बढ़ती आत्महत्याओं पर शहर के लोगों ने दी अपनी-अपनी प्रतिक्रिया

विदिशा। शहर और जिले में पिछले कुछ समय से खासतौर पर कोरोना के बाद से सामाजिक जीवन में अस्थिरता आ गई है। लोग एकांकी पन के चलते आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा रहे हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे मामलों को जिम्मेदार बताकर लोग अपनी ईहलीला समाप्त कर रहे हैं। सिर्फ जिला अस्पताल के आंकड़ों को उठाकर देखा जाए तो यहां एक साल के दौरान फांसी और जहर खाने की वजह से आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा साढ़े 300 को पार कर गया है। जिनमें 70 पुरूष और महिलाओं ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है तो वहीं जहर खाकर 215 पुरूषों और 172 महिलाओं ने अपना जीवन समाप्त किया है। यह विषय दो प्रमुख घटनाओं के घटने के बाद सामने आया है। जिसमें 26 जनवरी को पूर्व पार्षद संजीव मिश्रा, उनकी पत्नि नीलम और दो मासूम बच्चों द्वारा सामूहिक जहर खाकर आत्महत्या की घटना घटी थी। इसके महज 8 दिन के भीतर बड़े बाजार क्षेत्र में रहने वाले सुरेश शर्मा और उनकी पत्नि प्रेमलता शर्मा ने जहरीला पदार्थ खाकर अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला किया था। जिसमें सुरेश शर्मा का दुखद देहांत भी हो चुका है। वहीं प्रेमलता शर्मा जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष कर रही हैं। खास बात यह है कि इन दो घटनाओं के बीच 8 दिन के दौरान विदिशा शहर में ही 6 और व्यक्तियों द्वारा जहर खाकर आत्महत्या का प्रयास किया जा चुका है। इन घटनाओं से पूरा शहर स्तंब्ध है। इसे लेकर शहर के सामाजिक, धार्मिक, बुद्धिजीवी वर्ग, अधिकारी-कर्मचारी, युवा अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। जिनमें कई कारण निकलकर सामने आए हैं।

  • सिर्फ 5 मिनिट खुद को दें टल सकती है आत्महत्या : डा. गुप्ता
    जिला अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. प्रदीप गुप्ता बताते हैं ऐसी परिस्थिति में यदि इंसान आत्महत्या का मन बनाता है तो उसके पहले वह सिर्फ पांच मिनिट खुद को दे, जिसमें वह यह सोचे कि वह यह कदम क्यों उठा रहा है और उसके जाने के बाद उसके पीछे परिवार की क्या स्थिति होगी तो शायद वह अपने इस फैसले को बदल सकता है। वहीं उन्होंने कहा कि एकल परिवार में लोग ज्यादा रहना पसंद करते हैं। कहीं न कहीं यह भी एक बड़ी वजह आत्महत्या को जन्म देती है। मानसिक दबाव, आपसी विवाद और अन्य परेशानियों का आसान रास्ता आत्महत्या के रूप में सामने नजर आता है।
  • ईश्वर पर आस्था कम हुई है:देवेश आर्य
    समाजसेवी देवेश आर्य का कहना है कि नकारात्मक विचार इसके पीछे बड़ी वजह है। ईश्वर पर आस्था और विश्वास लोगों का कम हुआ है। ऐसे में जब अपने निर्णय लोग ईश्वर पर छोडऩे की बजाय खुद निर्णय लेने लगते हैं तो उनके लिए आत्महत्या जैसा कदम सबसे आसान नजर आता है। वह संघर्ष करना भूल चुका है। हमें नकारात्मकता से संघर्ष कर सकारात्मकता की ओर ईश्वर की आस्था के साथ जाना चाहिए।
  • मिलना-जुलना हुआ कम:विजय चतुर्वेदी
    रिटा. प्रधानाध्यापक विजय चतुर्वेदी का मानना है कि पहले कुछ युवाओं द्वारा आत्महत्या करने की यदा-कदा खबरें आती थीं। समय के साथ अब अनुभवी और उम्रदराज लोग भी हताशा के भंवर में फंसकर यह कदम उठाने लगे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा सामाजिक संबंध हम भूल चुके हैं। पहले समाज स्तर पर गोष्ठियां, मिलन समारोह, संयुक्त परिवार हुआ करते थे। अब लोग एकांकी जीवन जीते हैं, मिलना-जुलना नहीं होता।
  • आत्महत्या बड़ा पाप है:कमलेश सूर्यवंशी
    कई अनुभवी और बुजुर्गों के अलावा युवा पीढ़ी भी इस विषय पर खुलकर इसे गलत बताते हैं। भाजपा के युवा नेता कमलेश सूर्यवंशी बताते हैं कि आत्महत्या जैसा कदम एक महापाप है। सबको साथ मिलकर अपनी समस्याएं हल करनी चाहिए। यह कदम उठाना गलत है।
  • दोस्तों की कमी : मनीष गौतम
    समाजसेवी और व्यवसायी मनीष गौतम का मानना है कि ईश्वर पर आस्था और विश्वास कम होने के साथ-साथ वास्तविक दोस्तों की कमी हो गई है। लोग अकेलेपन में अपने आपमें घुटते हैं, उसक नतीजा आत्महत्या के रूप में सामने आता है।
  • किसी का गम कम नहीं : कमल रैकवार
    पत्रकार और सामाजिक सरोकार से जुड़े व्यक्ति कमल रैकवार का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में परेशानी का दौर एक बार जरूर आता है। उस दौर में यदि व्यक्ति एकांकीपन में जाएगा तब ऐसे ही विपरीत परिणाम सामने आएंगे। ऐसी स्थिति आने पर एकांकीपन से बाहर आकर सामाजिक बनें, दोस्तों का साथ लें और संघर्ष करें।

सांत्वना और साथ दें:एएसपी
एएसपी समीर यादव बताते हैं कि यह स्थिति विदिशा नगर की ही नहीं बल्कि जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों की है। जिलेभर में यह आंकड़े विदिशा के आंकड़ों से कई गुना हैं। यह चिंतनीय विषय है। सामाजिक रूप से हमें इस पर ध्यान देना होगा। हम अपने आसपास समस्या ग्रस्त किसी व्यक्ति को देखें तो उसे मिले, समझाइश दें समस्या भले हल न कर सकें लेकिन उन्हें यदि सांत्वना भी दे सकें तो शायद उसके इस घातक कदम को हम रोक सकते हैं। उन्होंने कहा कि मैं सभी लोगों से अपील करता हूं कि अपने आसपास ऐसे व्यक्ति को समस्या ग्रस्त देखें तो उसे समझाने का प्रयास करें। सामाजिक जीवन में उसे लाएं और आवश्यकता पडऩे पर पुलिस की मदद भी ली जा सकती है। अधीरता की कमी आज के दौर में लोगों को हो गई है।

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