नई दिल्ली। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (global pandemic corona virus) पूरी दुनिया में तेजी से फैलता जा रहा है, हालांकि इसे काबू करने के लिए सभी देशों में टीकाकरण और बूस्टर डोज (booster dose) को लेकर भी अभियान चलाया जा बड़े युद्ध स्तर पर रहा ह। इस बीच वैज्ञानिकों ने चेताया है कि मौजूदा वायरस पर बूस्टर डोज कारगर नहीं है।
बता दें कि विशेषज्ञों कहना है कि अब हमें बूस्टर पर काम करने के बजाय ऐसे टीके तैयार करने की दिशा में लगना चाहिए जो कि कोरोना के नए स्वरूपों से ज्यादा ताकत से लड़ सके। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी आगाह किया है कि मौजूद टीकों की बूस्टर डोज (Booster Dose) पर्याप्त नहीं है और संक्रमण से बचाव के लिए अब प्रभावी वैक्सीन बनाने की जरूरत है। WHO के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि ऑरिजिनल कोविड टीकों (Original Covid Vaccines) की बूस्टर खुराक को दोहराना उभरते हुए वेरिएंट के खिलाफ उचित रणनीति नहीं है।
कोरेाना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट से लड़ने के लिए पूरी दुनिया में बूस्टर डोज की रणनीति अपनायी जा रही है, मगर वैज्ञानिक भविष्य में सामने आने वाले संभावित वैरिएंट के खिलाफ इस रणनीति को स्थायी समाधान नहीं मानते।
ओमिक्रॉन से बूस्टर की सीमाएं पता लगीं
मैसाचुसेट्स स्थित रैगन इंस्टीट्यूट के एक प्रतिरक्षा विशेषज्ञ एलेजांद्रो बालाज का कहना है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट ने बूस्टर को लेकर अब सोच बदल दी है। पहले संक्रमण की चपेट में आए किसी व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा को टीका लगवा चुके व्यक्ति के बराबर समझा जाता था। मगर ओमिक्रॉन जैसे बेहद संक्रामक वैरिएंट के आने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि पहले संक्रमित हो चुके व्यक्ति के शरीर में इतनी ज्यादा क्षमता नहीं है कि वह आगे भी संक्रमण से मजबूती से लड़ सकेगा।
जैसे ही ओमिक्रॉन का प्रसार हुआ, वैक्सीन लगवा चुके लोगों के इम्युनिटी स्तर को बढ़ाने के लिए बूस्टर का इस्तेमाल शुरू हो गया। इस तरह संक्रमण के मामलों को घटाने और अस्पतालों पर बोझ कम करने का प्रयास किया गया जो कि एक हद तक सफल भी रहा। मगर बूस्टर डोज के एक साथ एक बड़ी चिंता यह है कि यह संक्रमण को बहुत लंबे वक्त तक रोक नहीं सकती।
बूस्टर की प्रतिरक्षा ओमिक्रॉन पर तेजी से घट रही
ब्रिटेन में साल 2021 के अंत तक एकत्र किए गए रियल वर्ल्ड डाटा से पता लगा कि बूस्टर से मिलने वाली प्रतिरक्षा डेल्टा के मुकाबले ओमिक्रॉन वैरिएंट के खिलाफ तेजी से घट सकती है। एक अन्य प्री-प्रिंट अध्ययन से पता लगा कि तीसरी बूस्टर डोज से मिलने वाली प्रतिरक्षा कुछ महीनों के भीतर ही उसी तरह घट जाएगी, जैसे पहले दो डोज से विकसित हुई प्रतिरक्षा। इस अध्ययन का कहना है कि यह प्रतिरक्षा अधिकतम चार महीने ही चलेगी।
भविष्य के वैरिएंट पर बूस्टर कारगर नहीं
ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय की संक्रामक प्रतिरक्षा विशेषज्ञ माइल्स डेवनपोर्ट का कहना है कि मौजूदा टीकों की बार-बार बूस्टर खुराक देने से भविष्य में पैदा होने वाले कोरोना के स्वरूपों के खिलाफ प्रतिरक्षा कम मिलेगी, यह रणनीति लंबी अवधि में कारगर नहीं है।
डब्लूएचओ ने भी चेताया
बीते 11 जनवरी को डब्लूएचओ ने बूस्टर को लेकर दुनिया को चेताया था। डब्लूएचओ ने कहा कि मूल वैक्सीन संरचना की बार-बार बूस्टर खुराक लगाने की रणनीति एक उचित या टिकाऊ नहीं है।
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