UP में ‘टिफिन पे चर्चा’, BJP का ध्यान 2019 में हारी 16 सीटों पर; पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती

लखनऊ: लोकसभा चुनाव आने को हैं ऐसे में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. बल्कि ऐसा लगता है कि पार्टी 2019 में हारी हुई सीटों पर भी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है. इसी का नतीजा है कि भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी सरकार के केंद्र में 30 मई को 9 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 30 दिवसीय जन संपर्क का कार्यक्रम आयोजन किया. जिसे 2024 में होने वाले चुनाव से पहले अपनी पकड़ मजबूत करने की शुरुआत के तौर पर भी देखा जा रहा है.

30 जून को समाप्त होने वाले भाजपा के इस कार्यक्रम ‘टिफिन पे चर्चा’ या ‘खाने पे चर्चा’ में 600 से ज्यादा स्वयंसेवी, यूट्यूब इन्फ्लूएंसर, वरिष्ठ पार्टी नेता और कई दिग्गजों ने शिरकत की. हालांकि पार्टी का असल ध्यान उन 16 सीटों पर हैं जिस पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी इन सीटों पर अपनी पकड़ मजूबत करना चाहती है.

पार्टी के वरिष्ठ नेता का कहना है कि, भाजपा की इन सीटों के लिए विशेष योजना है, जहां वो लोगों का समर्थन जुटाने और विकास कार्यों को लेकर उनमें जागरूकता फैलाने के लिए ‘टिफिन पे चर्चा’ जैसे कार्यक्रमों का सहारा ले रहे हैं. इसके जरिये 9 वर्षों में मोदी सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पहले और दूसरे कार्यकाल में अब तक हुए कामों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्रसारित करना है.

‘टिफिन पे चर्चा’ में 200 परिवारों की सूची
हाल ही में कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक का आयोजन करने वाले भाजपा राज्य महासचिव धर्मपाल सिंह ने बताया कि, उक्त सीटों पर सरकार के किए गए कामों को बताने करने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया था. सिंह का कहना था कि, विधायक और स्थानीय लोगों सहित क्षेत्र के प्रभावशाली परिवारों के साथ खाने पे चर्चा की गई. इस आयोजन के लिए अभिनेता, वैज्ञानिक, स्वतंत्रता सेनानी, डॉक्टर, खिलाड़ियों सहित करीब 200 परिवारों की सूची तैयार की गई थी.

विपक्ष अभी भी एक नहीं है
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख, शशिकांत पांडे का कहना है, ‘भाजपा का टिफिन पे चर्चा एक छाप जरूर छोड़ेगा क्योंकि पूरे कार्यक्रम का आयोजन बहुत प्रभावशाली था. आगामी 2024 लोकसभा चुनावों की राह पार्टी के लिए तुलनात्मक रूप से आसान होगी क्योंकि उनके सामने एक मजबूत विपक्ष और भाजपा विरोधी गठबंधन की बड़ी कमी है.’

शशिकांत पांडे बताते हैं कि मार्च में समाजवादी पार्टी प्रमुख (सपा) अखिलेश यादव पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सम्मिलित होने कोलकाता गए, जहां उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की. दोनों नेताओं के बीच योजनाबद्ध मुलाकात, उत्तर प्रदेश और देश भर के राजनीतिक हलकों में यह हवा देने के लिए काफी थी कि 2024 चुनाव से पहले भाजपा विरोधी गठबंधन उभर रहा है. इसके बाद ही सपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा ने घोषणा की, कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में भाजपा से लड़ने के लिए एकजुट होकर काम करेगी, लेकिन अब तक किसी गठबंधन की कोई जानकारी नहीं दी गई है.

पहले भी बना महागठबंधन, पर काम नहीं आया
शशिकांत पांडे बताते हैं कि, उत्तर प्रदेश में भाजपा विरोधी मोर्चा खड़ा करना कोई नया विचार नहीं है, 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही कुछ नजeरा देखने को मिला था जब भाजपा को हराने के लिए महागठबंधन खड़ा किया गया था. लेकिन वह कुछ फर्क नहीं डाल सका था और उसने घुटने टेक दिये थे. शशिकांत पांडे ने कहा कि महागठबंधन का निर्माण 2019 के आम चुनावों में यादव, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती और राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख अजीत सिंह के नेतृत्व में किया गया था. यह गठबंधन कांग्रेस और भाजपा के विरोध में था.

पांडेय ने बताया, ‘उत्तर प्रदेश की कुल 80 सीटों में से, महागठबंधन ने कांग्रेस के राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी के लिए दो सीटें छोड़ीं थीं जिस पर बसपा ने उन्हें समर्थन देने की घोषणा की थी. लेकिन इसके बावजूद भाजपा की जीत पर कोई असर नहीं पड़ा, और भाजपा को जहां 51.19% वोट शेयर मिला वहीं महागठबंधन को महज 39.23% वोट शेयर पर ही संतोष करना पड़ा. कांग्रेस की हालत तो बहुत ही खराब रही और उसकी झोली में कुल 6.41 फीसदी वोट ही आए. इस तरह 80 सीटों में से भाजपा को 62 सीटें मिलीं, जबकि महागठबंधन को कुल 15 सीटें ही प्राप्त हुईं.’ हालांकि वह आगे जोड़ते हैं कि, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, उनकी सांसद पद की अयोग्यता और बढ़ती बेरोजगारी और मुद्रास्फीति जैसे मुद्दे भाजपा के लिए खेल बिगाड़ सकते हैं.

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