भाग्य का खेल..दिव्या को छोडऩी पड़ी उम्मीदवारी

  • बीमारी की हालात में संतोष गहलोत को घर बैठे मिला मौका
  • अब आ रहा अध्यादेश-21 उम्र वाला पार्षद भी बन सकेगा अध्यक्ष

नागदा (प्रफुल्ल शुक्ला)। कहते हैं कि यदि भाग्य साथ ना दे तो मुँह के सामने रखी भोजन की थाली के बावजूद भी खाना नसीब नहीं होता है। ऐसा की कुछ पूर्व विधायक जितेंद्र गेहलोत की बहू दिव्या दैवेंद्र गेहलोत के साथ हुआ। नागदा नगर पालिका अध्यक्ष पद एससी वर्ग की महिला के लिए आरक्षित है। इसी के चलते लम्बे राजनैतिक अनुभव वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं वर्तमान राज्यपाल थावरचंद गेहलोत परिवार की बहूँ दिव्या को वार्ड क्रमांक 3 से भाजपा उम्मीदवार बना कर स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि जीत एवं बहुमत की स्थिति में यही नपा अध्यक्ष बनेगी। सब कुछ ठीक चल रहा थाकि की भाग्य ने अपना खेल खेला और अध्यक्ष के 25 वर्ष उम्र होने का नियम सामने आ गया। इसी नियम की बाध्यता के चलते दिव्या गेहलोत ने नामांकन पत्र दाखिल नहीं किया और भाग्यशाली संतोष ओमप्रकाश गेहलोत को बीमारी के बावजूद घर बैठे उम्मीदवारी के साथ अध्यक्ष बनने का मौका भी मिल गया।

सुधार तो होना ही था
सरकार अब अध्यक्ष पद के लिए उम्र में बदलाव का अध्यादेश लाने जा रही है जिसकी सम्भावना अग्निबाण ने पहले ही जता दी थी। खबर में स्पष्ट किया था की पार्षद चुने जाने के लिए जब 21 वर्ष निर्धारित है और पार्षदों मेसे ही अध्यक्ष चुनने के लिए 25 वर्ष की बाध्यता तर्क संगत नहीं है। इसे लेकर पार्षद अधिकारों के हनन के आधार पर आपत्ति लगा सकते थे। चूकी उक्त नियम तब के थे जब अध्यक्ष सीधे जनता द्वारा चुना जाता था जबकि इस बार अध्यक्ष का निर्वाचन अप्रत्यक्ष प्रणाली से होने जा रहा है। सम्भवत: सरकार ने इस बाध्यता को समझते हुवे अध्यक्ष पद के उम्र के बंधन को हटाने के लिए अध्यादेश लाने जा रही है। इस सुधार के बाद 21वर्ष तक मतलब कोई भी पार्षद आरक्षण के आधार पर अध्यक्ष बन सकता है।

भाग्य का खेल
जिस उम्र की बाधा के कारण दिव्या दैवेंद्र गेहलोत को उम्मीदवारी त्यागना पड़ी वही बाध्यता अब ख़त्म होने जा रही है।यदि दिव्या मैदान में होती तो जीत और भाजपा बोर्ड बनने पर 23 वर्ष उम्र होने पर भी अध्यक्ष बन जाती। वहीं दूसरी ओर भाग्य के चलते संतोष ओमप्रकाश गेहलोत को अंतिम समय में बीमारी के बाद भी भाजपा का प्रत्याशी और अध्यक्ष बनने तक के द्वार खुल गए। इसीलिए तो कहते है भाग्य में ना हो तो सब कुछ अनुकूल होने पर भी मंजिल नहीं मिलती।

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