2028 तक नए रूप में संवरेगा उज्जैन का महाकाल लोक

  • राजस्थान के लाल पत्थरों को ओडिशा के कलाकार दे रहे सप्त ऋषियों का स्वरूप
  • एक मूर्ति के निर्माण में लग रहा डेढ़ से दो माह का समय, करीब 125 मूर्तियाँ होना हैं तैयार

उज्जैन। महाकाल लोक की सूरत अब जल्द ही बदली हुई नजर आएगी। इसके सौंदर्यीकरण के लिए विशेष तौर पर ओडिशा के कलाकारों को ही बुलाया गया है। जिन्होंने सप्तऋषियों की मूर्ति को आकार देना शुरू भी कर दिया है।

महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी के मुताबिक महाकाल लोक में जल्द ही सप्तऋषियों की प्रतिमाएँ लाल पत्थर की नजर आएगी। ये प्रतिमाएँ ग्रन्थों और पौराणिक आधार पर अलग-अलग स्वरूपों में दिखाई देगी। इन प्रतिमाओं का निर्माण महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के द्वारा करवाया जा रहा है जिसे बंशी पहाड़पुर के लाल पत्थरों से ओडिशा के कलाकारों द्वारा बनाया जा रहा है। प्रत्येक प्रतिमा 15 फीट ऊंची, 10 फीट चौड़ी होगी। वर्तमान में एक प्रतिमा को बनाने के लिए 8 कलाकार हर दिन काम कर रहे हैं। सभी प्रतिमाएँ बनाने में करीब एक से डेढ़ साल का समय लग सकता है। इन प्रतिमाओं को बनाने के लिए मशीन का नहीं बल्कि, छैनी और हथोड़ी का उपयोग किया जा रहा है। पहले फेज में सप्त ऋषियों की प्रतिमाएं बनाकर तैयार की जा रही हैं। इनके तैयार होते ही भगवान शिव की मूर्ति भी बनाई जाएगी। उसके बाद धीरे-धीरे सभी मूर्तियों को बदल दिया जाएगा। इस पर शासन द्वारा करीब 30 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की संभावना है। इस पूरे काम की सिंहस्थ 2028 के पहले पूरा करने का लक्ष्य हैं। जैसे जैसे लाल पत्थर की खेप ज्यादा मात्रा उज्जैन आना शुरू होगी, वैसे-वैसे मूर्ति कलाकारों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी। भविष्य में उज्जैन को मूर्तियों का गढ़ माना जाएगा। यहाँ से मूर्तियाँ बनाकर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में भेजी जाएगी। इससे शहर में मूर्ति कला और यहाँ के कलाकारों को नई दिशा मिलेगी।

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