मंच से लंच तक शिवराज का ही रहा दबदबा…

  • अग्निबाण पोस्टमार्टम… दोनों बड़े आयोजनों से राजनीतिक माइलेज भी भरपूर पा गए मामा, मोदी का भी मिला वरदहस्त, अध्यक्ष सहित तमाम चर्चित चेहरे तरसते रह गए मौका पाने को
  • मंत्रियों के साथ विरोधी भी लगाए ठिकाने…प्रदेश अध्यक्ष तक को नजरअंदाज किया… दिल्ली दरबार में भी अंक बढ़े

इंदौर, राजेश ज्वेल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रशासनिक क्षमता के साथ-साथ राजनीतिक कलाबाजी में भी पारंगत हो गए हैं। जब भी लगता है कि उनकी स्थिति थोड़ी कमजोर हुई, तो वे कोई ना कोई अचूक दांव चलकर मजमा लूट लेते हैं। इस बार प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के साथ-साथ ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट जैसे दो बड़े आयोजन हुए और उसमें मुख्यमंत्री ने पूरी तरह से अपना दबदबा कायम रखा। मंच से लंच तक कोई भी उनके इर्द-गिर्द नहीं फटक पाया। काबिना मंत्रियों से लेकर तमाम विरोधी ठिकाने लग गए और मौका पाने के प्रयास में तरसते रह गए। इस दौरान भरपूर राजनीतिक माइलेज भी मामाजी ने पा लिया और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वरदहस्त भी उन्हें अब हासिल हो गया लगता है, क्योंकि जिस तरह सम्मेलन में उन्होंने प्रशंसा की, वहीं समिट के वर्चुअल उद्घाटन को भी तैयार हो गए।

सबसे लम्बे समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज शिवराज सिंह ने पूर्व के सारे घाघ राजनीतिज्ञों को भी पीछे छोड़ दिया है। वरना एक जमाने में स्वर्गीय अर्जुन सिंह को प्रदेश की राजनीति में सबसे चतुर खिलाड़ी माना जाता था और उसके बाद दिग्गी राजा का नाम लिया जाने लगा, लेकिन मामाजी ने सभी खुर्राट राजनीतिज्ञों को पीछे छोड़ दिया और जिसने भी थोड़ा विरोध किया, वो कब कहां ठिकाने लग गया, उसे भी पता नहीं चल सका। अभी जो आयोजन इंदौर में हुए, उसमें भी शिवराज सिंह ने साबित कर दिया कि उनकी रणनीति के आगे किसी की कोई चाल नहीं चल सकती। गुजरात चुनाव में अपनाए गए मॉडल और उसके बाद लगातार राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम रही कि अब मध्यप्रदेश में भी नेतृत्व परिवर्तन जल्द होने जा रहा है, लेकिन जब-जब ऐसी स्थिति पूर्व में भी बनी, तब मामाजी ने अपने तरकस से कोई ना कोई अभेद्य तीर छोडक़र इस तरह की सारी अटकलों को धराशायी कर दिया।

अभी भी हालांकि अटकलें जारी हैं और बिल्ली के भाग से छींका टूटने के चलते मिलने वाले बड़े लाभ पर कइयों की निगाहें टिकी हैं। हालांकि पूर्व में भी इंदौर में 6 बार इन्वेस्टर्स समिट आयोजित हो चुकी है, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों-मंत्रियों से लेकर स्थानीय विधायकों को अच्छी-खासी तवज्जो मिलती रही है। मगर इस बार इन दोनों बड़े आयोजनों में किसी को कोई मौका नहीं मिल सका। नरोत्तम मिश्रा भी एक दिन नजर आए, उसके बाद वे भोपाल जाकर बैठ गए, तो नगरीय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह का नाम उनकी विभागीय चर्चा के दौरान लिया गया, मगर वे आयोजन स्थल पर ही नहीं दिखे। चूंकि उद्योग विभाग राजवर्धन दत्तीगांव के पास है, उन्हीं की मौजूदगी नजर आइ, वहीं केन्द्रीय मंत्री अवश्य मंच पर जगह पा सके और वो भी वही, जिन्हें मुख्यमंत्री ने न्योता देकर बुलाया। यहां तक कि प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा पहले दिन अम्बर गार्डन में नजर आए और उसके बाद वे आयोजन स्थल पर किसी मंच या लंच में नहीं दिखे। सांसद शंकर लालवानी अवश्य आयोजन में नजर आए, लेकिन अन्य कोई भी इंदौरी नेता फटक नहीं पाया। मोदीजी की मौजूदगी वाले दिन अवश्य प्रवासियों के हॉल में प्रवेश को लेकर अप्रिय स्थिति बनी और सोशल मीडिया पर उनके वीडियो जमकर वायरल भी हुए। नतीजतन मुख्यमंत्री को दो मर्तबा हाथ जोडक़र माफी भी मांगना पड़ी। मगर जो नुकसान होना था, वो तो हो ही गया। कुछ जानकारों का मानना है कि इस मामले में भी कोई ना कोई कार्रवाई और गाज अवश्य आने वाले दिनों में गिर सकती है। बहरहाल, इस पूरे आयोजन के जरिए मामाजी ने भरपूर राजनीतिक माइलेज हासिल करने के साथ-साथ मोदीजी का वरदहस्त भी फिलहाल तो प्राप्त कर लिया है। अब देखना यह है कि दिल्ली दरबार इसका पुरस्कार किस रूप में आने वाले समय में देता है।

