बड़ी खबर

INS ‘विक्रांत’ से लेकर ‘विक्रमादित्य’ तक, ये जंगी जहाज बने नौसेना की ताकत


नई दिल्ली: 2 सितंबर 2002 को भारत उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा जो कि विमान वाहक बनाने की क्षमता रखते हैं. यह कामयाबी मिली है देश में आईएनएस विक्रांत के निर्माण से. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कोच्चि में कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा निर्मित देश के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को नौसेना को समर्पित कर दिया. यह भारत के समुद्री इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा जंगी जहाज है.

भारतीय नौसेना ने प्रेस रिलीज जारी करते हुए स्वदेशी युद्धपोत INS विक्रांत को आत्मनिर्भर भारत की दिशा में ऐतिहासिक क्षण बताया. INS विक्रांत भारत में बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा युद्धपोत है और भारतीय नौसेना के लिए स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित पहला विमानवाहक पोत है. भारतीय नौसेना के इतिहास में वर्ष 1957 बेहद अहम था, जब पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को बेलफास्ट में विजयलक्ष्मी पंडित द्वारा कमीशन किया गया था.

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दिखाई थी शक्ति
मूल रूप से एचएमएस हरक्यूलिस के रूप में पहचाने जाने वाले इस पोत को विकर्स-आर्मस्ट्रांग शिपयार्ड में बनाया गया था और साल 1945 में ग्रेट ब्रिटेन के मैजेस्टिक क्लास के जहाजों के एक हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया था. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इसे तैनात किया गया था. 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में आईएनएस विक्रांत ने तमाम संदेहों के बावजूद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. एक रिपोर्टों के मुताबिक, महज 10 दिनों में आईएनएस विक्रांत से 300 से अधिक उड़ानें भरी गईं, जो कि उम्मीद से कही ज्यादा थी.

वहीं आईएनएस विराट को भारत के सबसे पुराना विमानवाहक पोत होने का सम्मान प्राप्त है. इतना ही नहीं इसे दुनिया में सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाला युद्धपोत होने का भी दर्जा मिला है. भारतीय नौसेना के अनुसार, इसका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है. आईएनएस विराट को पहली बार 18 नवंबर 1959 में एचएमएस हेमीज़ के रूप में ब्रिटिश रॉयल नेवी में शामिल किया गया था. लंबे वर्षों तक सर्विस देने के बाद 1985 में इसे सेवामुक्त कर दिया गया था.


इस विमानवाहक पोत को 12 मई 1987 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया. पारंपरिक श्रेणी के विमानवाहक पोत विराट पर 1,500 सदस्यों का स्टाफ तैनात थ. इसका आदर्श वाक्य था “जलमेव यस्य बलमेव तस्य” (समुद्र को नियंत्रित करने वाला सर्व शक्तिशाली). 1989 में पहली बार आईएनएस विराट ने भारत-श्रीलंका संघर्ष के दौरान ऑपरेशन ज्यूपिटर में अपना जौहर दिखाया. इतना ही नहीं इसने 1999 के ऑपरेशन विजय में शामिल होकर पाकिस्तानी बंदरगाहों मुख्य रूप से कराची बंदरगाह को अवरुद्ध करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसके बाद ‘विराट’ ने भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के बाद 2001-2002 में हुए ऑपरेशन पराक्रम में अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया.

विक्रमादित्य ने बढ़ाई नौसेना की ताकत
16 नवंबर 2013 को भारतीय नौसेना में आईएनएस विक्रमादित्य विमानवाहक पोत शामिल हुआ. यह 1980 के शुरुआत में लॉन्च किया गया था और इसने 1987 से 1991 तक सोवियत संघ की नौसेना में अपनी सेवाएं दी थी. 45,000 टन वजनी यह युद्धपोत 30 से अधिक विमान और हेलीकॉप्टर ले जाने में सक्षम है. कुल 22 डेक की विशेषता के साथ इसमें 1,600 से ज्यादा अधिकारियों व कर्मचारियों के बैठने की क्षमता है. यह युद्धपोत भारतीय नौसेना का भविष्य है और इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. इसलिए इससे जुड़ी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है. ‘विशाल’ भारत का दूसरा स्वदेशी विमानवाहक पोत होगा, लेकिन विक्रांत के समक्ष नहीं होगा.

Share:

Next Post

शादी के 3 घंटे बाद उठी प्रेमिका की अर्थी, 8 माह की थी गर्भवती, जानें मामला

Fri Sep 2 , 2022
रामपुर: यूपी के रामपुर में बेहद चौंकाने वाला मामला प्रकाश में आया है. यहां शादी के 3 घंटे बाद ही नवविवाहिता की मौत हो गई. तीन साल तक चले प्रेम संबंध के बाद गुरुवार की शाम को युवती प्रेमिका से पत्नी बनी थी. वह 8 महीने की गर्भवती भी थी. रात में पति ने मायके […]