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Madhya Pradesh : सागर के किसान ने बताया 100 साल तक जीने का फार्मूला, ऐसी चक्की बनाई जिसका आटा खाने से बढ़ेगी उम्र

सागर: 12वीं पास किसान (Farmer)  ने कमाल कर दिया. ऐसा प्रयोग किया, जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है. आकाश चौरसिया (Akash Chaurasia) ने एक ऐसी चक्की (Mill) तैयार की है, जिसका आटा (flour) खाने से आपकी उम्र (age) बढ़ जाएगी. हैरान मत होइए, यह सच है. दरअसल, आकाश ने हाथ से घुमाने वाली चक्की को इलेक्ट्रॉनिक (electronic) रूप से तैयार किया है. उनका दावा है कि इसमें पिसने वाले अनाज में पोषक तत्व सुरक्षित रहेंगे, ऐसा आटा खाने से शरीर को ताकत मिलेगी, जिसकी वजह से लोग बीमार कम पड़ेंगे. बीमार नहीं होंगे तो स्वस्थ रहेंगे और स्वस्थ रहने की वजह से लोगों की आयु बढ़ेगी.


दरअसल, यह चक्की पुरातन व्यवस्था पर आधारित है. पुराने जमाने में लोग हाथ चक्की का पिसा अनाज खाते थे, जो उनकी सेहत का सबसे बड़ा राज था. यही वजह थी कि हमारे पूर्वज बुढ़ापे में भी तंदुरुस्त रहते थे और 100 साल से ज्यादा बिना किसी बीमारी के जीते थे. आकाश ने बताया कि हाथ चक्की से पिसने वाले गेहूं में फाइबर सुरक्षित रहता है, जिससे डाइजेशन बेहतर होता है. पेट में गैस नहीं बनती और कब्ज भी नहीं होता. पेट साफ रहता है. इससे खूब भूख लगती है, जबकि मशीन में पिसे गेहूं के आटे में कई पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं.

1 मिनट में 8-10 राउंड चलेगी ये चक्की
लोग हाथ चक्की को 1 मिनट में 8 से 10 राउंड चलकर आटा पीसते थे, वैसे ही यह चक्की भी बिजली के जरिए 1 मिनट में 8 से 12 राउंड चलती है. इसमें आटे के साथ दाल, दलिया और मसाले भी पीस सकते हैं. इसके लिए इसकी सेटिंग चेंज करनी पड़ेगी. हालांकि, यह चक्की आज की आधुनिक मशीन वाली चक्की की तरह फटाफट गेहूं नहीं पीसेगी. इसे अगर 8 घंटे तक चलाएंगे तो 10-12 किलो आटा मिलेगा.

किसानों को भी खिला रहे यही आटा
15 साल से जैविक खेती कर रहे कपूरिया निवासी आकाश चौरसिया ने बताया कि समाज को अच्छा खाना मिल सके, इसके लिए वह प्रयोग कर रहे हैं. आकाश खुद तो इसी चक्की का आटा खा ही रहे हैं, उनके पास प्रशिक्षण लेने आने वाले किसानों को भी इसी आटे से बने पकवान खिलाते हैं. इस चक्की के बारे में बताते हैं. आकाश ने कोल्हापुर, जयपुर आदि जगहों से इसका सामान खरीद कर एकत्रित किया, फिर इस पर काम किया. करीब 5 साल में हाथ के जैसे चलने वाली बिजली की चक्की तैयार की है. इसकी लागत 60 हजार रुपये आई है.

इस चक्की में से फाइबर सुरक्षित
सानोधा गांव की द्रोपदी बाई बताती हैं कि बुंदेलखंड में दो-तीन दशक पहले तक हर घर में हाथ चक्की से आटा, दाल, दलिया पीसी जाती थी. इसकी वजह से इसमें मौजूद पोषक तत्व पूरी तरह से सुरक्षित रहते थे. हाथ की चक्की से समय जरूर लगता था, लेकिन इससे बने पकवान खाने वाले लोग लंबे समय तक स्वस्थ रहते थे. आधुनिक समय में लोग हर काम को जल्दी करना चाहते हैं. आटा भी जल्दी से पिस जाए, इसके लिए वह बिजली से चलने वाली चक्की पर निर्भर हो गए हैं. बिजली की चक्की से गर्म आटा निकलता है, जो अनाज में मौजूद फाइबर को खत्म कर देता है. यह उतना पोषण नहीं दे पता है, जितनी शरीर को जरूरत होती है. इसी वजह से लोग जल्द बीमार हो जाते हैं.

20,000 घंटे चलने के बाद ये काम करना होगा
आकाश चौरसिया बताते हैं कि हाथ की चक्की से आटा पीसने में बहुत टाइम लगता है. आज के समय में न तो इसके लिए लेबर मिलते हैं और न ही किसी के पास इतना समय है कि वह आराम से इसको चलाता रहे. इसलिए इसे बिजली से चलने वाली चक्की के रूप में तैयार किया है. कोल्हापुर से पत्थर मंगवाए थे, जयपुर में इसका स्टील फैब्रिक करवाया, मोटर दूसरी जगह से मंगवाई और छोटे-छोटे कुछ पार्ट हैं, जो इधर-उधर से आए हैं. करीब 5 साल में इस चक्की को तैयार कर पाए हैं. मेंटेनेंस के लिए इस चक्की के 20,000 घंटे चलने के बाद इसके पत्थरों में टांके लगवाने होंगे.

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