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रूसी तेल खरीदी पर अमेरिका के प्रतिबंधों का असर, रिलायंस और भारत की तेल कंपनियां पीछे हटीं

October 24, 2025

नई दिल्‍ली । अमेरिका (America) ने हाल ही में रूस (Russia) की दो प्रमुख तेल कंपनियों- रोसनेफ्ट और लुकोइल पर नए प्रतिबंध लगाए हैं। इसके बाद भारत (India) की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और सरकारी तेल कंपनियां (Government oil companies) रूस से कच्चे तेल का आयात अस्थायी रूप से रोकने की तैयारी कर रही हैं। ये दोनों कंपनियां अब तक भारत को सबसे ज्यादा रूसी तेल निर्यात करने वाली इकाइयां रही हैं।

रिलायंस भारत में रूसी तेल की सबसे बड़ी उपभोक्ता कंपनी है। यह कंपनी इस कदम से सबसे ज्यादा प्रभावित होगी, क्योंकि कंपनी अपनी अधिकांश रूसी तेल की आपूर्ति रोसनेफ्ट के साथ दीर्घकालिक अनुबंध के तहत करती है। कंपनी के जामनगर स्थित 3.5 करोड़ टन क्षमता वाले रिफाइनिंग कॉम्प्लेक्स में करीब आधी फीडस्टॉक रूसी तेल से आती है। रिलायंस के प्रवक्ता ने रॉयटर्स से कहा, “रूसी तेल आयात की समीक्षा जारी है और रिलायंस सरकार के दिशा-निर्देशों के साथ पूरी तरह से तालमेल में रहेगी।”


नयारा एनर्जी पर भी संकट
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन प्रतिबंधों का असर नयारा एनर्जी पर भी पड़ेगा, जो आंशिक रूप से रोसनेफ्ट के स्वामित्व में है। कंपनी की गुजरात के वडिनार स्थित 2 करोड़ टन क्षमता वाली रिफाइनरी सितंबर से यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के चलते मुश्किल में है। अब रोसनेफ्ट पर अमेरिकी प्रतिबंध लगने से कंपनी के लिए उत्पाद बेच पाना और कठिन हो जाएगा।

सूत्रों के अनुसार, कंपनियां 21 नवंबर तक रूसी तेल की खेप प्राप्त कर सकती हैं। लेकिन इस बार का प्रतिबंध पहले से अधिक कठोर है- अब यह प्राइस कैप से जुड़ा नहीं है बल्कि प्रत्यक्ष रूप से कंपनियों पर टारगेटेड है, जिससे कट-ऑफ तारीख के बाद उन कंपनियों से आने वाला हर बैरल “दागदार” माना जाएगा।

भारत पर असर
इस वर्ष अब तक भारत के कुल कच्चे तेल आयात का 36% हिस्सा रूस से आया है, जिसमें से लगभग 60% आपूर्ति रोसनेफ्ट और लुकोइल ने की है।

इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि रूस से आने वाला तेल उनकी कुल खपत का 15-18% है। उन्होंने कहा, “यह कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन वैकल्पिक आपूर्ति पश्चिम एशिया, अफ्रीका या अमेरिका जैसे क्षेत्रों से की जा सकती है। हालांकि, सभी देश इन बाजारों की ओर रुख करेंगे, जिससे क्रूड ऑयल के बेंचमार्क दाम और प्रीमियम बढ़ेंगे। इसका असर रिफाइनिंग मार्जिन्स पर पड़ेगा। लेकिन इतिहास बताता है कि रूसी तेल किसी न किसी रास्ते बाजार में पहुंच ही जाता है, हालांकि बैंकिंग से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं।”

गुरुवार को ही ब्रेंट क्रूड की कीमत 5% (लगभग 2.9 डॉलर) बढ़कर 65.50 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई। एक अधिकारी ने कहा, “अच्छी बात यह है कि कीमतें अभी 60 डॉलर के आसपास हैं। अगर ये 70 डॉलर तक भी जाएं, तो स्थिति संभाली जा सकती है।”

अमेरिका और रूस में बढ़ता तनाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से भारत और चीन जैसे देशों पर रूसी तेल आयात घटाने का दबाव बना रहे हैं ताकि यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर रूस पर आर्थिक दबाव डाला जा सके। ट्रंप ने भारत पर 25% सेकेंड्री टैरिफ लगाया है जो मौजूदा 25% जवाबी टैरिफ के अलग है। इसके जवाब में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा, “यह रूस पर दबाव डालने का प्रयास है, लेकिन कोई भी आत्मसम्मान वाला देश या जनता दबाव में निर्णय नहीं लेती।” उन्होंने चेतावनी दी कि ऊर्जा बाजार का संतुलन तोड़ने से वैश्विक तेल कीमतें और बढ़ सकती हैं, जो अमेरिका जैसे देशों के लिए भी असहज स्थिति पैदा करेगी।

भारत को संभावित नुकसान
रियायती रूसी तेल की आपूर्ति बंद होने से भारत को वार्षिक तेल आयात बिल में 4-5 अरब डॉलर की अतिरिक्त लागत आ सकती है। भारत अपनी 85% तेल आवश्यकता आयात के माध्यम से पूरी करता है। रेटिंग एजेंसी ICRA का अनुमान है कि बाजार दरों पर वैकल्पिक आपूर्ति से तेल आयात बिल में करीब 2% की वृद्धि होगी, जो देश के सामान्य आर्थिक संकेतकों को प्रभावित कर सकती है।

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