ब्‍लॉगर

आप भी तो नहीं हो रहे लूट के शिकार ?

– डॉ. अजय कुमार मिश्रा

हम अक्सर विभिन्न माध्यमों से सुनते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट कम कर दिया है, जिसका असर यह पड़ेगा कि विभिन्न लोनधारकों की लोन ईएमआई में कमी आयेगी। यानी लोनधारकों को कम ईएमआई देनी पड़ेगी। पर क्या इसका लाभ वास्तव में मौजूदा ग्राहकों को मिलता है? यह अपने आपमें रहस्य से कम नहीं है। जानकारी का आभाव कहिये या फिर बैंको की मनमानी, इसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ रहा है। यह हालात तब है जबकि रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया, बैंकों पर कड़ी निगरानी करता है। आपको एक-दो नहीं अनेकों लोग मिल जायेंगे जो इस लाभ से आजतक वंचित हैं और शायद अगले कई वर्षों तक वंचित रहेंगे। इसे समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या है।

रेपो रेट : वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को ऋण देते हैं। रेपो रेट कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाते हैं, जैसे कि होम लोन, व्हीकल लोन इत्यादि।

रिवर्स रेपो रेट : वह दर होती है जिसपर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। ये दो मुख्य माध्यम है जिसके जरिये रिजर्व बैंक बाजार में नगदी को नियंत्रित करता है। यानि रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आता है। बाजार में जब भी बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दे। इसके ठीक विपरीत जब बाजार में नकदी की कमी होती है तो रिजर्व बैंक रेपो रेट में कमी कर देता है, जिससे आम जनता को कम ब्याज दर पर लोन मिलने लगता है और बाजार में नकदी बढ़ जाती है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बात को महसूस किया था कि रेपो रेट में कमी करने के लाभ को बैंक लोनधारको को स्थानांतरित नहीं कर रहे हैं इसलिए उन्होंने 24 जुलाई 2017 को इंटरनल स्टडी ग्रुप बनाया जिसका मुख्य उद्देश्य रेपो रेट में कमी होने के लाभ को ग्राहकों तक कैसे पहुचाया जाये, इसपर रिपोर्ट देनी थी। 25 सितम्बर 2017 को स्टडी ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक आफ इंडिया ने 1 अक्टूबर 2019 से यह अनिवार्य कर दिया कि कोई भी नया लोन रेपो रेट लिंक्ड ही होगा। यानी रेपो रेट में कमी होने पर लोन की ईएमआई स्वतः कम हो जाएगी और रेपो रेट में वृद्धि होने पर लोन की ईएमआई बढ़ जाएगी। ठीक फिक्स्ड डिपोजिट और आर.डी. की तरह जहाँ बैंक तुरंत परिवर्तन लागू कर देते हैं।

अक्टूबर 2019 के पहले के मौजूदा सभी लोन ग्राहकों को बैंक द्वारा सूचित करना था कि अपना लोन स्वैच्छिक रूप से रेपो रेट लिंक्ड में परिवर्तित करा लें परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई बड़े बैंकों ने इसको आजतक जरूर नहीं समझा। इसके पहले बैंक द्वारा 01 जुलाई 2010 से बेस रेट सिस्टम और 1 अप्रैल 2016 से MCLR सिस्टम पर लोन दिया जा रहा था। जो कहीं न कहीं वर्तमान रेपो रेट लिंक्ड लोन से कम फायदेमंद है। यदि आप अपने बैंक की शाखा में जाकर रेपो रेट लिंक्ड ब्याज दर में अपना मौजूदा लोन परिवर्तित कराते हैं तो नोमिनल प्रोसेसिंग चार्ज के साथ निर्धारित समयावधि पश्चात् परिवर्तित हो जायेगा और बैंक आपसे कहेगा कि मौजूदा ईएमआई ही आपको देनी है, इससे आपके लोन का प्रिंसिपल जल्दी कम होगा और निर्धारित लोन अवधि के पूर्व ही आपका लोन पूरा हो जायेगा। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ने भी खेद जताया था कि बैंक रेपो रेट में कमी का लाभ आम जनता को नहीं दे रहे हैं।

