अच्छा हुआ मर गए भय्यू महाराज….

ऐसे ही मरते रहेंगे भय्यू महाराज… जो नहीं मरेंगे वो जेल में सड़ेंगे… तिरस्कार सहेंगे… अपने आप से लड़ेंगे… जिंदा रहेंगे… पर जी नहीं सकेंगे, क्योंकि समाज ने मान लिया है… नजरिया बना लिया है कि नारी मासूम ही होती है… उसके आंसुओं में सच्चाई रहती है… उसके दामन में शराफत बसती है… वो हमेशा सच ही कहती है… नारी पतिता हो ही नहीं सकती… षड्यंत्र और साजिशों की कल्पना नहीं करती है… पुरुष मर्यादाओं का शोषण करता है… नारी की सादगी का लुटेरा रहता है… इसीलिए जब भी नारी आरोप लगाती है… उंगली उठाती है…मासूमियत भरी दास्तान सुनाती है, तब पुरुष की बात तक नहीं सुनी जाती है… सफाई की तो नौबत ही नहीं आती है…उसे हैवान घोषित कर दिया जाता है…वहशी दरिंदा समझा जाता है…पूरा समाज उसे नोंचने में लग जाता है…उसका मान-सम्मान और बरसों की प्रतिष्ठा धूल में मिल जाती है… घर वालों की निगाहें बदल जाती हैं…परिवार तक में इज्जत नहीं रह पाती है…तब जिंदगी की दो ही सूरतें बच जाती हैं- या तो मर-मरकर जियो या मरकर मुक्ति के मार्ग पर चल पड़ो…तब भय्यू महाराज हों या संत समाज के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि… उन्हें जान देना पड़ती है…तब जाकर अदालतें उनकी चीखें सुनती हैं…इंसाफ की आवाज गूंजती है…समाज की आंखें खुलती हैं… पलक-विनायक जैसे लोगों को सजाएं मिलती हैं, मगर तब तक आयुषी विधवा हो जाती है.. कुहू अनाथ बन जाती है…भक्तों के विश्वास की डोर टूट जाती है…आस्थाएं निराशाओं में डूब जाती हैं…तब यह सच्चाई समाज के लिए चुनौती बन जाती है कि हम कब तक भय्यू महाराज को मरने देंगे… संत सूली पर चढ़ेंगे… पत्रकार कल्पेश याग्निक छत से कूदकर मरेंगे और हम सोते रहेंगे…यदि आज भय्यू महाराज जिंदा होते और पलक के आरोपों से लडऩा भी चाहते तो हम उन्हें पहले जेल में डालते… निल्र्लज कहकर प्रताडऩा देकर, तिरस्कृत कर हर दिन मारते… अच्छा हुआ भय्यू महाराज ने निर्दयी और नादान समाज से पीछा छुड़ा लिया…समाज को सच्चाई का आईना दिखा दिया…खुद को बेगुनाह बना लिया…लेकिन एक संत होकर भी वो जीते-जी समाज को समझा नहीं पाए…नारी भी षड्यंत्र रच सकती है…उसकी भी अतृप्त आकांक्षाएं और अपेक्षाएं साजिशें बुन सकती हैं… उसकी यह फितरत इसलिए अंजाम पाती है क्योंकि वो जानती है कि उसकी आवाज कानून से लेकर समाज में इस कदर गूंज सकती है कि पुरुषों की जिंदगी विध्वंस हो सकती है…निशाने पर चढ़े पुरुष पर जहां समाज बेरहम हो जाता है, वहीं महिलाओं को मासूमियत का खिताब दिया जाता है…कानून भी उन्हें अबला मानकर उनके नाम तक को उजागर करने पर प्रतिबंध लगाता है…लेकिन पुरुष को अपराध साबित होने से पहले ही अपराधी घोषित कर दिया जाता है…यह नजरिया नहीं बदला तो भय्यू महाराज तो मरते ही रहेंगे, लेकिन नारी जाति पर कलंक लगाने वाली ऐसी महिलाओं के हौसले भी बढ़ते रहेंगे।

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