भोपाली-इंदौरी अफसरों के हाथों में ही रही पूरी कमान
प्रवासी सम्मेलन का आयोजन चूंकि केन्द्रीय विदेश मंत्रालय के मार्गदर्शन में हुआ और मंत्री सहित दिल्ली के आला अधिकारियों ने भी डेरा डाला, वहीं अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान को प्रवासी सम्मेलन की बागडोर सौंपी गई और उनके साथ एमपीएसआईडीसी के एमडी मनीष सिंह और निगमायुक्त प्रतिभा पाल को भी जिम्मेदारी दी गई, वहीं संभागायुक्त डॉ. पवन कुमार शर्मा, पुलिस कमिश्नर हरिनारायणचारी मिश्र, कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी सहित अन्य भोपाली और इंदौरी अफसरों के हाथों में ही दोनों आयोजनों की कमान रही, जिसमें राजनीतिक रूप से कहीं कोई हस्तक्षेप नहीं करने दिया और सीधे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान मॉनिटरिंग करते रहे और फिर आयोजन के दौरान भी 6 दिन इंदौर में ही डटे रहे। सबसे ज्यादा प्रशंसा निगमायुक्त प्रतिभा पाल की हुई, जिन्होंने रात-दिन मेहनत कर शहर को सजाया-संवारा और आयोजन स्थल पर भी पूरी जिम्मेदारी निभाई, वहीं एमडी मनीष सिंह ने भी कम समय में सम्मेलन के साथ-साथ समिट को भी सफल बना दिया। नतीजतन रिकार्ड तोड निवेश प्रस्ताव आ गए।

विधायकों की भी पूछ-परख नहीं…
हर तरह के शासकीय से लेकर तमाम राजनीतिक आयोजनों में इंदौरी नेता मंच सहित मुख्य भूमिका में नजर आते रहे हैं। प्राधिकरण अध्यक्ष जयपालसिंह चावड़ा ने अवश्य पधारो म्हारे घर अभियान के जरिए सुर्खियां बटोरी और उन्हें मुख्यमंत्री की शाबाशी भी मिल गई। दरअसल यह नवाचार इंदौर में ही हुआ और इसका जिम्मा प्राधिकरण को सौंपा गया। अध्यक्ष चावड़ा अधिकारियों की टीम लेकर पूरी तरह से जुट गए और शुरू से लेकर आखरी तक तमाम तरह के कई आयोजन भी कर डाले । दूसरी तरफ़ सारे विधायक एक तरह से हाशिए पर ही इन आयोजनों में रहे। हालांकि महापौर पुष्यमित्र भार्गव को शहर के प्रथम नागरिक के रूप में मंच से लेकर अतिविशिष्टों के बीच जगह मिलना थी, मगर राजनीतिक दांव-पेंच के शिकार भार्गव इस सम्मान से वंचित रह गए, जबकि निगम ने आयोजन को सफल बनाने में जी-तोड़ मेहनत की थी और उसमें भी महापौर की भूमिका अग्रणी थी, लेकिन अधिकारियों की नासमझी के चलते शहर के प्रथम नागरिक को जो स्थान मिलना था, वह नहीं मिल सका, जिसे लेकर नाराजगी नजर आई।

सिर्फ एक डिनर का दिया न्योता… उसमें भी आई भीड़ के बाद किया तौबा
मुख्यमंत्री ने प्रवासियों के सम्मान में पहले दिन जो डिनर दिया था, उसमें स्थानीय नेताओं को बुलाया, जिसके चलते महापौर, परिषद् सदस्यों से लेकर कुछ पार्षद, कार्यकर्ता भी वाहनों में भरकर पहुंच गए और इस भीड़ को देखकर मुख्यमंत्री को समझ में आ गया कि अब अगले लंच या डिनर में किसी को नहीं बुलाना है। नतीजतन बाद के आयोजनों में इन स्थानीय नेताओं से तौबा कर ली गई और कोई भी अपनी झांकीबाजी नहीं जमा सका।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी सारी कुर्सियां हटाईं… बाद में सिर्फ एक ही लगाई
पांच दिवसीय आयोजन के अंतिम दिन मुख्यमंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें समिट की उपलब्धियों का ब्योरा दिया, मगर प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू होने से पहले कई कुर्सियां लगी थीं, लेकिन बाद में सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडक़र अन्य कुर्सियां हटा दी गईं, लेकिन जब मुख्यमंत्री आए तो उन्होंने उद्योगमंत्री दत्तीगांव को भी अपने साथ बुला लिया। लिहाज़ा ताबड़तोड़ दूसरी कुर्सी मंत्री के लिए लगाई गई। वैसे अफसरों ने सिर्फ मुख्यमंत्री पर ही पूरा फोकस किया।

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