उज्जैन स्मार्ट सिटी के कार्यों में पिछड़ा..केन्द्र सरकार ने लिया संज्ञान

  • स्मार्ट सिटी मिशन के कामों में पिछडऩे के कारण केंद्र ने राज्यों को दी नसीहत
  • कहा सीईओ के बार बार तबादलों के कारण पिछड़ रहे हैं काम-एक बार नियुक्ति के बाद 2 वर्ष तक ना हो ट्रांसफर

उज्जैन। इस साल स्मार्ट सिटी मिशन पूरा करने में जुटे शहरी कार्य मंत्रालय ने योजना में शामिल उज्जैन सहित मध्य प्रदेश और देश के शहरों में बार-बार सीईओ के तबादलों पर चिंतित केंद्र सरकार ने फिर से राज्यों से कहा है कि वे उनके लिए निश्चित कार्यकाल निर्धारित करें। शहरी कार्य मंत्रालय ने माना है कि स्थानीय परिस्थितियों के कारण सीईओ के बार-बार तबादलों की नौबत आती है लेकिन यह नहीं होना चाहिए।


उज्जैन सहित मध्य प्रदेश के स्मार्ट सिटी शहर और देशभर के स्मार्ट सिटी मिशन पूरा करने में जुटे शहरी कार्य मंत्रालय ने योजना में शामिल शहरों में बार-बार सीईओ के तबादलों पर चिंतित केंद्र सरकार ने फिर से राज्यों से कहा है कि वे उनके लिए निश्चित कार्यकाल निर्धारित करें। केंद्र सरकार के मुताबिक, स्मार्ट सिटी के एसपीवी यानी स्पेशल परपज वेहिकल के सीईओ का कार्यकाल कम से कम दो साल का होना चाहिए ताकि वे अपना काम ठीक तरीके से कर सकें। इन एसपीवी पर ही शहर स्तर पर योजनाएँ बनाने, उनका क्रियान्वयन करने और निगरानी की जिम्मेदारी होती है। इनमें स्थानीय शहरी निकाय और संबंधित राज्य सरकार की आधी-आधी हिस्सेदारी होती है। शहरी कार्य मंत्रालय ने माना है कि स्थानीय परिस्थितियों के कारण सीईओ के बार-बार तबादलों की नौबत आती है, लेकिन यह नहीं होना चाहिए। स्मार्ट सिटी मिशन कई विस्तार के बाद इस साल जून में पूरा होना है लेकिन अभी भी काफी परियोजनाएँ लंबित हैं। मिशन के क्रियान्वयन की चुनौतियों में सीईओ के बार-बार तबादलों के मामले को भी शामिल किया गया है। शहरी कार्य मंत्रालय से संबंधित एक संसदीय समिति ने भी इस पर अपनी चिंता जताते हुए मंत्रालय से जवाब जानना चाहा था। मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार सीईओ का बार-बार स्थानांतरण होना सही नहीं है। सबसे पिछड़े शहरों में सबसे बड़ा कारण भी यही है कि वहाँ स्मार्ट सिटी के सीईओ का हर छह महीने या उससे भी कम समय में तबादला हो रहा है। एक तो तबादले जल्दी-जल्दी हो रहे हैं और दूसरे परियोजनाएँ भी बार-बार बदली जा रही है। इससे काम प्रभावित होता है। सबसे ज्यादा पिछड़े शहरों की रैंकिंग 80 से नीचे हैं। मंत्रालय की चिंता यह भी है कि अनेक जगहों पर स्मार्ट सिटी के लिए जिस एसपीवी का गठन हुआ है, उनमें कुछ कागजी एसपीवी हैं। वहाँ कुछ स्टॉफ है लेकिन एसपीवी क्रियान्वयन नहीं कर रही है वे परियोजना के संदर्भ में निर्णय तो ले लेती हैं लेकिन उसके बाद या तो प्रोजेक्ट नगर निगम को वापस कर दिया जाता है या फिर किसी अन्य संगठन को दे दिया जाता है।

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