महिला दिवस…या महिला ही जीवन

कहने को उसे घर की मालकिन कहा जाता है… लेकिन घर के बर्तनों पर भी बच्चों का नाम लिखा जाता है
एक दिन महिला का… या पूरा जीवन उस नारी शक्ति का, जिसके दम पर इस देश के घरों की बुनियाद… बच्चों में संस्कार… मातृत्व का बोध… पुरुषों का प्रभुत्व और देश की संस्कृति टिकी हुई है… वो है तो मकान घर बन पाता है… वो है तो बच्चों का भविष्य संवर पाता है… वो है तो पुरुष का जीवन संबल पाता है… जिसके आंचल में हर गम दुबक जाता है… जो गमों की दीवार बनकर खड़ी हो जाती है… जो हर दु:ख को पी जाती है… जो हर परिस्थिति में मुस्कराती है… वो जब मां बनकर बच्चों की हिफाजत पर उतर आती है तो इस जग की सारी देवियां उसमें समा जाती हैं… वो दुर्गा बनकर काल से टकराती है… सरस्वती बनकर ज्ञान का सागर बहाती है… लक्ष्मी बनकर घर चलाती है और मां बनकर आंचल बिछाती है तो बहन बनकर दुलार बरसाती है और पत्नी का रूप धरकर पुरुषों का जीवन संवारती है… उसके रहते चेहरे की हर उदासी भाग जाती है… कंधे से कंधा मिलाकर जीवन के हर संग्राम में सहभागी बनने वाली नारी ऐसी पत्नी का किरदार निभाती है, जिसे कहने को तो घर की मालकिन कहा जाता है… लेकिन घर के बर्तनों पर भी बच्चों का नाम लिखा जाता है… इस संसार की वो ऐसी देवी है… इस भारत की वो ऐसी संस्कृति है… इस देश का वो ऐसा परिवेश है, जिसके अंश से यह दुनिया चलती है… लेकिन उसका कोई वंश नहीं होता… मायके से जब ससुराल आती है तो अपना नाम तक छोड़ आती है… पति के वंश की परम्परा निभाती है… पति का उपनाम लगाती है और इस नाम को भी वह पहचान नहीं बनाती है… उसकी जिंदगी तो बस सास, ससुर, पति और बच्चों की सेवा में गुजर जाती है… वो ऐसी नारी है, जो घर भी चलाती है… मेहनत-मजदूरी करने से भी कभी पीछे नहीं हटती है… बच्चों का पेट भरने के लिए भूखी सो जाती है… चाहे जितनी थकान हो घर और कर्म दोनों का फर्ज निभाती है… उस मां के लिए, उस बहन के लिए, उस पति के लिए एक महिला दिवस तो क्या उसके सम्मान के लिए पूरी जिंदगी कम पड़ जाती है… वो महिला ही है जो समर्पण, संस्कार और त्याग की मिसाल कही जाती है… लेकिन उसे पुरुषों की भी गलती की सजा दी जाती है… बच्चा गलत हो या पुरुष का लालच, सजा महिला ही पाती है… दुनिया उसकी उजड़ जाती है… कभी अकेले रहकर तो कभी उनके गम सहकर… कभी उनके लिए लडक़र वो दर-दर की ठोकरें खाती है… खामोश रहकर हर सितम सहती जाती है… जो हर बला हंसते-हंसते झेल जाती है… ऐसी सबला इस देश में अबला कही जाती है… वो शक्ति है, वो सामथ्र्य है, वो साहस है, वो संबल है… ऐसी माताओं को, ऐसी बहनों को और इस देश के हर पुरुष की शक्ति को प्रणाम, वंदन और अभिनंदन…

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