
लालू (Lalu) की बेटियों (daughters) ने घर छोड़ दिया… एक ने इल्जाम (accusation) लगाया… मां से लेकर भाई और उसके दोस्तों तक पर आरोप लगाया… चप्पलों से मारने का किस्सा सुनाया… बाकी तीन बहनों ने खामोशी को अपनाया… एक साथ चार-चार बेटियों के मायके छोडऩे का समाचार आया… लेकिन हकीकत यह है कि बेटियां मतलब के लिए मायके आई थीं… मतलब की मौत होते ही रिश्तों को श्मशान बनाने के लिए उन्होंने यह स्वांग रचाया… अपमान और तिरस्कार तो कई दिनों से हो रहा था, लेकिन एहसास और आभास तब हुआ, जब सत्ता हाथ से फिसल गई… हैसियत की हकीकत बहनों को पता चल गई… जिस भाई की ताजपोशी और सिंहासन के सपने सजाए… जब वो परिणामों ने मिटाए तो वीरान आंगन में मतलब की बहनें कैसे अपना संसार बसाती… इसीलिए मां-भाई पर तोहमतों के आरोप लगाए और अपने-अपने घर के रास्ते अपनाए… चप्पल तो वो चुनाव के पहले से खा रही थी… दुत्कार तो वह पहले पा रही थी… फिर चुनाव हारते ही अपमान समझ में आना और मान की परवाह करने लग जाना, और एक नहीं चारों का घर से निकल जाना यह बताता है कि बड़े घरों के रिश्तों की सोच कितनी छोटी होती है… लालू ने जंगलराज चलाया… अपहरण से लेकर अनेक अपराधों से पैसा कमाया… जमीन-जायदादों का राज-पाट बनाया… लेकिन यदि वो अपना घर ही नहीं संभाल पाए… वक्त ने अपने रंग दिखाए… बेटी की उधार की किडनी लेकर जीवन बचाया… जेलों में रहकर कैदी का जीवन बिताया तो कमाया-धमाया क्या काम आया… हर व्यक्ति को इसी धरती पर अपने कर्मों का हिसाब चुकाना पड़ता है… जो अहंकार को अपनी जीत समझता है वो अंदर ही अंदर इसी तरह तड़पता है… जो हाल बिहार के लालू का हुआ, वही उत्तरप्रदेश के मुलायमसिंह यादव परिवार का जमाने ने देखा… जिस बेटे को अपनी विरासत सौंपकर मुख्यमंत्री बनाया, उसी के खिलाफ बाप खड़ा नजर आया… चाचा-भतीजे की जंग ने पार्टी को कमजोर बनाया और पूरा परिवार संघर्ष के कांटों पर आया… सत्ता को अपनी जागीर समझने वाले राहुल भी इसीलिए संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि वक्त रहते सोनिया ने प्रियंका को पार्टी का मुखिया नहीं बनाया… बेटे और बेटी में फर्क दिखाया… इसीलिए न बेटे से विरासत संभल पाई और न बेटी के हाथ कुछ आया… दुनिया की समझ में यही आया…कितने छोटे होते हैं बड़े घरों के रिश्ते…संस्कारी संस्कार तो छोटे-छोटे घरों के रिश्तों में समाया…
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