UP: एक दिन पहले डिनर में ही डोल गई थी ‘समाजवादियों’ की नैया

लखनऊ (Lucknow)। राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha elections) में विपक्ष के खराब रणकौशल (Poor tactics opposition) और सत्ताधारी दल के आकर्षण व चालों के आगे सपा का तीसरा प्रत्याशी (Third candidate of SP) पस्त हो गया। विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडे (Manoj Pandey) समेत उसके सात विधायकों ने भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान (Voting BJP candidates favor) किया। तो अमेठी से विधायक महाराजी प्रजापति वोट देने नहीं आईं। प्रत्याशी तय करने में सपा नेतृत्व की जिद भी उसकी रणनीति बिखरने के लिए कम जिम्मेदार नहीं रही।

राज्यसभा चुनाव से एक दिन पहले पार्टी डिनर में आठ विधायकों के गायब रहने से ही क्रॉस वोटिंग के प्रबल आसार बन गए थे। चुनावी राजनीति के माहिर माने जाने वाले सपा महासचिव शिवपाल यादव को पोलिंग एजेंट बनाए जाने पर भी विधायकों की फूट को रोका नहीं जा सका। मंगलवार को सबसे पहले ऊंचाहार से पार्टी विधायक मनोज पांडे ने मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा देकर इस विद्रोह की शुरुआत का अहसास करा दिया। उन्होंने सीधे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपना त्यागपत्र भेजा।

सपा नेतृत्व ने पीडीए के समीकरणों के विपरीत जाकर कायस्थ जाति से ही दो प्रत्याशी उतार दिए थे। इसके विरोध में पार्टी महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य और सलीम शेरवानी ने इस्तीफा दिया। वहीं, विधायक पल्लवी पटेल ने भी एलानिया कहा कि वह सिर्फ पार्टी के पीडीए प्रत्याशी को ही वोट करेंगी। हालांकि उन्होंने वादा निभाते हुए सपा प्रत्याशी के पक्ष में ही वोट दिया। प्रत्याशियों के चयन के फैसले का विरोध करने वाले नेताओं का यह भी कहना था कि सपा ने उस जाति से दो प्रत्याशी दिए, जो वर्षों से मूलतः भाजपा का वोट बैंक है।

सपा के जानकारों का कहना है कि सत्ताधारी दल के नजदीक जाने से मिलने वाले लाभ की संभावना ने जहां पक्ष द्रोही होने में मदद की। वहीं, पार्टी की ओर से उन्हें मनाने की कारगर कोशिश होते हुए भी नहीं दिखी। ऐसा करने से नुकसान की आशंका खत्म नहीं तो कम जरूर की जा सकती थी। सपा के जिम्मेदार नेताओं का यहां तक कहना है कि पार्टी के तीसरे प्रत्याशी आलोक रंजन ने अपनी ओर से किसी भी विधायक से संपर्क तक नहीं किया। सपा विधायक शहजिल इस्लाम का वोट रद्द होने को भी पार्टी की खराब रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। शहजिल के साथ मजबूती से खड़े होने का भरोसा दिलाकर कम से कम इस नुकसान से तो बचा जा ही सकता था। प्रत्याशियों के चयन में जातीय समीकरणों का ध्यान न रखने से भी यह संदेश गया कि यहां लाभ देने में राजनीतिक ‘प्रोफेशनलिज्म’ की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

पांच सामान्य और दो पीडीए विधायकों ने बदला पाला
सपा के सात विधायकों ने भाजपा के पक्ष में वोटिंग की। इनमें से मनोज पांडेय, राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह व विनोद चतुर्वेदी सामान्य जाति से और पूजा पाल व आशुतोष मौर्य क्रमशः पिछड़ी व दलित जाति से हैं। वहीं, पिछड़ी जाति की ही विधायक व पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी प्रजापति को गैरहाजिर होना ज्यादा उचित लगा।

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