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Cannibal CME: सूरज से निकल रहीं ‘नरभक्षी’ किरणें, क्या धरती पर मंडरा रहा बड़ा खतरा?

November 10, 2021

नई दिल्ली: सूरज में लगातार स्पॉट बन रहे हैं और इनमें होने वाले विस्फोट से निकलती किरणें लगातार धरती की तरफ आ रही हैं. 3 और 4 नवंबर को सूरज से तेज सौर किरणें निकलीं जिसकी वजह से अमेरिका समेत धरती के उत्तरी गोलार्द्ध में नॉदर्न लाइट्स देखने को मिलीं. 1 और 2 नवंबर को भी वैज्ञानिकों ने धरती की तरफ तेज सौर किरणों के आने की संभावना जताई थी. वैज्ञानिकों ने बताया है कि सूरज से अचानक निकलने वाली सौर किरणों की वजह क्या है और अचानक सूरज जाग कैसे गया है?

जाग रहा है सूरज
सूरज के सक्रिय होने की एक साइकिल होती है. इसे सोलर साइकिल कहते हैं. सोलर साइकिल 11 साल की होती है. सूरज 11 साल तक शांत रहता है और इसके बाद इसमें विस्फोट होने लगते हैं. इसे कोरोनल मास इजेक्शन कहते हैं. इसमें सन स्पॉट बनने लगते हैं और जब ये स्पॉट फटते हैं, तब इससे निकलने वाली किरणें धरती की तरफ आती हैं.

नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन में स्पेस वेद प्रेडिक्शन सेंटर के प्रोग्राम कॉर्डिनेटर Bill Murtagh के मुताबिक, पिछले कुछ सालों से सूरज में कोई गतिविधि नहीं हो रही थी. वो शांत था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. जब सूरज की गतिविधि कम होती है, तो इसे सोलर मिनिमम कहते हैं और जब ज्यादा होती है, तब सोलर मैक्सिमम कहते हैं. अगला सोलर मैक्सिमम पांच साल बाद यानी 2025 में होने की आशंका है. सोलर मैक्सिमम की गतिविधि दो साल पहले साल 2019 में धीरे-धीरे शुरू हुई थी. साल 2025 में ये तीव्र स्तर पर होगी.


सौर तूफानों का असर क्या होगा?
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगले कुछ सालों तक हमें ऐसे सौर तूफानों और सौर गतिविधियों के लिए तैयार रहना होगा. इसकी वजह से सैटेलाइट्स और ग्रिड्स को नुकसान हो सकता है. पिछले हफ्ते सूरज से कई सौर तूफान धरती की तरफ आए. यानी इस दौरान कई कोरोनल मास इजेक्शन हुए. सूरज से आग के बुलबुले निकल रहे हैं और ये एक बार में अरबों टन प्लाज्मा गैस और चुंबकीय फील्ड पैदा कर रहा है. ये तेजी से सौर मंडल में फैलने लगता है जिससे गर्म लहरें तेजी से धरती की तरफ आने लगती हैं.

वैज्ञानिकों को इस बात का डर
बिल मुर्ताघ के मुताबिक, धरती का अपना चुंबकीय क्षेत्र है. जब सूरज से आने वाली सौर किरण और धरती का चुंबकीय क्षेत्र आपस में टकराते हैं, तो इससे जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म की स्थिति पैदा होती है. इससे नॉदर्न लाइट्स पैदा होती हैं. लेकिन जब इसी सौर तूफान की तीव्रता बढ़ जाती है, तो ये सैटेलाइट्स और पावर ग्रिड्स को नुकसान पहुंचा सकता है.

कई बार ये सौर किरणें एक दूसरे को ही खा जाती हैं. इसे Cannibal CME कहते हैं. बिल मुर्ताघ के मुताबिक, सबसे बड़ा डर ये है कि सौर तूफान और उससे पड़ने वाले असर को लेकर डेटा बहुत कम है. इसलिए ये अंदाजा लगाना मुश्किल है कि नुकसान कितना बड़ा होगा. दुनिया में सबसे बड़े सौर तूफान 1859, 1921 और 1989 में आए थे. इनकी वजह से कई देशों की बिजली सप्लाई बाधित हुई थी और ग्रिड्स फेल हो गए थे.

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