क्या फिर समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाएंगे राजा भैया? अखिलेश यादव से मिला यह ऑफर

नई दिल्ली: राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही दुशमन. ये कहावत बड़ी पुरानी है, लेकिन है सोलह आने सच. तो क्या राजा भैया और अखिलेश यादव (Raja Bhaiya and Akhilesh Yadav) की दुश्मनी खत्म होने वाली है! दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. वैसे राजा भैया उर्फ रघुराज प्रताप सिंह (Raghuraj Pratap Singh) उनकी सरकार में मंत्री भी रहे हैं. ये संयोग ही है कि राज्यसभा चुनाव को लेकर ही दोनों की दोस्ती खत्म हुई थी. अब फिर राज्य सभा चुनाव को लेकर ही अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने राजा भैया की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. पर सवाल ये है कि क्या राजा मान जाएंगे.

सवाल दो वोटों का है. राजा भैया की अपनी एक राजनैतिक दल है. वे ही इस पार्टी के सब कुछ हैं. पार्टी का नाम है जनसत्ता दल. खुद राजा भैया कुंडा से विधायक हैं. जबकि उनकी ही पार्टी के विनोद सरोज बाबागंज से विधायक हैं. अखिलेश यादव चाहते हैं कि राजा भैया की पार्टी के दोनों वोट राज्यसभा चुनाव में उन्हें मिल जाए. यही प्रस्ताव लेकर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल लखनऊ में रामायण पहुंच गए. राजा भैया के बंगले का यही नाम है.

पटेल ने मोबाइल फोन पर राजा भैया की अखिलेश यादव से बात कराई. सूत्र बताते हैं कि समर्थन के बदले अखिलेश यादव ने राजा भैया के सामने लोकसभा सीट देने का प्रस्ताव रखा है. राजा भैया और उनके साथी विधायक की विधानसभा सीटें कौशांबी लोकसभा क्षेत्र में आती है. समाजवादी पार्टी ने यही लोकसभा सीट राजा भैया को ऑफर की है.

राजा भैया के करीबी नेता शैलेंद्र कुमार कौशांबी से सांसद रहे हैं. वे तब समाजवादी पार्टी में थे. अब शैलेंद्र कुमार राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल में हैं. अखिलेश यादव चाहते हैं कि शैलेंद्र कुमार कौशांबी से चुनाव लड़ें. वे जनसत्ता दल के उम्मीदवार होते हैं तो समाजवादी पार्टी उनका समर्थन कर देगी. अभी बीजेपी के विनोद सोनकर यहां से लोकसभा के सांसद हैं. लेकिन राजा भैया और अखिलेश यादव के साथ आ जाने से मुकाबला कांटे का हो सकता है. कौशांबी में राजा भैया का अच्छा ख़ासा प्रभाव है.

यूपी से राज्य सभा की दस सीटों के चुनाव होने हैं. समाजवादी पार्टी ने तीन उम्मीदवार दिए हैं. जया बच्चन, आलोक रंजन और रामजी लाल सुमन. बीजेपी की तरफ से आठ उम्मीदवार चुनाव में हैं. बीजेपी के संजय सेठ के चुनाव लड़ने से मामला पेचीदा हो गया है. राज्य सभा की दस सीटें हैं और ग्यारह उम्मीदवार मैदान में हैं. राज्य सभा की एक सीट के लिए 37 वोट चाहिए. समाजवादी पार्टी के पास अपने 108 विधायक हैं. कांग्रेस के दो विधायक भी उनका समर्थन कर सकते हैं. लेकिन अखिलेश यादव को लगता है कि उनकी ही पार्टी के कुछ एमएलए क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं. इसीलिए वे राजा भैया का समर्थन चाहते हैं.

ठीक छह साल पहले भी यूपी में राज्यसभा के चुनाव को लेकर मतदान हुआ था. तब बीएसपी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन था. मतदान से एक दिन पहले अखिलेश यादव ने होटल ताज में विधायकों को डिनर दिया था. राजा भैया भी इस डिनर में उनके साथ थे. राजा भैया के समर्थन देने के एलान पर अखिलेश यादव ने उन्हें ट्वीट कर थैंक्यू भी कहा था. लेकिन राजा भैया ने पाला बदल कर बीजेपी के लिए वोट कर दिया. बस इसी बात पर राजा और अखिलेश के रिश्ते बदल गए. अखिलेश ने राजा भैया के थैंक्यू कहने वाला ट्वीट भी डिलीट कर दिया. ये बात अब से छह साल पहले की है. तब से अखिलेश और राजा भैया में तनातनी बनी हुई है.

राजा भैया और अखिलेश यादव के बीच बातचीत बंद हो गई. जबकि मुलायम सिंह के बारे में कहते हैं कि वे राजा को अपने बेटे जैसा मानते थे. यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कह दिया था कि ‘इस बार कुंडा के गुंडा में कुंडी लगा देंगे’. राजा भैया का घर कुंडा में है. हालत ये हो गई कि दोनों एक दूसरे का चेहरा तक नहीं देखना चाहते थे. राजा भैया देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के करीबी बताए जाते हैं. हाल में ही उन्होंने विधानसभा के गेट पर सबके सामने योगी आदित्यनाथ के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था. यूपी के राजनैतिक गलियारों में इसकी बड़ी चर्चा रही. पर क्या सिर्फ शैलेंद्र कुमार के लिए राजा भैया अपनी सालों पुरानी दुश्मनी भूल जाएंगे!

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