मातृभाषा में शिक्षा और औपनिवेशिकता की चुनौती

– गिरीश्वर मिश्र भारत की भाषिक विविधता का अद्भुत विस्तार और उसका सहज स्वीकार प्राचीन काल से इस देश में सामाजिक बर्ताव का अहम हिस्सा रहा है। अथर्ववेद में यह सन्दर्भ मिलता है कि यह धरती अनेक भाषाओं को बोलने वालों और धर्मों का अनुगमन करने वालों का भरण-पोषण करती है। भाषाओं की विविधता के … Read more