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सिर्फ 6 माह के लिए भारत के 51वें CJI बने जस्टिस संजीव खन्ना, राष्ट्रपति ने दिलाई शपथ

November 11, 2024

नई दिल्ली. जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjeev Khanna) ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन (President’s House) में भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश (51st CJI) के रूप में शपथ ली. इससे पहले जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ रिटायर हुए थे. जस्टिस खन्ना के नाम की सिफारिश जस्टिस चंद्रचूड़ ने की थी. चंद्रचूड़ 10 नवंबर को 65 साल की उम्र में इस पद से रिटायर हुए. 14 मई 1960 को जन्मे जस्टिस संजीव खन्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई की. दिल्ली हाई कोर्ट के जज नियुक्त होने से पहले वे तीसरी पीढ़ी के वकील थे. उन्होंने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.


जनवरी 2019 से सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में कार्यरत न्यायमूर्ति खन्ना कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जैसे EVM की पवित्रता को बनाए रखना, चुनावी बॉन्ड योजना को खत्म करना, अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देना.

जस्टिस देव राज खन्ना के बेटे हैं जस्टिस संजीव खन्ना
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाले जस्टिस खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस देव राज खन्ना के बेटे और सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख पूर्व जज एच आर खन्ना के भतीजे हैं. जस्टिस संजीव खन्ना, जिन्हें 18 जनवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किया गया था, हाई कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त होने से पहले तीसरी पीढ़ी के वकील थे. वे लंबित मामलों को कम करने और न्याय वितरण में तेजी लाने के उत्साह से प्रेरित हैं.

1976 में चर्चा में आए थे जस्टिस संजीव खन्ना के चाचा
जस्टिस खन्ना के चाचा जस्टिस एच आर खन्ना इमरजेंसी के दौरान कुख्यात एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देकर सुर्खियों में आए थे. इमरजेंसी के दौरान मौलिक अधिकारों के हनन को बरकरार रखने वाले संविधान पीठ के बहुमत के फैसले को न्यायपालिका पर एक ‘काला धब्बा’ माना गया था.

हालांकि, जस्टिस एच आर खन्ना ने इस कदम को असंवैधानिक और कानून के शासन के खिलाफ घोषित किया और इसकी कीमत चुकाई क्योंकि तत्कालीन केंद्र सरकार ने उन्हें हटा दिया और जस्टिस एम एच बेग को अगला CJI बना दिया. जस्टिस एच आर खन्ना 1973 के केशवानंद भारती मामले में बुनियादी ढांचे के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाले ऐतिहासिक फैसले का हिस्सा थे.

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