मिशन 200 पार की राह में बाधा बने टिकटार्थी

  • टिकट की आकांक्षा से आकांक्षी सीटों से मोहभंग

भोपाल। मप्र में भाजपा ने 2018 में हारी हुई सीटों में से अधिकांश को जीतने की रणनीति के साथ अबकी बार 200 पार का नारा दिया। इस नारे को सफल बनाने के लिए पार्टी ने हारी सीटों को आकांक्षी सीटों का नाम देकर पदाधिकारियों को तैनात किया है, ताकि उन्हें आसानी ने जीता जा सके। लेकिन पार्टी के इस मिशन में वे पदाधिकारी और नेता बाधा बन रहे हैं जिन्हें इन सीटों पर तैनात किया गया है और वे आगामी चुनाव में टिकट की आस लगाए बैठे हैं। दरअसल, भाजपा में वर्तमान और पूर्व विधायकों के साथ बड़ी संख्या में पदाधिकारी भी टिकट की आस लगाए हुए हैं। उधर, पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपनी 100 से अधिक जिन कमजोर सीटों को चिह्नित कर वरिष्ठ नेताओं को प्रभारी बनाया है, उनमें से अनेक लोग इस जवाबदारी से मुक्ति की ताक में हैं। इसके पीछे मुख्य वजह यह है कि वह स्वयं अपने क्षेत्र में चुनाव की तैयारी और टिकट की दावेदारी में सक्रिय हैं। हारी हुई सीटों को लेकर हुई बैठकों में भी बड़ी संख्या में प्रभारी शामिल नहीं हो पा रहे हैं। इस मुद्दे पर संगठन को ये लोग अपनी दुविधा बता चुके हैं। ऐसे में पार्टी के सामने 200 पार के मिशन को पूरा करना बड़ी समस्या बन गया है।

तालमेल का भी अभाव
भाजपा सूत्रों का कहना है कि जिन पदाधिकारियों और नेताओं को आकांक्षी सीटों की जिम्मेदारी दी गई है उनमें से अधिकांश का एक दर्द यह भी है कि प्रभार के जिलों में स्थानीय नेताओं से उनका बेहतर तालमेल भी नहीं बन पा रहा। संगठन ने भी सैद्धांतिक रूप से बदलाव और कुछ लोगों को जिम्मेदारी से हटाने का मन बना लिया है। पिछले विस चुनाव में भाजपा 230 में से 109 सीट ही जीत सकी थी। मार्च 2020 में विधायकों के इस्तीफे और नवंबर में हुए उपचुनाव के बाद भाजपा की 127 सीट हैं। मिशन 2023 के लिए पार्टी ने 100 से ज्यादा सीटों को कमजोर माना है। इन सीटों पर पूर्व संगठन मंत्री, निगम- मंडल अध्यक्ष, मंत्री, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक और वरिष्ठ पदाधिकारियों को प्रभार देकर जीत सुनिश्चित करने मैदानी होमवर्क करने का टारगेट सौंपा गया है। ये सभी प्रभारी दूसरे जिलों के हैं। इनमें से कुछ इस बार चुनाव लडऩे की मंशा बनाए हुए हैं। ऐसे में उनका मन आकांक्षी सीटों पर नहीं लग रहा है। भाजपा सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिन नेताओं को आकांक्षी सीटों की जिम्मेदारी दी गई है उनमें शैलेंद्र बरूआ अटेर (भिंड), आशुतोष तिवारी सेवड़ा (दतिया), पुष्पेंद्र प्रताप सिंह ‘गुड्डू राजाÓ छतरपुर, जसवंत सिंह हाड़ा शुजालपुर, प्रवीण शर्मा डॉली चित्रकूट, संजय नागाइच पवई (पन्ना), विनोद गोटिया जबलपुर, पुष्पेंद्र नाथ पाठक गुड्डन महाराजपुर, रायसिंह सेंधव, आलोक संजर, राजेंद्र भारती, चेतन सिंह, राजो मालवीय, केशव सिंह भदौरिया, जितेंद्र लिटोरिया, जयप्रकाश चतुर्वेदी, संतोष जैन, वसंत माकोड़े और नरेंद्र शिवाजी पटेल सहित अन्य कई नेता कतार में हैं जो इस बार विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर चुके है। ऐसे में हारी हुई कमजोर सीट का प्रभार उन्हें अपने क्षेत्र की सक्रियता में बाधा खड़ी कर रहा है, क्योंकि वे खुद चुनावी रण में उतरना चाहते हैं।

कुछ संभागों में स्थिति चिंताजनक
जानकारी के अनुसार ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड सहित मालवा-निमाड़ अंचल के कई जिलों से भाजपा को इस बार जो राजनीतिक फीडबैक मिल रहा है उसने चुनावी प्रबंधकों की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी ने जो सर्वे कराए हैं उसमें भी इन सीटों पर जातीय और राजनीतिक समीकरण को देखते हुए अतिरिक्त मेहनत का मशविरा दिया गया है। हारी हुई सीटों के प्रभारियों की आगामी बैठक में समीक्षा के साथ ही उनकी गुजारिश पर विचार-विमर्श किया जाएगा। इसके बाद संभावना है कि कुछ सीटों पर नेताओं के प्रभार में बदलाव किया जाएगा। बूथ स्तर पर वोट शेयर बढ़ाने, शक्ति केंद्र व पन्ना प्रमुखों को सक्रिय करने के लिए अतिरिक्त कार्यकर्ताओं को तैनात किए जाएंगे। संगठन की ओर से जिन नेताओं को हारी हुई सीटों का प्रभार सौंपा गया है उनमें कुछ पूर्व संगठन मंत्री भी हैं। ये लोग पिछले चुनाव तक संभागों के प्रभारी रहते हुए दो-ढाई दर्जन सीटों का प्रभार संभाल चुके हैं। अब इस मुकाम पर महज एक विधानसभा सीट का प्रभार भी उन्हें दुविधा में डाल रहा है क्योंकि इस बार वह भी अपने लिए टिकट की आस लगा बैठे हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो अपने लिए संगठन की कुछ बड़ी जिम्मेदारी मिलने की उम्मीद लगाए हुए हैं। कुछ ऐसे नेता भी हैं जिन्हें पिछली बार पराजय का मुंह देखना पड़ा था। कतिपय उत्साही दावेदार इस बार अपने लिए पूरी जमावट कर चुके हैं।

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