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‘सिल्क रूट’ ने बदल दी महाराष्ट्र के रूई गांव की तस्वीर और किसानों की तकदीर


औरंगाबाद । ‘सिल्क रूट’ (‘Silk Route’) ने महाराष्ट्र (Maharashtra) के रूई गांव (Cotton Village) की तस्वीर (Picture) और किसानों की तकदीर (Fate of Farmers) दोनों बदल दी है (Both have Changed) । महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एक गांव है रूई। कभी सूखे की मार झेल रहे गांव में गरीबी थी। लोग काम की तलाश में गांव छोड़कर शहर जाते थे। भरपेट खाने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। इस गांव का नाम भले ही रूई है, लेकिन इसका रूई से नहीं, बल्कि सिल्क से गहरा संबंध हैं। आज सिल्क के चलते इस गांव में खुशहाली और संपन्नता है।


6000 लोगों की जनसंख्या वाले इस गांव में कभी तूर, अनाज और कॉटन की खेती होती थी। पानी की कमी और सूखे के चलते किसानों की खेती खराब हो जाती थी। इतना अनाज भी नहीं हो पाता था कि वे ठीक से अपना और परिवार का पेट भर सकें। गांव की तकदीर यहां के 37 वर्षीय सरपंच कालीदास नावले ने बदल दी। सरपंच कालीदास ने गांव को बेहतर आजीविका देने की पहल की। उन्होंने गांव में शहतूत उगाने और रेशम उत्पादन की ओर रुख किया।

कालिदास नावले ने गांव की 800 एकड़ जमीन एक में मिलाकर शहतूत की खेती शुरू की। यह देश में सबसे बड़ा एरिया है जहां एकसाथ फसल हो रही है। यहां पर कोकून से हर महीने 2.2 करोड़ रुपये की आमदनी हो रही है। कालिदास नावले ने बताया कि इस सफलता की कहानी चार साल पहले शुरू हुई। सेरीकल्चर की ओर रुख बेहद हताशा में आया जब अत्यधिक पानी की कमी ने कई ग्रामीणों को बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया।

सरपंच ने बताया कि आठ साल पहले उन्होंने सात और किसानों के साथ मिलकर ट्रेनिंग ली और शहतूत उगाना शुरू किया। आज 300 लोग सिल्क उगाने का काम कर रहे हैं। कालिदास ने बताया कि उन्होंने सेरिकल्चर खेती के बारे में एक मैगजीन में पढ़ा था। उसके बाद वह गांव के आसपास सेरिकल्चर कृषि करने वाले किसानों से मिले। वह उनके भाई और तीन अन्य दोस्तों ने उनके प्रॉजेक्ट देखे और इस प्रॉजेक्ट को अपने गांव रूई में लाने का फैसला किया।

नावले ने बताया कि हर एक एकड़ में शहतूत की खेती करने पर तीन लाख रुपये का खर्च आता है। इन तीन लाख रुपये में महाराष्ट्र सरकार 2.2 लाख रुपये की सब्सिडी देती है। एक साल में एक एकड़ खेत से 10 कुंतल कोकून होता है। हर कुंतल पर वह 55,000 से 85000 रुपये तक कमाते हैं। पूरे देश के सिल्क कारोबारी और एक्सपोटर्स रूई का कच्चा सिल्क चाहते हैं।

गांव के एक किसान सुदाम पवार ने बेंगलुरु में जाकर इसके बारे में सीखा। सुदाम ने बताया कि उन्होंने हैचिंग का सेंटर शुरू करने से पहले हैचिंग की टिप्स और तकनीक सीखी। उन्होंने बताया कि हमारा सक्सेस रेट 90 पर्सेंट है। लगभग 20 वर्कर्स काम करते हैं। हर वर्कर को रोज 500 रुपये दिए जाते हैं। वह एक लाख अंडों की हैचिंग के लिए 300 रुपये चार्ज करते हैं। इससे उन्हें हर महीने 1.2 लाख रुपये कमाई होती है।

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