ब्‍लॉगर

सुशासन जारी रखने का जनादेश

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

बिहार विधानसभा चुनाव व यूपी-एपी के उपचुनाव परिणाम में एक तथ्य समान है। तीनों प्रदेशों में जनता ने सुशासन को जारी रखने का समर्थन किया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के प्रयास विफल हुए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता प्रमाणित हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को अधिक वोट मिले थे लेकिन नोटा के कारण कई सीटें नाममात्र के अंतर में उसके हाथ से निकल गई थी। कमलनाथ सरकार के कार्यों से नाराज विधयकों के समर्थन से पुनः भाजपा सरकार बनी थी।

बिहार में लालू यादव की विरासत को जनादेश नहीं मिला। पांच वर्ष पहले ही राजद बिहार की राजनीति में हाशिये पर चला गया था। लोकसभा से लेकर विधानसभा तक उसका सँख्या बल बहुत कमजोर हो गया था। लेकिन पिछले आम चुनाव के पहले जेडीयू प्रमुख व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए। उन्होंने राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। नीतीश कुमार के पास भाजपा के साथ मिलकर हासिल की गई उपलब्धियां थी। इसी गठबंधन सरकार के कारण उन्हें सुशासन बाबू की प्रतिष्ठा मिली थी।

राजद और कांग्रेस के सहयोग से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन कांग्रेस और लालू यादव के दबाव में वह कमजोर हो गए थे। नीतीश कुमार ज्यादा समय तक यह दबाव बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थे। लालू यादव पर घोटालों के जैसे गहरे दाग थे, वह उनके उत्तराधिकारियों तक पहुंच गये थे। लालू ने अपने पुत्र तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री व दूसरे पुत्र तेजप्रताप को कैबिनेट मंत्री बनवाया था। इनपर मॉल निर्माण में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। उनके निर्माणाधीन मॉल में नियमों के पालन न होने के प्रमाण थे। इसे बिहार का सबसे बड़ा मॉल बताया जा रहा था। यह मसला कुछ शांत हुआ तो उपमुख्यमंत्री के खिलाफ अवैध संपत्ति के मामले खुलने लगे। इनके साथ सरकार चलाने से नीतीश की छवि धूमिल हो रही थी। तेजस्वी, मीसा और उनके पति की बेनामी संपत्ति का खुलासा हो रहा था। अन्य परिजनों के पास भी बेनामी संपत्ति की चर्चा शुरू हुई है।

तब सोनिया गांधी व राहुल गांधी बिहार की नीतीश सरकार को चलाना चाहते थे, जैसी संप्रग सरकार को चला रहे थे। लेकिन नीतीश और मनमोहन सिंह में बड़ा अंतर था। मनमोहन को जनाधार की राजनीति से लेना-देना नहीं था। लेकिन नीतीश जनाधिकार की राजनीति से आगे बढ़े हैं। अपनी इस छवि के प्रति सजग भी हैं। वस्तुतः कांग्रेस और राजद के साथ नीतीश का गठबंधन अस्वाभाविक था। इससे केवल नीतीश का ही नहीं बिहार का भी नुकसान हुआ। बिहार को जंगलराज से बाहर निकालने का श्रेय राजग सरकार को है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में विकास का माहौल बनाया।

विकास की यह यात्रा तेजी से आगे बढ़ रही है। बिहार में कोसी महासेतु परियोजना कांग्रेस सरकार के समय से लंबित थी, इसको पूरा कराया गया। मुद्रा योजना के तहत रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए। इस योजना के तहत बिहार को करीब एक लाख करोड़ रुपये दिए गए हैं। गांव किसान, गरीब, पिछड़ों, दलितों आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। छोटे किसानों, पशुपालकों मत्स्यपालक के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा लाई जा रही है। इसके लिए सरकार बीस हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इसका लाभ बिहार के किसानों को भी होगा। कृषि कानून में सुधार से किसानों को लाभ मिलेगा। उन्हें खेत के पास भंडारण की सुविधा मिलेगी।

बिहार में मेडिकल इंजीनियरिंग कॉलेज और एम्स खोले जा रहे हैं। बिहार को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से जोड़ा जा रहा है। बिहार प्रधानमंत्री ऊर्जा योजना से लाभान्वित होगा। जलालगढ़ अररिया होते हुए गैस पाइपलाइप बिछाने का काम चल रहा है। फारबिसगंज जोगबनी या फारबिसगंज सीतामढ़ी हाईवे का निर्माण महत्वपूर्ण है। पूर्णिया में एयरपोर्ट के विस्तारीकरण की प्रक्रिया भी चल रही है। गलगलिया अररिया रेललाइन का काम भी चल रहा है। बिहार में गैस ग्रिड का विस्तार हो रहा है। मतदाताओं ने ऐसे शासन को पसंद किया है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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