
नई दिल्ली: सरकार (Goverment) जरूरी दवाओं (Medicines) के कच्चे माल को सस्ता और सुरक्षित रखने के लिए नए कदम उठा रही है, लेकिन फार्मा इंडस्ट्री (Pharmaceutical Industry) के जानकार इससे उलटा असर पड़ने की आशंका जता रहे हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि कुछ अहम फार्मास्यूटिकल इनपुट्स पर मिनिमम इंपोर्ट प्राइस (MIP) तय करने से आम मरीजों पर बोझ बढ़ सकता है और सरकारी दवा खरीद व्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है.
ET की एक रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार पेनिसिलिन-जी (Pen-G) पर मिनिमम इंपोर्ट प्राइस लागू करने पर विचार कर रही है. साथ ही इसे 6-एपीए और एमोक्सिसिलिन जैसे दूसरे जरूरी इनपुट्स तक बढ़ाया जा सकता है. इन दवाओं का इस्तेमाल देश में बड़े पैमाने पर होने वाली एंटीबायोटिक्स बनाने में होता है. सरकार का मकसद चीन से सस्ते आयात और डंपिंग को रोकना है, ताकि घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को सहारा मिल सके.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि Pen-G कोई अकेला प्रोडक्ट नहीं है, बल्कि यह कई जरूरी एंटीबायोटिक्स की ‘मदर मॉलिक्यूल’ है. इससे बनने वाली दवाएं सरकारी अस्पतालों और प्राइमरी हेल्थ सिस्टम में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होती हैं. अगर इस पर प्राइस फ्लोर लगाया गया, तो दर्जनों जरूरी दवाओं की लागत अपने-आप बढ़ जाएगी. उनका मानना है कि बिना पुख्ता सबूत के इस तरह का फैसला लेने से दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो सरकारी योजनाओं पर निर्भर हैं.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकारी दवा टेंडर्स पहले से ही बेहद कम मार्जिन पर चलते हैं. मौजूदा कीमतों पर राज्यों द्वारा एमोक्सिसिलिन और उससे जुड़ी दवाओं की खरीद हजारों करोड़ रुपये में होती है. अगर कच्चे माल की लागत अचानक बढ़ी, तो कई सप्लायर्स नुकसान में चले जाएंगे. इससे टेंडर्स रद्द होने, दोबारा बोली लगाने और दवाओं की सप्लाई में देरी का खतरा बढ़ सकता है.
हालांकि सरकार घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहती है, लेकिन सच्चाई यह है कि देश की मौजूदा उत्पादन क्षमता जरूरत से काफी कम है. भारत अभी भी बड़ी मात्रा में Pen-G और 6-APA का आयात करता है. ऐसे में आयात पर सख्ती करने से सप्लाई की कमी हो सकती है, जिसका सीधा असर मरीजों पर पड़ेगा.
2020 में सरकार ने चीन पर निर्भरता कम करने के लिए PLI स्कीम शुरू की थी. लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर PLI के साथ-साथ हाई MIP भी लगाया गया, तो यह स्थायी सुरक्षा कवच बन सकता है. इससे कंपनियों पर लागत घटाने और उत्पादन बढ़ाने का दबाव कम हो जाएगा, जबकि बोझ सीधे मरीजों और सरकारी बजट पर आ सकता है/
इंडस्ट्री के जानकार मानते हैं कि घरेलू ढांचे को मजबूत करना जरूरी है, लेकिन इसके लिए संतुलित तरीका अपनाना होगा. उनका कहना है कि कीमतें तय करने की बजाय उत्पादन क्षमता बढ़ाने, ऑपरेशनल सुधार और स्केल बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि जरूरी दवाएं सस्ती भी रहें और सप्लाई भी बनी रहे.

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