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MP में OBC वर्ग को 27% आरक्षण से जुड़ी याचिका पर SC जल्द सुनवाई के लिए तैयार…

June 21, 2025

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में OBC को 27 प्रतिशत आरक्षण (27 percent Reservation) की मांग से जुड़ी याचिका पर जल्द सुनवाई को तैयार हो गया है। कोर्ट ने शुक्रवार को याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने को कहा। जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की।

राज्य में ओबीसी समुदाय के सदस्यों द्वारा दायर याचिका में 2019 में मध्य प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित कानून को लागू करने की मांग की गई है। इसमें ओबीसी कोटा 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया गया था। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा स्नातकोत्तर चिकित्सा प्रवेश परीक्षा के लिए एमबीबीएस छात्र को दिए गए स्थगन के आधार पर ओबीसी के लिए बढ़े हुए कोटे का लाभ देने से इनकार कर रही है।


इससे पहले कांग्रेस ने भाजपा के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार पर कानूनी बाधा का हवाला देते हुए 2019 में कांग्रेस सरकार द्वारा पारित कानून को जानबूझकर लागू नहीं करने का आरोप लगाया था। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा 8 मार्च 2019 को एक अध्यादेश लाया गया था, जिसमें नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में ओबीसी कोटा को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मांग की गई थी।

अध्यादेश को एमबीबीएस छात्र ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने स्नातकोत्तर चिकित्सा परीक्षा की प्रवेश परीक्षा के लिए अध्यादेश के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी। इसके बाद जुलाई 2019 में राज्य विधानसभा ने अध्यादेश को बदलने के लिए कानून पारित किया।

याचिका में दावा किया गया है कि मध्य प्रदेश में 50 प्रतिशत ओबीसी आबादी होने के बावजूद आरक्षण कोटा केवल 14 प्रतिशत है। याचिका में आगे कहा गया है कि मध्य प्रदेश सरकार लगभग सभी भर्ती प्रक्रियाओं में उक्त संशोधन का लाभ देने के लिए अधिनियम को लागू करने में विफल रही है।

याचिका में कहा गया है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा कानून के प्रवर्तन पर रोक लगाने के लिए कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया गया है। याचिका में आगे कहा गया है कि कानून के क्रियान्वयन पर मध्य प्रदेश के महाधिवक्ता कार्यालय की कानूनी राय और कोर्ट में लंबित मुकदमे के आधार पर ही रोक लगाई गई है। याचिका में तर्क दिया गया है कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित कानूनों में संवैधानिकता की धारणा होती है और ऐसे कानूनों को लागू किया जाना चाहिए, भले ही उन्हें कोर्ट में चुनौती दी गई हो।

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