भोजन की बर्बादी रोकेंगे, खाद्य अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली होगी लागू

निगमायुक्त ने शुरू की पहल, पहली बार स्वच्छता के साथ-साथ भोजन अपव्यय रोकने के प्रयास

इंदौर। अभी तक नगर निगम (Municipal council) हर तरह के कचरे का निष्पादन करता है। मगर इंदौर जैसे खान-पान के शौकीन शहर में बड़ी मात्रा में खाद्य अपशिष्ट भी निकलता है, उसके सुनियोजित प्रबंधन पर अब नगर निगम ध्यान देने जा रहा है। भोजन की बर्बादी को रोकने और शून्य अपशिष्ट उत्सर्जन के लिए निगम ने एक कार्यशाला भी आयोजित की, जिसमें आयुक्त श्रीमती हर्षिका सिंह ने कहा कि अब हम उद्गम स्त्रोत पर ही खाद्य अपशिष्ट में कमी लाने और उसके प्रबंधन करने की रणनीति तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। शहर में जगह-जगह खाद्य प्रतिष्ठान तो खुले ही हैं, वहीं चौपाटियों की संख्या भी बढ़ गई। इन सभी को खाद्य अपशिष्ट प्रबंधन से जोड़ा जाएगा।

निगमायुक्त हर्षिका सिंह (Municipal Commissioner Harshika Singh) ने कहा कि शहरों में निकलने वाले जैव अपघटनीय (बायोडिग्रेडेबल) कचरे में खाद्य अपशिष्ट की अच्छी-खासी मात्रा होती है और कूड़ा डालने वाले स्थानों (लैंडफिल) पर इन्हें फेंके जाने से न सिर्फ इनके उत्पादन में लगने वाले संसाधन व्यर्थ होते हैं, बल्कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी इनका उल्लेखनीय योगदान होता है। भारत में खाद्य पदार्थों के अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा से पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक स्तरों पर गंभीर परिणाम भी सामने आते हैं। इसके बावजूद इस गंभीर समस्या पर अधिक शोध नहीं किया गया है व परिणामस्वरूप भारत में खाद्य अपशिष्ट पर आँकड़े अपर्याप्त और खंडित हैं। यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोगाम (United Nations Environment Program) (यूएनईपी) की फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 के अनुमानुसार भारत में हर घर से हर साल औसतन 50 किलोग्राम खाद्य अपशिष्ट उत्पन्न होता है। हालांकि अन्य भारतीय रिपोर्टस इससे भी ज़्यादा आंकड़ा दिखाती हैं, खास तौर पर नगरीय क्षेत्रों में इससे अधिक खाद्य अपशिष्ट निकलने की बात कही गई है। भारत में खाद्य अपशिष्ट उत्पादन के संबंध में अध्ययन भी छिटपुट रहे हैं, जो बहुत छोटे नमूना आकारों पर केंद्रित हैं। अपनी अग्रणी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के साथ, इंदौर में खाद्य अपशिष्ट प्रबंधन के लिए ऐसे समाधान शुरू करने की बहुत बड़ी संभावना है।

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