ये पॉलिटिक्स है प्यारे

भोपाल से संदेश…जल्दबाजी मत करो
टिकट की दौड़ में अपने आपको आगे मानकर तैयारी कर रहे एक भाजपा नेता को भोपाल से संदेश आया कि जल्दबाजी मत करो, इससे माहौल खराब हो रहा है। दरअसल उक्त नेता की शिकायत दूसरे दावेदारों ने आला नेताओं को कर दी और कहा कि वे क्षेत्र में जो माहौल बना रहे हैं, उससे लग रहा है कि उनका टिकट हो गया है और कार्यकर्ता भ्रमित हैं। बस फिर क्या था भोपाल के नेताओं ने कड़े शब्दों में उन तक संदेश पहुंचा दिया कि वे इस तरह के काम न करें और पार्टी में एकजुटता बनाए रखें। जिसका टिकट होना है हो जाएगा। इसके बाद उक्त नेता क्षेत्र में तो चुप हैं, लेकिन गाड़ी में अटैची तैयार रखते हैं और कभी भी भोपाल तथा दिल्ली की निकल पड़ते हैं। हालांकि नेताजी के समर्थक सफाई दे रहे हैं कि भैया का टिकट पक्का हो गया है और उन्हें ऊपर से इंतजार करने को कहा गया है।
फिर से ढूंढ रहे हैं अपना मुकाम
नगर निगम चुनाव में बागी होने के कारण पार्टी से बाहर किए गए भाजपाई अब अपना मुकाम ढूंढने में लगे हुए हैं। वे चुनाव के पहले पार्टी में आने का मन बना रहे हैं। इनमें कई पूर्व पार्षद हैं, जो टिकट नहीं मिलने के कारण नाराज फूफा की तरह मुंह फुलाकर बागी चुनाव लड़ लिए थे, लेकिन क्षेत्र के लोगों ने उन्हें उनकी असलियत दिखा दी। कल ऐसे ही दो नेता भाजपा कार्यालय की सीढिय़ां चढ़े, लेकिन उन्हें वहां कोई तवज्जो नहीं मिली।

बोरासी परिवार में डेमेज कंट्रोल टीम एक्टिव
रीना बोरासी की एक पोस्ट पिछले दिनों वायरल हुई, जिसमें वे अपने पिता को जन्मदिन की शुभकामनाएं दे रही हैं, लेकिन पिता-पुत्री के इस प्यार को भी राजनीतिक चश्मे से देखा जाने लगा। किसी ने कहा कि ये सब टिकट लेने का खेल है, जिसमें रीना सहानुभूति बटोर रही हैं। वैसे दोनों पिता-पुत्री के रिश्तों में आई दरार को पाटने का दिखावा उनकी डेमेज कंट्रोल टीम कर रही है। इसके पीछे कहा जा रहा है कि परिवार में एक टिकट तो नहीं मिला, लेकिन दूसरे से अब वे हाथ धोना नहीं चाहते।
डाटा के लिए फर्जी कॉल आ रहे भाजपा के पास
पिछले दिनों भाजपा के मीडिया प्रभारी रितेश तिवारी को फोन आया। फोन करने वाले ने अपने आपको प्रदेश मीडिया सेंटर से बात करना बताया और कहा कि वे जल्द ही मंडल स्तर की लिस्ट उन्हें मोबाइल पर भेज देवें। तिवारी ने पूछा भी…किसलिए तो उनका कहना था कि मीडिया सेंटर द्वारा चाही गई है। तिवारी को खुटका हुआ तो उन्होंने प्रदेश मीडिया सेंटर प्रभारी आशीष अग्रवाल से बात की। अग्रवाल ने ऐसी कोई जानकारी मांगने से इंकार किया। इस पर जब दूसरी बार फोन आया तो तिवारी ने सामने वाले को डपट दिया और फिर फोन लगाने पर पुलिस कार्रवाई की चेतावनी दे दी। इसके बाद तिवारी के सहायक मीडिया प्रभारी नितिन द्विवेदी को भी फोन पहुंचा, लेकिन उन्हें पहले ही सचेत कर दिया गया था। बाद में मालूम पड़ा कि ये डाटा लेने का खेल था, ताकि संगठन की नीचे की जानकारी फोन नंबर सहित सामने वाला ले सके।

