जम्मू-कश्मीर में शांति का सूर्योदय

– मृत्युंजय दीक्षित

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाए जाने के कल (शनिवार) चार वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। राष्ट्र इसके महत्वपूर्ण परिणाम की व्यापक अनुभूति कर रहा है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां शांति और विकास का एक नया युग प्रारम्भ हुआ है। श्रीनगर में जी -20 की बैठकें बहुत ही शांत व सुरम्य वातावरण में संपन्न हुई हैं। चीन और पाकिस्तान ने जी -20 की बैठकों में खलल डालने का हर संभव प्रयास किया किंतु वह नाकाम रहे। स्वतंत्रता के बाद श्रीनगर में पहली बार कोई अंतरराष्ट्रीय आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यह जम्मू-कश्मीर ही नहीं संपूर्ण भारत के लिए गर्व के पल रहे।

जम्मू-कश्मीर में पर्यटन उड़ान भर रहा है। उत्तरी कश्मीर का बांदीपोर जिला पर्यटन के नए केंद्र के रूप में पहचान बना रहा है। यहां वुलर झील के किनारे स्थित जुरीगंज हो या फिर गुलाम कश्मीर और जम्मू-कश्मीर को अलग करने वाली नियंत्रण रेखा से सटा गुरेज, पूरे जिले में पर्व जैसा वातावरण है। एक समय इस जिले के जंगलों में आतंकियों ने प्रशिक्षण केंद्र खोल रखे थे और वह हथियारबंद होकर जिले में टहला करते थे। अब वहां पर्यटकों के शिविर लगे हैं। श्रीनगर की डल झील में शिकारे वापस आ गए हैं । जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों की घंटियों और आरती के स्वरों से वातावरण पवित्र हो रहा है। 75 वर्षों के सतत उत्पीड़न के पश्चात कश्मीर में हिंदू पर्व फिर मनाए जाने के प्रयास हो रहे हैं। श्रीनगर घाटी में दशहरा धूमधाम से मनाया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर में सिनेमाघर खुल चुके हैं और फिल्मों की शूटिंग होने लगी है।

स्कूलों में रौनकः जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद व अलगावाद के कारण 2008 से 2021 तक (इसमें 20-21 का कोविड काल भी है) के लंबे कालखंड में स्कूल-कालेज प्रायः बंद रहे किंतु अब बच्चों के चेहरों पर मुस्कान वापस आ गई है । एक समय वह भी था जब आतंकवादियों के खौफ से स्कूलों में सन्नाटा होता था। जम्मू-कश्मीर का युवा पत्थर और हथियार छोड़ कर विकास की गंगा के साथ खड़ा हो रहा है। वह फुटबाल, क्रिकेट, हाकी और कुश्ती के दांवपेंच सीख रहा है। अनुच्छेद -370 समाप्त होने के बाद यहां पंचायत चुनाव शांतिपूर्वक और बिना किसी भेदभाव के साथ संपन्न हुए हैं। बदले परिवेश में निवेशक भी यहां निवेश करने के लिए आकर्षित हो रहे हैं।

आतंकवाद पर नियंत्रणः कठोर रुख के कारण आतंक समर्थक इको सिस्टम नियत्रिंत ही नहीं अपितु कई जिलों में पूरी तरह समाप्त हो चुका है। इसका पता इसी से चलता है कि 2018 में आतंकियों की भर्ती 199 से गिरकर 2023 में 12 रह गई है। 2018 में बंद व हड़ताल की 53 घटनाएं हुई थीं जो 2023 में अब तक शून्य हैं। 2018 में संगठित पत्थरबाजी की कुल घटनाएं 1,769 हुई थीं जो 2023 में अभी तक शून्य हैं। जम्मू-कश्मीर में इस वर्ष 27 से अधिक आतंकी मारे जा चुके हैं। अब केवल बचे-खुचे लोगों की एक भड़ास है जो कभी -कभी फूटती रहती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को अनुच्छेद-370 और 35-ए को समाप्त करने पर जम्मू-कश्मीर के परिवारवादी, स्वार्थवादी, अलगाववादी राजनेता जनसभाओं में चेतावनी देते थे कि अगर ऐसा हुआ तो घाटी में कोई तिरंगा फहराने वाला नहीं मिलेगा। आज वह सभी हतप्रभ हैं। अलगावावादी नेताओं, पत्थरबाजों तथा दो -तीन परिवारवादी नेताओं की कश्मीर की धरती से जड़ें हिल गई हैं। जम्मू-कश्मीर में खून की नदियां बहाने की धमकी देने वाले लोगों की आंखें फटी की फटी रह गई हैं। आज पूरे जम्मू-कश्मीर में तिरंगा फहराया जा रहा है। जम्मू ही नहीं अपितु पूरी घाटी में प्रधानमंत्री के हर घर तिरंगा अभियान के अंतर्गत हर घर में तिरंगा फहराया गया। पूरी घाटी उत्सव में डूबी रही। पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग सहित कश्मीर घाटी के सभी आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जाने लगा है। वहां के नागरिक हाथों में तिरंगा लेकर वंदेमातरम् के नारों के साथ झूमने लगे हैं।

मगर कश्मीर की इस शांति को भंग करने के लिए पाकिस्तान व उसके पाले हुए आतंकवादी तथा अलगाववादी नेता पूरा जोर लगा रहे हैं। ऐसे लोग दिन-रात बेनकाब हो रहे हैं । यही नहीं भारत सरकार की कुशल रणनीति के कारण आज पाकिस्तान वैश्विक मंचों पर अलग-थलग पड़ चुका है। ऐसे पावन अवसर पर हमें अभी भी घर के अंदर के बैठे राष्ट्रविरोधी तत्वों से सावधान रहने की जरूरत है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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