ये पॉलिटिक्स है प्यारे

बिना हल्ले के रवाना हो गए ओवैसी
जहां असदुद्दीन ओवैसी जाएं वहां हल्ला न हो, यानी बयानों के तीर न चलें, ऐसा हो ही नहीं सकता, विशेषकर जब ओवैसी मध्यप्रदेश आए। मध्यप्रदेश में लव जिहाद को लेकर जितने केस चल रहे हैं उसको लेकर ओवैसी से उम्मीद थी कि वे कुछ न कुछ ऐसा बोलेंगे, जो नेशनल मीडिया की सुर्खियां बनेगा, लेकिन ओवैसी का बिना हल्ला किए ही रवाना हो जाना राजनीतिक हलकों में गले नहीं उतर रहा है। हालांकि ओवैसी का कार्यक्रम केवल पीथमपुर में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में जाने का ही था और उसमें मीडिया की मनाही थी। बाद में मीडिया को ब्रीफ तो किया गया, लेकिन राजनीतिक बात नहीं की गई। आने वाले समय में विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी का रुख क्या होगा, यह भी स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाया है।

महिलाओं में सुनिधि की ड्रेस पर खुसुर-फुसुर
शहर के जनप्रतिनिधियों की अफसरों के हां में हां मिलाने की आदत अभी गई नहीं है। तभी तो इंदौर का गौरव दिवस मनाने वालों ने अपने ही हिसाब से कार्यक्रम तय कर लिए और जनप्रतिनिधियों की भी रजामंदी ले ली। आखिरी दिन जब मुख्यमंत्री के सामने पाश्र्व गायिका सुनिधि चौहान ने गीतों की प्रस्तुति दी तो उन्होंने जो ड्रेस पहनी हुई थी, उससे इंदौरी संस्कृति पर बट्टा लग रहा था। भाजपा की ही कुछ नेत्रियों ने इस पर खुसुर-फुसुर कर डाली। उनका कहना था सुनिधि जैसी गायिका को इस तरह की हरकत नहीं करना थी।
गुड्डू की निगाह भी अब एक नंबर पर लगी
पिछले चुनाव के पहले सुदर्शन गुप्ता के विरोध में चलने वाले एमआईसी सदस्य निरंजनसिंह चौहान अब उनकी परछाई बनकर चल रहे हैं। जहां गुप्ता वहां गुड्डू, लेकिन गुड्डू की निगाहें अब एक नंबर की सीट पर जमी हुई हैं। उन्होंने शनिवार को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को अपने वार्ड में लाकर बता दिया कि भोपाल तक उनकी पहुंच बन रही है। गुप्ता भले ही लाख दावा करें, लेकिन यहां से भाजपा टिकट बदलने का मन बना चुकी है और इस चक्कर में कहीं गुड्डू की चल निकली तो…

हारी विधानसभा जीतेंगे, लेकिन सेहरा किसके सिर
इंदौर आए मुख्यमंत्री ने राऊ और 1 नंबर को लेकर एयरपोर्ट पर भाजपा नेताओं के सामने सवाल दाग दिया कि 1 नंबर और राऊ जीतेंगे या नहीं? नेताओं ने हां में सर हिलाया और कहा कि भाईसाब इस बार दोनों सीटें जीत रहे हैं। इनमें वे नेता भी थे, जो राऊ और 1 नंबर में दावेदारी का सेहरा पहने घूम रहे हैं। वहां मधु वर्मा, जीतू जिराती के साथ-साथ दूसरे नेता भी लगे हुए हैं। एक नेता तो प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नाम पर सेहरा बांधे घूम रहे हैं। कुछ ने तो दौरा तक शुरू कर दिया है, लेकिन टिकट तो किसी एक को ही मिलना है और देखना है कि जिसको टिकट मिलना है, वह मुख्यमंत्री के सामने किया गया वादा कैसे पूरा करता है? क्योंकि पिछली बार भी कहीं न कहीं अपनों के चक्कर में भाजपा की नाव डूबी थी।
फिर जागा रेलवे प्रेम
कमलेश खंडेलवाल भले ही भाजपा में आ गए हैं, लेकिन अभी तक उन्हें भाजपा ने कोई जवाबदारी नहीं दी है, सो राजनीतिक दुकान अभी मंगल ही है। नेता की राजनीतिक दुकान तब तक नहीं चलती, जब तक उसके हाथ में कोई मुद्दा न हो। खंडेलवाल रेलवे विभाग के पुराने अनुभवी रहे हैं और झोन की कमेटी तक के सदस्य बन चुके हैं। अब उन्होंने एक बार फिर रेलवे को लेकर आंदोलन करने की ठानी है। उन्होंने लक्ष्मीबाई नगर में ट्रेनों के स्टापेज का मुद्दा गरम करने की तैयारी की है, लेकिन वे भूल गए कि सरकार तो उनकी ही है, इसमें आंदोलन की क्या जरूरत?

जा नहीं रही पुरानी यादें
कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता हैं, जो छात्र संघ और युवक कांग्रेस के जमाने से नेतागीरी करते आ रहे हैं और अभी भी समझ रहे हैं कि उसी तरह की नेतागीरी अब चल जाएगी, लेकिन कांग्रेस की नई युवा पीढ़ी ऐसे नेताओं को आगे नहीं आने दे रही है और बेचारों को सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालना पड़ रही है। ऐसे नेताओं में क्रिश्चियन कॉलेज और आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज में नेतागीरी कर चुके नेता शामिल हैं, जो गांधी भवन में भी कम दिखाई देते हैं, लेकिन जब बात अधिकार की आती है तो नेताओं के सामने विरोध प्रदर्शन करना भी नहीं छोड़ते।
कल 2 और 4 नंबर विधानसभा में दिग्विजयसिंह संगठन के नेताओं से बात करने आ रहे हैं। 2 नंबर में तो फिर भी मेंदोला के सामने दावेदार कम हैं, लेकिन 4 नंबर में भाजपा की अंदरूनी लड़ाई को लेकर कुछ कांग्रेसी जरूर खम ठोंक रहे हैं। एक इसमें दूसरी विधानसभा से आयातित तो दूसरे यहां से चुनाव हार चुके, तीसरे एक व्यापारी हैं। वे बड़े नेताओं से मिलकर जाहिर कर चुके हैं कि वे ही यहां से इस बार जीतेंगे, इसलिए टिकट उनको ही मिलना चाहिए। -संजीव मालवीय

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