
इन्दौर। इंदौर के कई युवा फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमा रहे हैं। कोई किसी फिल्म में, तो कोई टीवी शो में कलाकार है, तो कई कैमरे के पीछे अपना हुनर दिखा रहे हैं। ऐसे ही इंदौर के एक युवा इदराक हशमत ने हाल ही में रिलीज़ फिल्म ‘हक़’ में डायलेक्ट कोच की भूमिका निभाकर कलाकारों को इस्लामी तौर तरीका और उर्दू तल्लफुज़ सिखाया है। यूपी में हुए करीब 38 दिन के शूट और उससे पहले चली कुछ वर्कशॉप में भी इदराक का बड़ा रोल रहा है।
इदराक बताते हैं कि समय के साथ अब फिल्म इंडस्ट्री में कुछ चीजें बदली है। फिल्म के बैकग्राउंड से लेकर उससे जुड़ी हर बारीकियों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है और खासकर बातचीत और संस्कृति पर डायलेक्ट कोच की भूमिका होती है। फिल्म ‘हक़’ की कहानी पूरी तरह मुस्लिम किरदार के आसपास थी, इसलिए मुझसे बात की गई और स्क्रिप्ट पढऩे के बाद मैंने कुछ वर्कशॉप और फिर शूट में इसकी जिम्मेदारी उठाई। इदराक ने न केवल फिल्म में इमरान हाशमी और यामी गौतम को मुस्लिम लहजे और संस्कृति से परिचित कराया, बल्कि अन्य किरदारों को भी डायलॉग को लेकर प्रैक्टिस करवाई। साथ ही इस फिल्म के लिए कुछ डायलॉग भी लिखे हैं।
इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार मरहूम आदिल कुरैशी के बेटे इदराक शुरुआत से ही थिएटर से जुड़े रहे हैं और 2011 में इंदौर से मुंबई चले गए। वहां थिएटर करने के बाद एक फिल्म के किरदार को उर्दू सिखाने का मौका मिला और रास्ते खुलते गए। अभी वे मुख्य रूप से मुंबई में बतौर कास्टिंग डायरेक्टर काम करते हैं। इंदौर से संबंधित वेब सीरिज ‘घर वापसी’ में भी डायलेक्ट कोच की भूमिका में रह चुके हैं। अब आने वाली वेब सीरिज ‘पान पर्दा ज़र्दा’ में वे डायलॉग लिख रहे हैं। यह वेब सीरिज भोपाल, नीमच क्षेत्र पर बनाई जा रही है।
यूपी के गांव में किया शूट, बच्चे भी वहीं के
इदराक बताते हैं कि फिल्म ‘हक़’ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह एक औरत की इज़्ज़त और हक़ की बात कहती है, ना कि कोई प्रोपेगेंडा सेट करती है। इमरान और यामी दोनों ही कलाकारों ने इसे बहुत सकारात्मक तरीके से लिया। यामी ने कुरान की आयत से लेकर हर बात बारीकी से समझी और फिर पढ़ी। फिल्म के निर्देशक ने इसे ज़मीनी तौर पर जोडऩे के लिए यूपी के गांवों में इसका शूट किया है। जब दोनों किरदारों का निकाह होता है, तो बजाए किसी कलाकार को काज़ी बनाने के उस गांव के असल काज़ी को ही किरदार में लिया गया है। एक शूट बच्चों के साथ भी हुआ है। उस वक्त रमज़ान चल रहे थे और अधिकतर बच्चों ने रोज़ा रखा हुआ था। यामी ने इस बात को ध्यान में रखते हुए बच्चों के शूट के स्थान पर परदे लगवाए और छाया के इंतजाम किए, साथ ही कोशिश की कि बच्चों के साथ शूट लंबा ना चले।
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