वास्तविक समस्या तब फेस करनी पड़ेगी जब आप लोन की ईएमआई को कम करने की बात कहेंगे। 1000 में से 999 ग्राहकों को बैंक समझा-बुझाकर या अधूरे नियमों का हवाला देकर यह मना लेता है कि ईएमआई में कोई परिवर्तन न करना उनके हित में है और लोन अवधि के पहले पूरा करना बड़ा लाभ। जबकि रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया का उद्देश्य यह है कि लोनधारकों की जेब पर ईएमआई के भार को कम किया जा सके। इससे आम आदमी अपनी कई जरूरी कार्यों को भी पूरा कर सके।

मेरा स्वयं का अनुभव भी आम जनता जैसा ही रहा है। सार्वजानिक बैंक की ब्रांच में लोन को रेपो रेट लिंक्ड ब्याज दर में परिवर्तित कराने पर ब्रांच द्वारा यह बताया गया कि लोन की ईएमआई कम नहीं होगी, यह असंभव है बल्कि लोन अवधि जल्दी पूरा हो जायेगा। ब्रांच में लिखित निवेदन करने के 25 दिनों के पश्चात् कोई कार्यवाही नहीं की गयी, बैंक के ज़ोन ऑफिस में जाने के पश्चात, ब्रांच की तरह ही जवाब मिला। जब रिक्वेस्ट लैटर को बैंक के एमडी तक भेजा गया और व्यक्तिगत रूप से बात की गयी तो पूरे एक महीने पांच दिन बाद लोन की ईएमआई को परिवर्तित किया गया। एक लम्बी और जटिल प्रक्रिया और सिस्टम से लड़ना सबके बूते की बात आज के आधुनिक समाज में भी नहीं है, ऐसे में अनेकों ग्राहक आज भी वित्तीय भार से दबे हुए हैं और अपनी कई जमीनी जरूरतों का त्याग करके भारी भरकम ईएमआई भर रहे हैं।

आज भी करोड़ों कर्जधारक बैंक की मनमानी का शिकार हो रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि इसकी जानकारी रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया को भी है, फिर भी आम आदमी ईएमआई के भार में दबा हुआ है। कहने को तो बैंकों के शिकायत अधिकारी हैं पर वहां तक मात्र .0001 प्रतिशत लोग ही पहुँच पाते हैं जिनमे से अधिकांश को समझा-बुझाकर वापस कर दिया जाता है। बैंकिंग ओम्बड्समैन आज भी आम आदमी की समझ से दूर है। अब जरूरत है रिजर्व बैंक को बड़े और कड़े निर्णय लेने की और न केवल सभी बैंको को अनिवार्य रूप से निर्देशित करें कि मौजूदा ग्राहकों द्वारा रेपो रेट लिंक्ड ईएमआई में परिवर्तित कराने पर ईएमआई स्वतः ही कम हो जाये यदि कोई लोनधारक पुरानी ईएमआई देना चाहे तो उससे शपथपत्र लिया जाये। सभी बैंक अनिवार्य रूप से अपने मौजूदा लोन ग्राहकों को अगले 6 माह में रेपो रेट लिंक्ड ब्याज दर में शामिल होने के लिए लिखित सूचना प्रेषित करें और विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से आम आदमी में जागरुकता लायी जाये जिससे आम आदमी के हितों को संरक्षित किया जा सकें। बैंक और नॉन बैंकिंग फाइनेंस कम्पनी के लोन दर में समानता लायी जाये।

रेपो रेट लिंक्ड लोन के लाभ को छोटे-से उदहारण से समझा जा सकता है। 50 लाख के होम लोन, 15 वर्ष की अवधि, 8.5 प्रतिशत की दर से ब्याज को, MCLR लोन रेट की अपेक्षा रेपो रेट लिंक्ड लोन में होने पर 6.57 लाख रुपये की ब्याज दर में कमी का लाभ लिया जा सकता है। यानी रेपो रेट लिंक्ड कहीं बेहतर है आम आदमी के लिए। बैंकों द्वारा लूट का खेल जारी है जिसमें सार्वजनकि क्षेत्र के बैंक भी पीछे नहीं हैं। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है?

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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