुड़ी है। कॉफी बोर्ड और एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी के साथ मिलकर मिलकर इस बेशकीमती पेय को उत्पादित कर रहे हैं। पारंपरिक तरीकों का सम्मान करते हुए उत्पादनकर्ताओं ने 20 फीसदी की जबरदस्त वृद्धि हासिल की है। गिरीजन को-ऑपरेटिव कॉरपोरेशन से मिले एक करोड़ रुपये से अधिक के ऋण ने भी उत्पादन की बढ़ोतरी में अहम भूमिका निभाई है। अराकू घाटी का यह पेय पदार्थ आत्मनिर्भर भारत का सामुदायिक गान है।

ओडिशा के कंधमाल जिले में उगने वाली सुगंधित हल्दी दूसरों के लिए आर्थिक विकास की प्रेरणा बन गई है। इस प्रगति ने आदिवासियों में आत्मविश्वास को बढ़ाया है और कंधमाल को आत्मनिर्भर भारत की ओर अग्रसर किया है। पंजाब के बठिंडा में उच्च गुणवत्ता वाला शहद उत्पादन भी मील का पत्थर साबित हो रहा है। सरकार की इस पहल से बठिंडा को नई पहचान मिली है। सरकारी प्रयासों से शहद उत्पादन में 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। और मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के अच्छी गुणवत्ता वाले केले मध्य भारत के दिल में बसी मीठी सफलता की कहानी बयां कर रहे हैं। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 सहित वैश्विक आयोजनों में इस उत्पाद की भागीदारी ने बुरहानपुर की आर्थिक झलक को प्रदर्शित किया है। कभी इन जिलों के उत्पाद स्थानीय बाजारों तक सीमित थे। आज दुनिया भर के बाजारों को लुभा रहे हैं।

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