चड्ढा नहीं संभाल पा रहे कार्यकर्ताओं को
गांधी भवन को भले ही चड्ढा ने रंगरोगन करवाकर इंटीरियर भी करवा लिया हो, लेकिन वे संगठन को मजबूत नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेसियों को एक बैनर के तले लाना उनके लिए चुनौती ही लग रहा है। पहले कोई बड़ा कार्यक्रम होता था तो बड़े नेताओं को खुद अध्यक्ष फोन लगाते थे, लेकिन अब चड्ढा ने ये जवाबदारी अपने प_ों को दे दी है, जिससे कुछ नेता नाराज चल रहे हैं। वहीं उनके आगे-पीछे वे ही नजर आ रहे हैं जो अक्सर गांधी भवन में टाइम पास करने आते हैं।
कांग्रेसी नेता की भड़ास या पीड़ा
पिछले दिनों गांधी भवन में कांग्रेस के थाटी कांग्रेस नेता द्वारा दिए जाने वाले एक भाषण का वीडियो खूब वाइरल हो रहा है। इस वीडिया में नेताजी अपने ही वरिष्ठ नेताओं को आड़े हाथों ले रहे हैं और कह रहे हैं कि बाहर से जो नेता आते हैं, हमें काम करना समझाते हैं। ये हमें क्या काम समझाएंगे? हम तो शुरू से ही पार्टी के सिपाही हैं। नेताजी ने जिस अंदाज में उसे कहा वह किसी भड़ास और चेतावनी से कम नजर नहीं आ रहा है।

असलम को नहीं मिल पाती है नियुक्तियों में तवज्जो
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के नगर अध्यक्ष असलम शेख की नियुक्ति का मुस्लिम नेताओं ने विरोध किया, बावजूद उसके वे टिके हुए हैं, क्योंकि उन्हें भोपाल से उस समय के मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष रफत वारसी का वरदहस्त था। वारसी अब हज कमेटी अध्यक्ष हैं, लेकिन असलम का रूतबा इंदौर के मुस्लिमों में बढ़ नहीं पा रहा है। यही कारण है कि कई मुस्लिम नेता अपने हिसाब से भोपाल से नियुक्ति करवा लाते हैं और फिर अपनी राजनीतिक दुकान अलग ही चलाते फिरते हैं। हज कमेटी का मामला हो या फिर कर्बला कमेटी या फिर पिछले सप्ताह घोषित हुई वक्फ कमेटी का। इसमें भी उनसे पूछे बिना अध्यक्ष बना दिया गया। असलम नाराज हैं, क्योंकि शहर में की जा रही नियुक्तियों में प्रोटोकाल का पालन प्रदेश के नेता कर नहीं रहे हैं। जब लोगों की भीड़ जुटाने बात आती है तो मोर्चा अध्यक्ष पर ही सारा दारोमदार रहता है, जबकि बाकी नेता मस्ती छानते रहते हैं।

सब तो आए, लेकिन मजा नहीं आया। एक विज्ञापन की ये लाइनेंं कांग्रेस पर फिट बैठ रही है। भंवरसिंह शेखावत के कांग्रेस में जाने के बाद सत्तन गुरू को चार नंबर से टिकट का लालच भी दिया गया, लेकिन गुरू तो गुरू ठहरे, कांग्रेस के इरादे भांप गए और उन्होंने कांग्रेस का मजा किरकिरा कर दिया। पिछले सप्ताह कई नेताओं ने दल बदले, लेकिन गुरू अभी वहीं हैं। कांग्रेसी कह रहे हैं कि गुरू एक बार इधर आ जाए तो मजा आ जाए। -संजीव मालवीय

Leave a Comment