
नई दिल्ली । बीते जून महीने में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर कदम रखकर इतिहास(History) रचने वाले अंतरिक्ष यात्री(astronaut) शुभांशु शुक्ला(Shubhanshu Shukla) ने हाल ही में अपनी इस यादगार यात्रा का अनुभव साझा किया है। बुधवार को एक कार्यक्रम में शुभांशु ने कक्षीय प्रयोगशाला में बिताए समय, ‘लिफ्ट-ऑफ’ और ‘स्प्लैशडाउन’ के दौरान ‘जी-फोर्स’ के अनुभव, जीरो ग्रैविटी का अनुभव और अंतरिक्ष यात्रा के बाद पृथ्वी पर जीवन में फिर से ढलने के बारे में बातचीत की। इस दौरान उन्होंने बताया है कि किस तरह ISS पर अपने 18 दिनों के प्रवास के दौरान किए गए माइक्रो ग्रैविटी से जुड़े प्रयोगों के नमूने इकट्ठा के लिए उन्हें तीन घंटे तक अपने ही चारों ओर घूमना पड़ा था।
शुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम-4 मिशन के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मेरा उद्देश्य आपको अपने साथ इस यात्रा पर ले जाना और सुनना है कि मैंने क्या अनुभव किया है, ताकि आप इस अंतरिक्ष उड़ान को मेरे साथ महसूस कर सकें।’’ शुक्ला ने बताया कि उन्होंने एक थैली से नमूने निकालने के लिए सिरिंज का इस्तेमाल करते हुए कम से कम तीन घंटे खुद को घुमाया, ताकि यह अध्ययन किया जा सके कि सूक्ष्म शैवाल, जो घने पोषण का स्रोत है, अंतरिक्ष में कैसे बढ़ता है।
उन्होंने कहा, ‘‘पृथ्वी पर, जब किसी सिरिंज में हवा का बुलबुला होता है, तो आप उसे थोड़ा सा दबा सकते हैं और हवा का बुलबुला बाहर निकल जाएगा, या थैली को उल्टा कर दें और वह ऊपर आ जाएगी। लेकिन अंतरिक्ष में ऐसा नहीं होता।’’ शुक्ला को एक थैली से सूक्ष्म शैवाल प्रयोग के नमूने एकत्र करने थे और उन्हें एक छोटे से बॉक्स में भरकर फ्रीजर में रखना था, ताकि उन्हें पृथ्वी पर वापस लाया जा सके।
शुभांशु शुक्ला ने कहा, ‘‘जब बुलबुला होता है, तो एकमात्र चीज जो काम करती है, वह यह है कि आपको खुद सेंट्रीफ्यूज बनना पड़ता है।’’ उन्होंने कहा कि उन्हें प्रत्येक नमूने के लिए सेंट्रीफ्यूजिंग के चार-पांच चक्कर लगाकर 36 नमूने एकत्र करने पड़े। शुक्ला ने बताया, ‘‘तो, बिना हवा के नमूने निकालने के लिए मुझे इतने चक्कर लगाने पड़े। नमूने निकालने और उन्हें छोटे डिब्बों में रखने के लिए मुझे तीन घंटे तक लगातार चक्कर लगाना पड़ा।’
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