
नई दिल्ली । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि स्वतंत्रता के बाद देश की जरूरतों के अनुरूप आर्थिक नीति नहीं बनी और दुनिया व कोविड-19 के अनुभवों से स्पष्ट है कि विकास का एक नया मूल्य आधारित मॉडल आना चाहिए। भागवत ने साथ ही कहा कि स्वदेशी का अर्थ जरूरी नहीं कि सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार किया जाए।
डॉ. मोहन भागवत ने डिजिटल माध्यम से प्रो. राजेंद्र गुप्ता की दो पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए कहा, ‘स्वतंत्रता के बाद जैसी आर्थिक नीति बननी चाहिए थी, वैसी नहीं बनी। आजादी के बाद ऐसा माना ही नहीं गया कि हम लोग कुछ कर सकते हैं। अच्छा हुआ कि अब शुरू हो गया है।’
आरएसएस सरसंघचालक ने कहा कि आजादी के बाद रूस से पंचवर्षीय योजना ली गई, पश्चिमी देशों का अनुकरण किया गया, लेकिन अपने लोगों के ज्ञान और क्षमता की ओर नहीं देखा गया। उन्होंने कहा कि अपने देश में उपलब्ध अनुभव आधारित ज्ञान को बढ़ावा देने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘हमें इस बात पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि हमारे पास विदेश से क्या आता है और यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें अपनी शर्तो पर करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि विदेशों में जो कुछ है, उसका बहिष्कार नहीं करना है, लेकिन अपनी शर्तो पर लेना है।
भागवत ने कहा कि ज्ञान के बारे में दुनिया से अच्छे विचार आने चाहिए। उन्होंने कहा कि अपने लोगों, अपने ज्ञान, अपनी क्षमता पर विश्वास रखने वाला समाज, व्यवस्था और शासन चाहिए। सरसंघचालक ने कहा कि भौतिकतावाद, जड़वाद और उसकी ताíकक परिणति के कारण व्यक्तिवाद और उपभोक्तावाद जैसी बातें आईं। ऐसा विचार आया कि दुनिया को एक वैश्विक बाजार बनना चाहिए और इसके आधार पर विकास की व्याख्या की गई। इसके फलस्वरूप विकास के दो तरह के मॉडल आए। इसमें एक कहता है कि मनुष्य की सत्ता है और दूसरा कहता है कि समाज की सत्ता है। इन दोनों से ही दुनिया को सुख प्राप्त नहीं हुआ। यह अनुभव दुनिया को धीरे-धीरे हुआ और कोविड-19 के समय यह बात प्रमुखता से आई। अब विकास का तीसरा विचार (मॉडल) आना चाहिए जो मूल्यों पर आधारित हो। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की बात इसी दृष्टि से कही है।
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