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इंदौर में सड़क पर बेसुध मिले मासूम की किडनियां खराब, अस्पताल स्टाफ बना मददगार

October 24, 2025

इंदौर। पिता (Father) के निधन के बाद टूटी जिंदगी का बोझ जब एक 10 साल के बच्चे (Children) पर आ पड़ा, तो मासूमियत भूख और लाचारी (Hunger and Helplessness) के बोझ तले दब गई। मां (Mother) काम की मजबूरी में दूर रही और बच्चा अकेलेपन में तिल-तिल कर जीता रहा। हालात इतने बिगड़े कि वह सड़क पर बेसुध (Unconscious) होकर गिर पड़ा। इंदौर (INdore) के एक सामाजिक संस्था के सेवादारों की नजर उस पर पड़ी तो उसे तुरंत उठाकर अस्पताल ले गए और इलाज शुरू कराया।

जांच में पता चला कि मासूम की दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं। शरीर में सेप्टिक के साथ कई अंग फेल हो गए हैं और हालत गंभीर है। इस पर सेवादारों ने अस्पताल स्टाफ के साथ समन्वय करके उसकी देखभाल की जिम्मेदारी ली। साथ ही सेवादार उसके परिवार की तलाश में जुटे रहे। इसके लिए सोशल मीडिया की मदद ली गई। आखिरकार कोशिश सफल रही और उसकी मां को ढूंढ निकाला गया। मासूम की स्थिति अभी भी गंभीर है और सभी ईश्वर से उसके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ कर रहे हैं।

इंदौर में पिछले कई दिनों से हर ओर दीपोत्सव की तैयारियों की धूम थी। इसी दौरान 13 अक्टूबर की रात महाकाल संस्था के सेवादार पं. जय्यू जोशी, करीम पठान और अजय नागदा को मूसाखेड़ी चौराहा के पास एक 10 वर्षीय बालक सड़क पर बेसुध पड़ा मिला। उसके शरीर पर काफी सूजन थी और वह बोलने की स्थिति में नहीं था। सेवादारों ने उसे तुरंत इलाज के लिए सरकारी एमवाय अस्पताल पहुंचाया। उन्होंने बालक की नाजुक स्थिति की जानकारी डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया को दी। इसके बाद डॉ. जितेंद्र वर्मा (डिप्टी सुपरिटेंडेंट) ने न्यू चेस्ट वार्ड (पीडियाट्रिक) में उसका इलाज शुरू कराया।


बच्चे के परिवार का कोई पता नहीं चल पाया, इसलिए संस्था के सेवादार और अस्पताल का स्टाफ उसकी देखरेख और इलाज में जुट गए। इस दौरान वे ही उसका डायलिसिस कराते रहे और उसकी पूरी केयर करते रहे। बालक बीच-बीच में मां को याद कर रोता रहा, लेकिन न तो वह मां का नाम ठीक से बता पा रहा था और न ही घर का पता। इस पर सभी ने पहले उसका बेहतर इलाज कराने पर ध्यान दिया। साथ ही संस्था के सेवादारों ने उसके फोटो और वीडियो इंदौर सहित अन्य शहरों के वॉट्सऐप ग्रुप्स पर शेयर किए, ताकि परिवार का पता चल सके।

बीच-बीच में जब उसकी हालत थोड़ी ठीक हुई, तो उसने बताया कि उसका नाम अजय है। पिता का निधन हो चुका है और मां उसे छोड़कर चली गई है। वह केटरिंग का काम करती है और कई बार एक-दो महीने तक बाहर भी रहती है। इस बार ढाई महीने से वह बाहर गई है और पता नहीं कहां है?। उसके दो बड़े भाई हैं, जो अलग कहीं रहते हैं और उसकी परवाह नहीं करते। अजय दादी के पास रहता है, जो विकलांग होने के कारण बिस्तर पर है। वह दादी का नाम और पता भी नहीं बता पाया। इस पर सभी ने उसे हिम्मत दी कि उसका अच्छा इलाज कराया जाएगा और उसकी मां से मिलवाया जाएगा। वे उसे परिवार जैसा प्यार और स्नेह देते रहे।

इस बीच 10 दिनों में उसका पांच बार डायलिसिस हो चुका है। उसे सेप्टिक हो चुका है और कई अंग फेल हो गए हैं, जिसका इलाज लंबा चलेगा। उधर, 22 अक्टूबर की रात आजाद नगर थाने के कॉन्स्टेबल राहुल सिंह ने वॉट्सऐप ग्रुप पर बालक के फोटो देखे और संस्था के जय्यू जोशी को बताया कि बालक का परिवार भील कॉलोनी में रहता है।

इस पर रात में ही अजय की मां को अस्पताल बुलवाया गया। इस दौरान बालक के मामा विजय डामोर भी साथ थे। जैसे ही मां ने बच्चे को पलंग पर मशीनों के सहारे देखा और शरीर पर लगी नलियों को देखा, वह फूट-फूटकर रो पड़ी। उधर, बीमार अजय के चेहरे पर भी मुस्कान आई और आंखें नम हो गईं। इस दौरान वार्ड में मौजूद हर कोई इस दृश्य को देखकर भावुक हो गया।

मां बन्नो ने बताया कि मुझे नहीं मालूम था कि बेटा अजय इतनी गंभीर हालत में है और उसे किडनी की बीमारी है। जब वह ढाई महीने पहले इंदौर से बाहर गई थी, तब उसकी हालत अच्छी थी। जब पूछा गया कि फिर दादी और परिवार ने उसे क्यों नहीं ढूंढा, तो बन्नो ने साफ कहा कि उन्हें नहीं पता कि उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। वहां देवर और ननद के परिवार भी अलग-अलग रहते हैं। फिलहाल, वह अपनी देखभाल कर रही हैं।

घर से 10 दिनों से गायब अजय को लेकर न तो दादी के परिवार ने खोजने की कोशिश की और न ही मां ने, जबकि मां तो ढाई महीने बाद अब उससे मिली है। उसने दोहराया कि उसे पहले किडनी की बीमारी नहीं थी। डॉक्टरों ने मां को बताया कि अजय की हालत नाजुक है। उधर, अजय अभी कमजोरी के कारण बहुत कम बोल पा रहा है। उसने मां से कहा- मैं अब नहीं बचूंगा। बार-बार वह मां को प्यार भरी निगाहों से देखता है और चाहता है कि वह उसके पास बैठे और उसे छोड़कर न जाए। बन्नो ने कहा कि अजय के ठीक होते ही वह उसे अपने साथ घर ले जाएगी।

डॉ. जितेंद्र वर्मा ने बताया कि जब अजय को संस्था द्वारा अस्पताल लाया गया था, तो उसकी हालत काफी गंभीर थी। जांच में पता चला कि उसकी दोनों किडनियां पूरी तरह खराब हो चुकी हैं। उसका क्रिएटिनिन और यूरिया काफी बढ़ा हुआ था, हीमोग्लोबिन बहुत कम था और अन्य तकलीफें भी थीं। इसके बाद तत्काल उसका डायलिसिस शुरू कराया गया। इस दौरान उसे संभालने की जिम्मेदारी संस्था के सदस्यों और नर्सिंग स्टाफ ने व्यक्तिगत तौर पर ली।

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