ये पॉलिटिक्स है प्यारे

तुलसी को अब अपने आंगन से ही डर
जिस आंगन में तुलसी का पौधा रौंपा गया था, अब उसी आंगन से तुलसी को डर लग रहा है कि कहीं उसे कहीं ओर रौंप नहीं दिया जाए। जिस तरह से से संगठन सख्त हुआ है और एक-एक सीट पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, उसको लेकर तुलसी की सीट बदली जा सकती है, क्योंकि इस सीट पर राजेश सोनकर की भी नजर है और सोनकर चाहते हैं कि कहीं नई जगह न जाकर वे अपनी पुरानी राजनीतिक की दुकान का ही शटर ऊंचा कर दें। सोनकर को इसलिए भी ताकत मिल गई है कि नरेन्द्रसिंह तोमर के हाथों में चुनाव की कमान आ गई है। अगर तोमर की नजरें इनायत हो गई तो तुलसी की परेशानी बढ़ जाएगी। वैसे तुलसी ने सक्रियता बढ़ा दी है और अब ज्यादा ध्यान सांवेर के आंगन में ही दिया जा रहा है। बेटे को तो उन्होंने वहां स्थायी तौर पर तैनात कर ही दिया है, ताकि अगर कोई उधर निगाह करें तो तुरंत खबर आ जाए।
बैठकों के साथ तैयार हो गई रिपोर्ट भी
क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल पिछले एक सप्ताह से इंदौर में थें। उनका ये अधिकृत प्रवास था और इस दौरान उन्होंने विधानसभा स्तर पर बैठकें भी लीं। मीडिया से दूर रहने वाले जामवाल ने बंद कमरे में भी नेताओं को चुनाव को लेकर गुटबाजी भूल काम में जुट जाने को लेकर कहा है। एक गोपनीय रिपोर्ट भी उन्होंने तैयार की है, जिसके आधार पर तय किया जाएगा कि किस विधानसभा की क्या स्थिति है और यहां किसे टिकट देने पर पार्टी को जीत मिल सकती है।

चार नंबर से कई दावेदार गायब
चार नंबर विधानसभा में कांग्रेस के टिकट पर दावा करने वाले एक युवा नेता को तो संगठन की जवाबदारी दे दी गई है। वहीं एक सिंधी नेता अपने आपको दौड़ में आगे मानकर चल रहे हैं, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र से आने वाले एक युवा कांग्रेसी ने उनके मंसूबों पर पानी फेरने की पूरी तैयारी कर ली है और ऐसा राजनीतिक बम तैयार किया है, जिसमें उक्त नेता चित्त हो जाएंगे। वैसे उक्त युवा नेता दावा कर रहे हैं कि ऊपर वालों ने उन्हें कमीटमेंट कर दिया है और वे अपनी तैयारियों में लगे हुए हैं।
फिर भी उम्मीद से हंै बाकलीवाल
कल गांधी भवन में अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण करने सुरजीत सिंह चड्ढा ठीक से सीढिय़ां भी नहीं चढ़े थे कि पुराने अध्यक्ष राजबाड़ा से गुरूद्वारा चौराहे तक आए और 10 मिनट बाद उनका काफिला हाईकोर्ट के सामने दुकान पर चाय की चुस्कियां लेकर गप्पे मार रहा था। इनमें शैलेश गर्ग, इम्तियाज बेलिम और संजय बाकलीवाल जैसे उनके खास समर्थक भी थें। खैर पुराने अध्यक्ष ने हाजरी लगाकर अपना काम पूरा कर दिया था। वैसे शहर कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर बाकलीवाल की विनयशीलता काम नहीं आईं। वे आखिर तक अपने आपको ही कुर्सी का हकदार बताते रहे, लेकिन घोषणा के बाद सब-कुछ धरा रह गया। बागड़ी और गोलू को बड़ी कुर्सी तो दे दी गई है, लेकिन विनय के पास कुछ नहीं है। फिर भी वे उम्मीद से हैं और उम्मीद पर दुनिया कायम है, लेकिन पहले उनका अनुशासनहीनता वाले मामले में फैसला होना है।

गांधी भवन में जगह तलाश रहे बाकलीवाल समर्थक
जिस तरह से बाकलीवाल की रवानगी शहर कांग्रेस की कुर्सी से की गई थी और उनके समर्थकों पर अनुशासन का डंडा चला था, उसके बाद अब नया अध्यक्ष बनते से ही बाकलीवाल समर्थक गांधी भवन में अपनी जगह तलाश रहे हैं। कभी इनकी गांधी भवन में तूती बोलती थी और एकतरफा जलवा था। इनमें कुछ चड्ढा के आगे-पीछे घूम रहे हैं कि कहीं उनकी निगाह पड़ जाए और गांधी भवन में उनकी फिर चलने लगे, लेकिन उनके विरोधियों ने इस बार पूरी तैयारी की है, इन्हें महत्वपूर्ण जवाबदारी नहीं मिल पाए, नहीं तो फिर वे अपनी वाली चलाने लगेंगे।
दूध का फर्ज निभाना है
ग्रामीण क्षेत्र के एक कांग्रेस नेता विधानसभा का टिकट चाह रहे हैं और उन्होंने अपनी पूरी तैयारी कर ली है। इन नेताजी को 18 महीने की कांग्रेस सरकार में इंदौर दुग्ध संघ में अध्यक्ष बनाया था और अब उनका कार्यकाल भी समाप्त होने वाला है। उसके पहले ही वे विधायक बनकर दुग्ध संघ में अपना फर्ज निभाकर निर्विवाद काम करने का पुरस्कार पार्टी से चाह रहे हैं।
ढेरों राजनीतिक उस्ताद, लेकिन पूजा एक की
गुरू तो गुरू ही होता है, चाहे वो किसी भी क्षेत्र का हो। वैसे राजनीतिक क्षेत्र में गुरू यानि उस्ताह की महिमा अपरमपार होती है। कई उस्ताद तो अपने चेलों की राजनीतिक नैया पार लगा देते हैं और कई अपने चेले को हमेशा आगे-पीछे ही घूमाते रहते हैं। इसी चक्कर में कई चेले उस्ताद को भी उनके दांव में ही बिठाकर आगे निकल जाते हंै। इनसे अलग शहर की राजनीति के एक छंटे-छंटाए उस्ताद का गुरू पूर्णिमा पर विशेष पूजन होता है। चेले इक_ा होते हैं और कोई गुरू के लिए उपहार लाता है तो कोई श्रद्धा के दो फूल। गुरू इसे स्वीकार कर लेते हैं। गुरू प्रसादी भी होती है। गुरू का ज्ञान भी मिल जाता है, लेकिन इस बार चेले गुरू को ज्ञान दे गए हैं कि आप टिकट की सुरताल अपनी मुरली पर छेड़े रखना, सब अच्छा होगा।

चुनावी साल है। सोशल मीडिया का जमाना है तो निश्चित ही इसके तीर चलेंगे। फिलहाल तो एक ऑडियो का पुराना जिन्न सामने निकलकर आया है, जिसमें कमलनाथ के नजदीकी एक इंदौरी कांग्रेस नेता किसी मामले में अपने क्षेत्र के नेतापुत्र को चमका रहे हैं। भिया ने बोल दिया है कि मेरे ऊपर एक पाई का दाग नहीं है और तू सबदूर बदनाम करते फिर रहा है। हालांकि भिया एक गलती कर बैठे, उन्होंने दिग्गी राजा को लेकर भी कुछ ऐसी बातें कह दी हैं, जिसे दिग्गी के कानों तक पहुंचा दिया गया है। -संजीव मालवीय

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