
इंदौर। इंदौर शहर को भिक्षुकमुक्त बनाने का कलेक्टर आशीषसिंह का सपना साकार होते नहीं दिख रहा है। भिक्षुकों को रेस्क्यू करने के बाद उन्हें रखने और पुनर्वास करने की जगह नहीं होने के कारण सिर्फ समझाइश देकर छोड़ा जा रहा है। विभाग ने बाल भिक्षुकों के लिए चलाई मुहिम में 22 को रेस्क्यू किया और आश्रमों में रखवाया, लेकिन फिर भी शहर की सडक़ों से भिक्षुकों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। ढाई हजार से अधिक को सिर्फ समझाइश देकर छोड़ दिया गया।
टीम के सामने ही महिलाएं बच्चों को गोद में लेकर वाहन चालकों से पैसों की मांग कर रही हैं, लेकिन टीम हाथ पर हाथ धरे तमाशबीन की तरह सिर्फ देखती रह रही है। यह ढाई हजार का आंकड़ा प्रशासन द्वारा चलाई गई मुहिम का है, जबकि वास्तविकता बहुत अलग है। ऐसे भिक्षुक, जो नवनिहालों को गोद में लेकर भिक्षावृत्ति कर रहे हैं व चौराहों पर सामान बेचने के नाम पर भीख मांग रहे हैं, उन्हें रखने की जगह ही नहीं है। शहर के आउटर इलाकों में बस्तियां बनाकर घुमंतू प्रजाति के साथ-साथ राजस्थान और बिहार से आए लोग गांधी नगर, सांवेर रोड, हातोद इलाके में भारी तादाद में अस्थायी झोपडिय़ां बनाकर रह रहे हैं और दिन में शहर की सडक़ों पर भिक्षावृत्ति करते हैं।
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