हम शक्ति की पूजा करते हैं… वो शक्ति से लड़ते हैं… बात निरर्थक करते हैं… और अर्थ पर तर्क धरते हैं…

जो मुंह में आया बक दिया… जो जुबान पर आया कह दिया… न धर्म को समझते हैं न मर्म को समझते हैं… न लोगों की भावनाएं पढ़ते हैं और न जुमले ढंग से गढ़ते हैं…भरी सभा में कांग्रेस के बुद्धिमान नेता जब ये कहते हैं कि सनातन धर्म में एक शक्ति होती है… हम उस शक्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं…अब उस नादान को कौन समझाए कि शक्ति तो दैवीय ही होती है… जब शक्ति से लडऩे की बात करेंगे और उसे सनातन धर्म से जोड़ेंगे तो वो शक्ति प्रहार तो करेगी… मोदी सहित विरोधियों का हथियार तो बनेगी…अब बेचारे कांग्रेसी राहुल के किए गए घावों पर मरहम लगाने के लिए तर्क कर रहे हैं…राहुल की निरर्थक बातों पर अर्थ बदलने के तर्क रख रहे हैं… उन नेताओं से ही पूछा जाए कि सनातन धर्म की शक्ति क्या होती है… राहुल यदि शक्ति के आगे असुर लगा देते… दुष्ट शक्ति कहकर बात बढ़ा देते तो विवाद तो नहीं होता… लेकिन जिसे भाषा का ज्ञान नहीं… जिसे भावनाओं का भान नहीं, वो देश का नेता बनना चाहता है… देश के नेतृत्व का दंभ भरना चाहता है… 100 साल पुरानी कांग्रेस का नेता बन बैठता है तो मोदीजी के परिवारवाद का विरोध सही लगता है…कोई भी ऐरा-गैरा केवल इसलिए संगठन का मुखिया बन जाता है, क्योंकि उसके सीने पर परिवार का तमगा लगा रहता है…संगठन को दुकान बनाया जाता है… बाप की बपौती और परिवार की विरासत बताया जाता है… लोकतंत्र का मजाक उड़ाया जाता है तो जनता द्वारा फैसला किया जाता है… ऐसे परिवार को घर बैठाया जाता है और देश दूसरे मजबूत हाथों में थमाया जाता है… लेकिन इस जिद में मौत उन कार्यकर्ताओं, उन नेताओं, उन निष्ठावानों की हो जाती है, जिन्होंने बरसों दल की सेवा की… उसे मुकाम पर पहुंचाया… उसे शीर्ष दिखाया… ऊंचाइयों पर टिकाया… और केवल एक व्यक्ति ने उसका बेड़ा गर्क कर करोड़ों कांग्रेसियों को ठिकाने लगाया… आज कांग्रेस में पार्टी छोडऩे की होड़ नहीं मची है, बल्कि लोग राहुल से पीछा छुड़ाने चाहते हैं… एक अपरिपक्व मानसिकता को ठुकराना चाहते हैं… एक नादान से मुक्ति पाना चाहते हैं… वो जानते हैं कि दल बदलेंगे तो भी सम्मान नहीं पाएंगे… पुराने भाजपाईयों द्वारा ठुकराए जाएंगे… नए दल में जगह नहीं बना पाएंगे… फिर से राजनीति शुरू करने… नई पाठशाला में पढऩे और निष्ठाएं साबित करने में इतना वक्त लग जाएगा कि जिंदगी का फलसफा ही खत्म हो जाएगा… लेकिन हर दिन की तोहमतें झेलने और विरोधियों के प्रहार से बचने के लिए कांग्रेस का त्याग और राजनीतिक वनवास भी नेता मंजूर किए जा रहे हैं… देश की मुसीबत यह है कि कांग्रेस के अंत से देश ने एक मजबूत विपक्ष को खो दिया और तर्क-वितर्क का रास्ता ही रोक दिया… कांग्रेस को यदि पुनर्जीवन चाहिए… बचे-खुचे कांग्रेसियों को यदि अपनी निष्ठाओं का मोल चाहिए तो बगावत का सुर गुंजाना होगा… पार्टी किसी परिवार की नहीं कार्यकर्ताओं की है यह बताना होगा… कम से कम राहुल गांधी को तो घर बैठाना होगा…

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