ये पॉलिटिक्स है प्यारे


अब सदमे से उबर रहे हैं नेताजी
विधानसभा चुनाव में टिकट के प्रति आश्वस्त एक नेताजी को टिकट नहीं मिला तो वे सदमे में चले गए। सदमा भी ऐसा कि उनके नजदीकी ही भौचक रह गए, क्योंकि जिस तरह से भैया ने समर्थकों को एक विशेष विधानसभा में काम पर लगा दिया था, उससे ऐसा लग रहा था कि केवल लिस्ट में नाम आना शेष है, बाकी तो उन्हें हरी झंडी दे दी है, लेकिन पत्ता कट गया। कहने वाले तो कह रहे थे कि इनके नाम का पत्ता फेंकने में किसी वरिष्ठ ने सहयोग नहीं किया। खैर, यहां तक की कहानी सब जानते हैं। वैसे अब वे सदमे से उबरने लगे हैं, लेकिन भैया के चेहरे पर अब पहले जैसी रौनक नहीं रही। ये हम नहीं, बल्कि भैया को देखने वाले कह रहे हैं।

विधायक के संगी-साथी बने प्रभारी
विधानसभा चुनाव को अभी 2 महीने भी ठीक से नहीं हुए हैं कि एक विधानसभा में विधायक महोदय ने अपने साथ वालों को विधानसभा में हस्तक्षेप करने के लिए फ्रीहैंड दे दिया है। बाहरियों के हस्तक्षेप के कारण पहले ही स्थानीय नाराज थे। अब पता चला है कि विधायक ने 2 कदम आगे बढक़र वार्डों में प्रभारी बना दिए हैं। इससे पार्षद नाराज नजर आ रहे हैं, क्योंकि हर काम में उनका हस्तक्षेप बढ़ रहा है। हालांकि यहां बात ‘कामधाम’ की नजर आ रही है। कुछ पार्षदों ने तो अपने आकाओं के कानों तक खबर पहुंचा दी है कि ऐसा रहा तो राजनीति करना मुश्किल हो जाएगा। वो विधायक हैं और विधायक स्तर के कामों में ध्यान दें तो अच्छा रहेगा।
इंदौर के पहले एमआईसी मेंबर, जिन्हें मिली सुरक्षा व्यवस्था
राजनीति में उपनाम वाले कई नेता हैं। इनमें से एक हैं मनीष मामा। हमेशा चर्चा में बने रहने वाले मामा को अब एक सुरक्षाकर्मी मिल गया है। मामा ने एमआईसी में आते ही अपने विभाग की योजनाओं का प्रचार-प्रसार कहीं गीत गाकर तो कहीं फिल्म बनाकर शुरू कर दिया था। अब मामा कंट्रोल का चावल पकडऩे की मुहिम में लगे हैं, जो गरीबों के लिए आता है। इस बीच उन्हें फोन पर तो एक बार घर पर जान से मारने की धमकी मिली है। धमकी वाले तो नहीं मिले, लेकिन मामा का रुतबा अब निगम में देखने लायक है।

काम सब कर रहे हैं…लेकिन क्या?
शहर कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्षों की फौज के बाद दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस मजबूत हो रही है, लेकिन कैसे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। हर कोई कह रहा है हम बेस बना रहे हैं, लेकिन आज तक सभी कार्यकारी अध्यक्ष गुटबाजी से बाहर नहीं आए हैं और अपने आकाओं के यहां हाजिरी देने में लगे हैं, जिन्होंने उन्हें अपनी गाड़ी और घर पर अध्यक्ष की नेम प्लेट लगाने का मौका दिया। पटवारी दावा तो खूब कर रहे हैं कि इस बार लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा की सीट में कटौती करेंगे, लेकिन कैसे…? जब टीम ही काम नहीं करेगी तो प्रदेश में भाजपा को हिलाना मुश्किल रहेगा।

इंतजार नागवार है बाबा को
मालवा मिल पुलिस चौकी के जीर्णोद्धार का कार्यक्रम था। वक्त के पाबंद बाबा, यानी महेंद्र हार्डिया समय पर पहुंच गए। 25 मिनट इंतजार करने के बाद महापौर समय पर नहीं पहुंचे तो बाबा उठे और चलते बने। उन्हें पुलिस अधिकारी वापस लेने गए, लेकिन बाबा तो बाबा ठहरे। एमआईसी मेंबर नंदू पहाडिय़ा ने जब बाबा की बात मित्र से कराई तो उनका गुस्सा शांत हुआ और वे अपनी जगह जाकर बैठ गए। अधिकारी भी बाबा का गुस्सा देखकर सहम गए। मित्र ने अपने सहयोगी प्रतीक को जरूर गुस्सा शांत करने के लिए भेज दिया, फिर भी मित्र पूरे 1 घंटे 5 मिनट की देरी से आए।

भाजपा में आने के लिए डोरे डाल रहे नेताजी
पहले भाजपा में रहे और उसके बाद आप पार्टी का झंडा बुलंद करने वाले एक नेताजी को जब कैलाश विजयवर्गीय ने राजमाता के कार्यक्रम में देखा तो आश्चर्य से बोल उठे कि तुम तो आप पार्टी में चले गए थे। नेताजी ने शर्मिंदा होते हुए कहा कि मैं तो जहां हूं, वहीं हूं। इस पर विजयवर्गीय मुस्करा दिए। वैसे विजयवर्गीय के आने के बाद कई नेता जो घर बैठ गए थे, उन्होंने सक्रियता दिखाते हुए उनके आसपास घूमना शुरू कर दिया है और फिर विजयवर्गीय तो कैलाशी ठहरे, जो मिला उसको गले लगाते चले गए।

पहले काम, उसके बाद पदनाम
पटवारी की नई टीम बनना है और उसमें आने के लिए कई पुराने नेताओं ने अपने आकाओं के माध्यम से दम भरना शुरू कर दिया है। पटवारी इस मामले में यही कह रहे हैं कि संगठन के लिए काम करके दिखाओ, फिर सोचते हैं। वैसे लोकसभा चुनाव भी सिर पर है। कहीं ऐसा न हो कि पटवारीगीरी बताने के चक्कर में नेता घर बैठ जाएं। वैसे कुछ नेता पटवारी को कमजोर नेतृत्व वाला साबित करने में लगे हैं। सुन रहे हैं ना पटवारीजी।

पहले महापौर और बाद में विधानसभा टिकट से वंचित रहे संघ से जुड़े नेता की सक्रियता इन दिनों खूब चर्चा का विषय बन रही है। नेताजी को अब दिल्ली दूर नहीं दिख रही है। वे सांसद की कुर्सी के बहाने वहां पहुंचना चाह रहे हैं। वे जेब में हाथ डालने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। उनकी ये सक्रियता पार्टी के कई नेताओं को बेचैन कर रही है और विशेषकर वर्तमान सांसद लालवानी को, जो दूसरी पारी की तैयारी में लगे हैं।
-संजीव मालवीय

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