
नई दिल्ली. सजायाफ्ता अपराधियों (Convicted criminals) के चुनाव (elections) लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध (Lifetime ban) की मांग वाली जनहित याचिका (Public interest litigation) पर आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई होनी है. साल 1951 में बने कानून के मुताबिक, सजायाफ्ता अपराधियों के चुनाव लड़ने पर सिर्फ 6 साल का प्रतिबंध है लेकिन उन पर राजनीतिक पार्टी बनाने या पार्टी पदाधिकारी बनने पर कोई रोक नहीं है.
याचिका में सजायाफ्ता लोगों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की गुहार लगाई गई है. इसके साथ ही किसी भी राजनीतिक दल में पदाधिकारी बनने से भी आजीवन वंचित रखे जाने का आदेश देने की अपील की गई है.
मौजूदा वक्त में क्या कानून?
साल 1951 में जनप्रतिनिधि कानून आया था. इस कानून की धारा 8 में प्रवाधान है कि अगर किसी सांसद या विधायक को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है, तो रिहाई के बाद से लेकर अगले 6 साल तक वो चुनाव नहीं लड़ सकेगा.
धारा 8(1) में उन अपराधों का जिक्र है, जिसके तहत दोषी ठहराए जाने पर चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती है. इसके तहत, दो समुदायों के बीच घृणा बढ़ाना, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म जैसे अपराधों में दोषी ठहराए जाने पर चुनाव नहीं लड़ सकते.
इस कानून की धारा 8(3) में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो तत्काल उसकी सदस्यता चली जाती है और अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है. इसे ऐसे समझिए कि अगर किसी सांसद या विधायक को किसी आपराधिक मामले में दो साल की सजा होती है, तो कुल मिलाकर उसके चुनाव लड़ने पर 8 साल तक रोक रहती है.
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