
नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन (Ashok Tandon) ने अपनी किताब (Book) ‘अटल संस्मरण’ में बड़ा दावा किया है. उन्होंने कहा है कि 2002 में बीजेपी (BJP) ने राष्ट्रपति पद (Presidency) के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सुझाया था और प्रधानमंत्री का पद लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) को सौंपने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि बहुमत के आधार पर उनका राष्ट्रपति बनना एक गलत मिसाल कायम करेगा.
कलाम 2002 में तत्कालीन सत्ताधारी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) और विपक्ष दोनों के समर्थन से 11वें राष्ट्रपति चुने गए थे. वह 2007 तक इस पद पर रहे. अशोक टंडन 1998 से 2004 तक वाजपेयी के मीडिया सलाहकार थे. उन्होंने किताब में लिखा कि वाजपेयी ने दूसरी तरफ अपनी पार्टी के इस सुझाव को साफतौर पर खारिज कर दिया कि उन्हें राष्ट्रपति भवन चले जाना चाहिए और प्रधानमंत्री का पद अपने दूसरे नंबर के नेता लालकृष्ण आडवाणी को सौंप देना चाहिए.
टंडन के अनुसार, वाजपेयी इसके लिए तैयार नहीं थे. उनका मानना था कि किसी भी लोकप्रिय प्रधानमंत्री का बहुमत के दम पर राष्ट्रपति बनना भारतीय संसदीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं होगा. इससे एक बहुत गलत परंपरा शुरू होगी और वह ऐसे कदम का समर्थन करने वाले आखिरी व्यक्ति होंगे. टंडन लिखते हैं कि वाजपेयी ने मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेताओं को बुलाया ताकि राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बन सके.
अशोक टंडन ने लिखा, मुझे याद है कि सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह उनसे मिलने आए थे. वाजपेयी ने पहली बार ऑफिशियली बताया कि NDA ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है… मीटिंग में कुछ देर सन्नाटा छा गया. फिर सोनिया गांधी ने चुप्पी तोड़ी और कहा कि वे उनके इस चुनाव से हैरान हैं और उनके पास उन्हें सपोर्ट करने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है, लेकिन वे उनके प्रपोज़ल पर चर्चा करेंगे और फिर फैसला लेंगे.
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