प्रिंसेस इस्टेट में किसानों को कब्जा दिलवाने पहुंचे अमले को भूखंड पीडि़तों ने हंगामा कर उल्टे पांव लौटाया

  • पटवारी और तहसीलदार से सांठगांठ कर हुए बड़े जमीनी खेल…मनमर्जी से बना डाली फिल्ड बुक
  • मौके पर पहुंचे एसडीएम ने कॉलोनाइजर सहित पीडि़तों से मांगे दस्तावेज

इंदौर। तमाम सख्त कार्रवाइयों के बावजूद इंदौरी भूमाफियाओं के हौंसले पस्त नहीं हुए, बल्कि सख्ती में ढील मिलते ही फिर नए सिरे से जमीनी खेल में जुट जाते हैं। 25 साल पहले लसूडिय़ामोरी एमआर-11 पर फार्म हाउस के नाम पर काटी कॉलोनी प्रिंसेस इस्टेट का विवाद भी पुराना है। अभी पिछले दिनों ही भूखंड पीडि़तों ने कलेक्टर आशीष सिंह से मुलाकात कर जमीनों पर हुए कब्जे, चतुर्थ सीमा की बजाय मनमर्जी से फील्ड बुक बनाने सहित कई अन्य गड़बडिय़ों की जानकारी दी थी।

प्रिंसेस इस्टेट संघर्ष समिति के अध्यक्ष वीरेन्द्र पांधरीवाल और सचिव अनिलकुमार शर्मा का स्पष्ट कहना है कि कॉलोनाइजर अरुण डागरिया और महेन्द्र जैन ने ये फर्जीवाड़े किए और 40 से अधिक पीडि़तों की रजिस्ट्रियां नहीं की और ना कब्जे दिए, उलटा कई डबल रजिस्ट्रियां कर दीं। अभी निगम में प्रिंसेस इस्टेट को वैध करने की प्रक्रिया भी चल रही है, वहीं दूसरी तरफ राजस्व अमले, खासकर तहसीलदार और पटवारी ने भूमाफिया के साथ सांठगांठ कर फर्जी दस्तावेज तैयार किए और सर्वे नम्बर 270/1/5 की जमीन के स्थान पर फिल्ड बुक में सर्वे नम्बर 270/2 की 1.303 हेक्टेयर जमीन शामिल कर दे डाली। मुद्दा यह है कि किसी भी जमीन की चतुर्थ सीमा के हिसाब से ही फील्ड बुक बनती है। मगर राजस्व अमले ने किसान और अन्य जमीनी जादूगरों से मिलकर मनमर्जी से फील्ड बुक बना दी और उसके आधार पर कल बुलडोजर लेकर प्रशासनिक अमले की सहायता से कब्जे दिलवाने भी पहुंच गए। जब इसकी भनक पीडि़तों को पड़ी तो वे मौके पर इक_ा हुए और जोरदार हंगामा मचाया, जिसके चलते एसडीएम घनश्याम धनगर को मौके पर पहुंचना पड़ा।

श्री धनगर ने बताया कि फिलहाल कब्जे की कार्रवाई रूकवा दी है और भूखंड पीडि़तों के साथ-साथ कालोनाइजर से भी कहा गया है कि वे अपने दस्तावेज सौंपे, वहीं इस मामले में जांच कमेटी भी गठित की हुई है। उल्लेखनीय है कि प्रिंसेस इस्टेट घोटाले की जांच बीते कई सालों से चल रही है और पूर्व में जो गृह निर्माण संस्थाओं के खिलाफ अभियान चला था तब भी प्रशासन ने कालोनाइजरों को नोटिस देकर उनसे लिखित में बयान भी दर्ज करवाए थे, जिसमें डागरिया और जैन ने प्रशासन को यह भरोसा दिलाया था कि सभी की रजिस्ट्रियां दो माह में करवा देंगे। मगर जैसे ही अभियान ठंडा पड़ा कालोनाइजर ने रजिस्ट्रियां नहीं करवाई। दूसरी तरफ नगर निगम के कालोनी सेल ने भी प्रिंसेस इस्टेट को वैध करने की प्रक्रिया शुरू दी है। कालोनी के एक खसरे 324 को भी परिवार के नाम ट्रांसफर कर रजिस्ट्री करवा दी।

किसान ने भी बिके भूखंडों की जमीन फिर से बेच डाली
प्रिंसेस इस्टेट में ने राजस्व अभिलेख में नामांतरण नहीं करवाने का फायदा उठाया और बिके हुए भूखंडों की जमीन भी धोखाधड़ी करते हुए बेच डाली, जिसमें एक जमीन 257/2/5 भी शामिल है, जिसमें किसान ने अग्रवाल के पक्ष में इसकी रजिस्ट्री करवा दी। इसी तरह के खेल कुछ अन्य जमीनों पर भी हुए। जबकि भूखंडों की रजिस्ट्रियां 2007 में ही हो चुकी थी।

जेल जा चुके हैं डागरिया और जैन – ईओडब्ल्यू में भी केस रजिस्टर्ड
प्रिंसेस इस्टेट में धोखाधड़ी के मामले में ईओडब्ल्यू ने भी दोनों कालोनाइजर अरुण डागरिया और महेन्द्र जैन के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया, जिन्होंने फैनी कंस्ट्रक्शन प्रा.लि. के जरिए भूखंड बेचे। ये दोनों कालोनाइजर जेल भी जा चुके हैं और महीनों बाद जमानत पर रिहा हुए। रौचक गृह निर्माण संस्था में भी बड़े पैमाने पर जमीनी घोटाले किए गए हैं।

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