
गोरखपुर। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गोरखपुर (Gorakhpur) जिले के शाहपुर आवास विकास कॉलोनी में रहने वाली 6 साल की नन्ही गरिमा उर्फ परी स्पाइनल की एक गंभीर बीमारी से ग्रसित है। उसको फिर से अपने पैरों पर खड़े होने के लिए 22करोड़ की आवश्यकता है। उसके इलाज में लगने वाले इंजेक्शन की कीमत 22 करोड़ है। परी के पिता मुक्तिनाथ गुप्ता गोरखपुर के ही निजी चिकित्सक की गाड़ी चलाते हैं।
पिता का कहना है कि 2011 में जब उनकी शादी कुशीनगर की ममता गुप्ता से हुई तो घर में खुशियों की बहार आ गई। शादी के बाद दो बच्चे पैदा हुए। जिसमें 9 साल के अनिकेत जो तीसरी के छात्र है और 6 साल की प्यारी सी मासूम गरिमा उर्फ परी है। पिता मुक्तिनाथ गुप्ता का कहना है कि बच्ची के पैदा होने के बाद उसकी स्थिति देखकर इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले गए, पर डॉक्टर ने कैल्शियम, विटामिंस की गोली देकर भेज दिया और कहा कि धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी।
जब स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ तो मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में भी दिखाया, वहां भी जांच पड़ताल के बाद कोई फायदा नहीं दिखा। बाद में बिटिया पूरी तरह हम पर निर्भर हो गई। न तो चल सकती थी और न ही उठ बैठ सकती थी। थक हार कर जब उसे इलाज हेतु दिल्ली एम्स ले गए तो वहां पता चला की परी स्पाइनल मस्कुलर एंट्रॉफी जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है। जिसका इलाज बहुत महंगा है।
बच्ची की मां ममता गुप्ता कहती है कि बच्ची की चिंता हर वक्त सताती रहती है। जब स्कूल में रहती है तो मन हर वक्त सशंकित रहता है कि बच्ची कैसी होगी। चूंकि उसको जरा भी धक्का लग जाता है तो गिर जाती है। फिर उठ नहीं सकती। हालांकि स्कूल प्रबंधन बच्ची का पूरा ख्याल रखता है। परिजन पीएम मोदी और सीएम योगी से गुहार लगाते हुए कहते हैं कि उनकी हैसियत नहीं कि अपनी बेटी का इलाज करा सके। ईश्वर और लोगों की दुआओं पर भरोसा रखते हुए अपील करते हैं कि सरकार उनकी मदद करें जिससे उनकी बेटी अपने पैरों पर चल सके।
प्रोग्रेसिव स्पाइनल मस्कुलर एंट्रॉफी की गंभीर बीमारी है। इससे मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है और उसमें ताकत नहीं रहती। कमर के नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर देता है। इस बीमारी में बार-बार निमोनिया भी होता है। यह बीमारी जीन में होती है ,जो तंत्रिका तंत्र के सुचारू रूप से काम करने के लिए जरूरी प्रोटीन के निर्माण को बाधित कर देता है। इससे तंत्रिका तंत्र पूरी तरह नष्ट हो जाता है और मांस पेशियों को कमजोर कर देता है। मरीज को सांस लेने में भी दिक्कत होती है।
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