
नई दिल्ली । मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)के टेकनपुर (Teekampur)में बीएसएफ के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट(training institute) में ड्रोन वॉरफेयर स्कूल(Drone warfare school) शुरू हुआ है। पांच हफ्तों में 47 जवान यहां से ‘ड्रोन कमांडो’ बनकर निकलेंगे। यह ऑपरेशन सिंदूर के बाद ड्रोन को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने की बीएसएफ की योजना का हिस्सा है।
इस स्कूल में जवानों को ड्रोन उड़ाने, निगरानी करने, हमला करने और दुश्मन के ड्रोन्स का मुकाबला करने की ट्रेनिंग दी जा रही है। बीएसएफ अकादमी के एडीजी शमशेर सिंह ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने दिखाया है कि अब जंग टैंकों और बंदूकों से नहीं, बल्कि हवा में ड्रोन्स से लड़ी जा रही है। वो चाहते हैं कि जवान ड्रोन को वैसा ही हथियार बनाएं जैसे वो इंसास राइफल को 15 सेकंड में खोलकर जोड़ लेते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस ड्रोन वॉरफेयर स्कूल में दो मुख्य कोर्स हैं- जवानों के लिए ड्रोन कमांडो और अफसरों के लिए ड्रोन वॉरियर्स। स्कूल में तीन विंग हैं जो कि फ्लाइंग व पायलटिंग, रणनीति और रिसर्च एंड डेवलपमेंट हैं। शमशेर सिंह ने बताया कि जवान ड्रोन को हथियार की तरह ले जा सकेंगे। वे इससे निगरानी, गश्त, दुश्मन के ड्रोन को मार गिराने और जरूरत पड़ने पर बम गिराने का काम करेंगे। स्कूल के ट्रेनिंग हेड ब्रिगेडियर रूपिंदर सिंह ने कहा कि कोर्स में उड़ान, तकनीकी और रणनीति की ट्रेनिंग शामिल है। यह स्कूल ट्रेनर्स भी तैयार कर रहा है, जो फील्ड यूनिट्स में जाकर ड्रोन टेक्नोलॉजी सिखाएंगे।
बनाए जा रहे खास तरह के ड्रोन
बीएसएफ ड्रोन को बड़े स्तर पर शामिल करने के लिए कई कदम उठा रही है। दिल्ली और कानपुर के आईआईटी के साथ मिलकर BSF अपने ड्रोन बना रही है, जिनमें हथियार, बम और हाई-रिजॉल्यूशन कैमरे लगाए जाएंगे। टेकनपुर में रुस्तम जी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में ड्रोन टेक्नोलॉजी लैब बनाया गया है। यहां भारत-पाकिस्तान सीमा पर मार गिराए गए ड्रोन्स से मिले डेटा और फॉरेंसिक्स पर काम किया जा रहा है।
बीएसएफ का पुलिस टेक्नोलॉजी इनोवेशन सेंटर भी ड्रोन को हमलावर ऑपरेशन में इस्तेमाल करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। सीनियर बीएसएफ अफसर ने बताया कि वो तेज गति वाले ड्रोन पर काम कर रहे हैं, जिनमें बंदूकें लगाई जा सकें। ऐसे ड्रोन बनाए जा रहे हैं जो 500 किमी तक निगरानी कर सकें, कांटेदार तारों तक की तस्वीरें ले सकें और 200 किलो तक वजन उठा सकें। ये सारी तकनीक सीमा पर गश्त व रक्षा को और मजबूत करेगी।
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