ब्‍लॉगर

काशी को प्रधानमंत्री का खास दिवाली तोहफा

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 614 करोड़ रुपये की 30 विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। उन्होंने जिन परियोजनाओं का उद्घाटन किया उनमें सारनाथ लाइट एंड साउंड शो, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल रामनगर का उन्नयन, सीवरेज संबंधित कार्य, गायों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए बुनियादी ढांचागत सुविधाओं का प्रबंध, बहुउद्देशीय बीज भंडार गृह, 100 मीट्रिक टन कृषि उपज क्षमता वाले गोदाम, आईपीडीएस चरण-2, संपूर्णानंद स्टेडियम में खिलाड़ियों के लिये एक आवास, वाराणसी शहर के स्मार्ट लाइटिंग कार्य, 105 आंगनवाड़ी केंद्र और 102 गौ आश्रय केंद्र शामिल हैं। इसके अतिरिक्त दशाश्वमेध घाट और खिड़किया घाट का पुनर्विकास, पीएसी पुलिस बल के लिए बैरक, काशी के कुछ वार्डों का पुनर्विकास, बेनियाबाग में पार्क के पुनर्विकास के साथ पार्किंग सुविधा, गिरिजा देवी संस्कृत शंकुल में बहुउद्देश्यीय हॉल के उन्नयन सहित शहर में सड़कों की मरम्मत और पर्यटन स्थलों के विकास परियोजनाओं का शिलान्यास भी किया।

यह सब प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये किया। इसके बावजूद वे अपने लोगों से अपने मन की बात कहने, उनसे संवाद स्थापित करने में पीछे नहीं रहे। इसी साल फरवरी माह में उन्होंने चंदौली में काशी-महाकाल एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई थी। वाराणसी में 1254 करोड़ की लागत की 50 परियोजनाओं का उद्घाटन और 1200 करोड़ की लागत की विभिन्न विकास योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण भी किया था। वर्ष 2018 में उन्होंने वाराणसी को 2400 करोड़ रुपये की सौगात दी थी। रामनगर स्थित पहले वाटर वेज टर्मिनल का उद्घाटन किया था। वर्ष 2014 से अबतक वाराणसी का सम्यक विकास ही उनका अभीष्ठ रहा है। विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण भी उनकी विकास परिकल्पना का ही अंग है।

इसबार उन्होंने वाराणसी को जो दीपावली गिफ्ट दिया, वह लोगों को खूब भा रहा है। आजादी के आंदोलन में स्वदेशी अपनाओ का नारा दिया गया था। इस आंदोलन के तहत विदेशी सामानों की देशभर में होली जलाई गई थी। यह और बात है कि आजादी के बाद भारत में स्वदेशी आंदोलन कमजोर पड़ गया था। ‘निजभाषा उन्नति अहै सब धर्मन को मूल’ कहने वालों की भी तादाद घट गई और इसका असर यह हुआ कि देश पाश्चात्य भाषा, संस्कृति और उत्पादों के मकड़जाल में फंस गया। हालात यह है कि चीन सुई-धागे से लेकर लक्ष्मी-गणेश और झालर-बत्ती तक का उत्पादन करता रहा और भारत के कारीगर, कामगार बेरोजगार होते रहे। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल इस समस्या को जाना-समझा बल्कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोकल फॉर वोकल का नारा दिया। उन्हें पता है कि त्योहारी मौसम में ज्यादा खरीदारी होती है। इस लिहाज से अपने संसदीय क्षेत्र में लोगों से लोकल फॉर दीवाली को प्रमोट करने की अपील की है।

उन्होंने कहा है कि स्थानीय उत्पादों को खरीदने, उसका इस्तेमाल करने, उसका प्रचार करने, अच्छाई बताने से न केवल स्थानीय पहचान मजबूत होगी बल्कि स्थानीय उत्पादकों की दिवाली भी और रोशन हो जाएगी। उन्होंने देशवासियों से स्थानीय उत्पादों के प्रति मुखर होने, स्थानीय उत्पादों के साथ दीपावली मनाने का आग्रह किया है। उन्होंने इससे जहां पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था में नई चेतना के जागरण की बात की है, वहीं यह भी सुस्पष्ट करने की कोशिश की है कि लोकल के लिए वोकल बनने का अर्थ सिर्फ दीये खरीदना नहीं है, बल्कि हर स्थानीय चीज को खरीदना है। ऐसी चीज जो अपने देश में नहीं बन सकती, वही बाहर से ली जाए लेकिन जो चीज देश में बन सकती है, उसके लिए विदेशी उत्पादोंपर निर्भरता ठीक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका ऐसा विदेशी सामानों को गंगा में बहा देने का नहीं है बल्कि देश के उद्यमियों की अंगुली थामने, उनकी हौसलाअफजाई करने का है।

प्रधानमंत्री काशी से संवाद करें और बाबा विश्वनाथ और मां गंगा की बात न करें, ऐसा मुमकिन नहीं है। उन्होंने कहा है कि महादेव के आशीर्वाद से काशी कभी थमती नहीं है। मां गंगा की तरह लगातार आगे बढ़ती रहती है। कोरोना के कठिन काल में भी काशी आगे बढ़ती रही। इस बहाने अपनी उपलब्धियां गिनाने में भी वे पीछे नहीं रहे। कहा कि काशी में घाटों की तस्वीर बदल रही है। गांव में रहने वाले लोगों को, गांव की ज़मीन, गांव के घर का, कानूनी अधिकार देने के लिए ‘स्वामित्व योजना’ शुरू की गई है। उन्होंने इस बात का भी दावा किया है कि बाबतपुर एयरपोर्ट पर 2 पैसेंजर बोर्डिंग ब्रिज का लोकार्पण होने के बाद इन सुविधाओं का और विस्तार होगा। 6 वर्ष पहले जहां बनारस से हर दिन 12 उड़ानें हुआ करती थीं, आज यहां से उड़ानों की तादाद 50 के आस-पास हो गई है। काशी का बड़ा क्षेत्र अब बिजली के तारों के जाल की समस्या से मुक्त हो रहा है। तारों को अंडरग्राउंड करने का एक और चरण पूरा हो चुका है।

इससे अपने संसदीय क्षेत्र के प्रति उनके जुड़ाव और लगाव का भी बोध होता है। काशीवासी वोकल के प्रति कितने लोकल हो पाएंगे, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन स्वदेशी को आगे बढ़ाने का यह प्रयोग देशी उत्पादों और कारीगरों को मजबूती जरूर देगा, इसमें कोई शक नहीं है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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