वाशिंगटन। संयुक्त राष्ट्र (UN) में एक उच्च-स्तरीय वैश्विक सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार (Ishaq Dar) ने फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता देने की जोरदार वकालत की। इसके अलावा, उन्होंने गाजा में स्थाई संघर्षविराम लागू करने, खाद्य और मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने तथा मानवाधिकारों के उल्लंघन को समाप्त करने की मांग की है। डार ने इजरायल के ‘युद्ध अपराधों’ की कड़ी निंदा करते हुए वैश्विक समुदाय से तत्काल कार्रवाई करने का आह्वान किया। इतना ही नहीं, खुद बेशुमार कर्ज में डूबे पाकिस्तान ने फिलिस्तीन के विकास का भी भरोसा दिया है।
डार ने संयुक्त राष्ट्र में आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “गाजा में सहायता रोकी जा रही है, शरणार्थी शिविरों, अस्पतालों और सहायता काफिलों पर जानबूझकर हमले किए जा रहे हैं- ये सब कानूनी और मानवीयता की हर सीमा को पार कर चुके हैं।” उन्होंने कहा, “यह सामूहिक सजा अब बंद होनी चाहिए!” यह सम्मेलन “फिलिस्तीन प्रश्न का शांतिपूर्ण समाधान और दो-राष्ट्र समाधान के कार्यान्वयन” पर केंद्रित था, जिसे सऊदी अरब और फ्रांस ने मिलकर आयोजित किया था।
यूरोपीय देशों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता दिए जाने का स्वागत
डार ने यूरोपीय देशों द्वारा हाल ही में फिलिस्तीन को देश के रूप में मान्यता दिए जाने का स्वागत करते हुए कहा, “हम फ्रांस के इस ऐतिहासिक निर्णय का स्वागत करते हैं और उन देशों से आग्रह करते हैं जिन्होंने अब तक मान्यता नहीं दी है, वे इस वैश्विक प्रयास में शामिल हों और फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता दें।” उन्होंने कहा कि गाजा आज अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय सिद्धांतों का कब्रिस्तान बन चुका है। डार ने कहा, “इजरायल द्वारा की गई बर्बादी में अब तक 58,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हुई है- जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं। यह अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेशों का घोर उल्लंघन है।”
संस्थागत निर्माण में पाकिस्तान का योगदान
डार ने कहा कि पाकिस्तान केवल राजनीतिक बयानबाजी नहीं करना चाहता, बल्कि फिलिस्तीन की संस्थागत और मानव विकास में वास्तविक योगदान देने को तैयार है। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान सार्वजनिक प्रशासन, स्वास्थ्य, शिक्षा और सेवा वितरण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में फिलिस्तीनी नेतृत्व के साथ समन्वय कर तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण का समर्थन देने को तत्पर है।” उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अरब-ओआईसी योजना और किसी भी अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के तहत संस्थानों के निर्माण में भागीदारी के लिए भी तैयार है। अपने भाषण का समापन करते हुए डार ने कहा, “न्याय में देरी अन्याय के समान होती है। लेकिन जब पीढ़ियों तक न्याय से वंचित रखा जाए, तो इसके परिणाम और भी गंभीर होते हैं।” उन्होंने जोर देते हुए कहा, “अब समय आ गया है कि हम फिलिस्तीन के लोगों को उम्मीद दें- स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय और देश की मान्यता दें। संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता ही इस क्षेत्र में स्थायी शांति की सबसे बड़ी गारंटी हो सकती है।”
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर सवाल
हालांकि, पाकिस्तान का यह समर्थन ऐसे समय में आया है जब वह स्वयं गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अन्य वैश्विक वित्तीय संस्थानों से बार-बार सहायता मांग रहा है। ऐसे में, फिलिस्तीन के पुनर्निर्माण के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता के वादे ने कई सवाल खड़े किए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की यह घोषणा अधिकतर राजनयिक और नैतिक समर्थन का हिस्सा है, लेकिन आर्थिक सहायता प्रदान करने की उसकी क्षमता सीमित है।
यूएन प्रमुख गुटेरेस की चेतावनी: अब दुनिया को करना होगा निर्णायक हस्तक्षेप
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सम्मेलन की शुरुआत में स्पष्ट शब्दों में कहा, “गाजा में जो तबाही हुई है, वह असहनीय है। दुनिया को अब हस्तक्षेप करना होगा ताकि इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का व्यावहारिक दो-राष्ट्र समाधान सुनिश्चित हो सके।” गुटेरेस ने कहा कि यह सम्मेलन एक निर्णायक मोड़ बन सकता है, जो कब्जे को समाप्त करने की दिशा में ठोस प्रगति को प्रेरित करेगा।
फ्रांस की चेतावनी: कोई प्लान बी नहीं है
फ्रांसीसी विदेश मंत्री जीन-नोएल बारो ने कहा कि गाजा में लड़ाई खत्म होनी चाहिए, लेकिन वहीं रुकना काफी नहीं है। उन्होंने कहा, “हमें राजनीतिक संवाद को आगे बढ़ाना होगा। फिलिस्तीनियों और इज़रायलियों दोनों की वैध आकांक्षाओं को पूरा करने का एकमात्र रास्ता दो-राष्ट्र समाधान है। और इसका कोई विकल्प नहीं है।”
अमेरिका और इजरायल ने सम्मेलन का किया बहिष्कार
अमेरिका और इजरायल ने इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने कहा कि “यह सम्मेलन गलत समय पर आयोजित किया गया और इससे शांति की तलाश और कठिन हो सकती है।” बता दें कि फिलिस्तीन को 2012 से संयुक्त राष्ट्र में “गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य” का दर्जा प्राप्त है, लेकिन पूर्ण सदस्यता के लिए उसे सुरक्षा परिषद की सिफारिश और सामान्य सभा में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है।
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