नोटा को अधिक वोट मिलने पर फिर से चुनाव कराने के संबंध में SC ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब

नई दिल्‍ली (New Delhi) । गुजरात (Gujarat) के सूरत लोकसभा सीट (Surat Lok Sabha seat) पर निर्विरोध चुनाव जीतने जैसी स्थिति से बचने के लिए नोटा को भी एक काल्पनिक उम्मीदवार का दर्जा देने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में उन संसदीय सीटों पर दोबारा ‌चुनाव कराने के लिए कानून बनाने का आदेश देने की मांग की गई है, जहां नोटा को सर्वाधिक वोट मिले।

यह याचिका प्रेरक वक्ता व लेखक शिव खेड़ा की ओर से दाखिल की गई है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाल और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि हम इस याचिका पर सुनवाई करेंगे, इसलिए केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा है कि यह चुनाव प्रक्रिया के बारे में भी है, देखते हैं निर्वाचन आयोग क्या जवाब देता है।

शिव खेड़ा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने पीठ को सूरत लोकसभा चुनाव की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सूरत में चूंकि कोई अन्य उम्मीदवार नहीं था, इसलिए सभी को केवल एक ही उम्मीदवार के लिए जाना पड़ा। वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायण ने पीठ से कहा कि यदि नोटा को भी उम्मीदवार का दर्जा दिया जाता है तो किसी भी चुनाव में सूरत जैसी स्थिति से बचा जा सकता है। याचिका में नोटा से कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को पांच साल की अवधि के लिए सभी चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का भी आदेश देने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका पर पारित फैसले के बाद नवंबर 2013 में निर्वाचन आयोग और विभिन्न राज्य निर्वाचन आयोगों ने केंद्रीय स्तर और साथ ही स्थानीय निकाय चुनावों में ईवीएमएस में उपरोक्त में से कोई नहीं (नोटा) विकल्प पेश किया था।

कई राज्यों में किए गए हैं बदलाव
याचिका में कहा गया है कि नोटा के रूप में सबसे बड़ा बदलाव महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और पुडुचेरी में देखा गया। संबंधित राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) ने घोषणा की कि यदि नोटा किसी भी चुनाव में विजेता के रूप में उभरा, तो अनिवार्य रूप से पुनर्मतदान होगा। नोटा के प्रावधान को लागू किए जाने के बाद से चुनावी प्रणाली में यह पहला महत्वपूर्ण बदलाव था। याचिका में कहा कि संबंधित राज्य चुनाव आयोगों द्वारा जारी अधिसूचना में नोटा को एक काल्पनिक उम्मीदवार माना गया है और इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि नोटा को सबसे अधिक वोट मिलता है, तो दूसरे सबसे बड़े उम्मीदवार को विजेता घोषित करना नोटा के अंतर्निहित सिद्धांत और उद्देश्य का उल्लंघन होगा।

नोटा लागू करने का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ
याचिकाकर्ता ने कहा है कि 2013 के बाद से नोटा लागू किए जाने के बाद भी वह उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है, जो होना चाहिए था। याचिकाकर्ता ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का नोटा लागू करने का मकसद यह था कि नोटा से चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ेगी, लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि यह हासिल हो सका है। याचिका में कहा गया है कि ऐसा केवल तभी किया जा सकता है जब चुनाव आयोग, राज्य और केंद्र महाराष्ट्र, दिल्ली, पुडुचेरी और हरियाणा की तरह नोटा को भी अधिकार दे। याचिका में यह भी है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में नोटा का विकल्प हमारी चुनावी प्रणाली में मतदाता के पास मौजूद ‘अस्वीकार करने के अधिकार’ का परिणाम है और भारत से पहले 13 अन्य देशों ने नकारात्मक मतदान या अस्वीकार करने का अधिकार अपनाया था।

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