
डेस्क: अमेरिका (America) और चीन (China) के बीच तनातनी कोई नई बात नहीं है. अमेरिका अक्सर चीन पर मानवाधिकार उल्लंघन (Human Rights Violations) और जासूसी तकनीक (Spying Techniques) के गलत इस्तेमाल को लेकर सख्त रहा है. मगर ये सख्ती महज दिखावा भर है. न्यूज एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (AP) की नई जांच में खुलासा हुआ है कि अमेरिकी सरकार खुद उन कंपनियों की मदद करती रही है जो चीन को निगरानी तकनीक बेच रही थीं.
ये वही तकनीक है जिससे चीन अपने नागरिकों की हर हरकत पर नजर रखता है. रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब आज गुरुवार को साउथ कोरिया में छह साल बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई है. इस समय अमेरिकी तकनीक की चीन को बिक्री अमेरिका के लिए सबसे जटिल और विवादास्पद मुद्दों में से एक बन गई है.
एपी की यह जांच कई सरकारी दस्तावेजों और गवाही पर आधारित है. इसके लिए कई ओपन रिकॉर्ड रिक्वेस्ट की गईं, सैकड़ों पन्नों की संसदीय गवाही और लॉबिंग से जुड़ी जानकारियों का अध्ययन किया गया. साथ ही चीन और अमेरिका के मौजूदा और पूर्व अधिकारी, कारोबारी और राजनेताओं से कई इंटरव्यू भी किए गए. पिछले पांच अमेरिकी प्रशासन- रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों ने ऐसी डील्स को मंजूरी दीं जिनसे चीन की पुलिस और सरकारी एजेंसियों को अमेरिकी तकनीक का फायदा मिला.
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल सितंबर से अब तक अमेरिकी सांसदों ने चार बार कोशिश की कि चीन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) चिप्स किराए पर देने जैसी चालों को रोका जाए. दरअसल, चीन सीधे चिप्स नहीं खरीद पा रहा है, इसलिए वह अमेरिकी क्लाउड सेवाओं के जरिए उन्हें किराए पर ले रहा है. इससे निर्यात प्रतिबंधों का असर खत्म हो गया है. लेकिन जैसे ही यह प्रस्ताव अमेरकी संसद कांग्रेस में आया, करीब 100 से अधिक लॉबिस्ट, बड़ी टेक कंपनियां और उनके संगठन सक्रिय हो गए. नतीजा यह हुआ कि हर बार बिल रद्द हो गया और यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका.
एपी की जांच के अनुसार, पिछले दो दशकों में अमेरिकी टेक और टेलीकॉम कंपनियों ने लॉबिंग पर सैकड़ों मिलियन डॉलर खर्च किए. इनका मकसद ऐसे कानूनों को रोकना था जो चीन के साथ उनके व्यापार को नुकसान पहुंचा सकते थे. रिपब्लिकन हों या डेमोक्रेट, कंपनियों का प्रभाव दोनों ही दलों पर गहराई से मौजूद है. AP की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका के अपने नियमों में इतनी कमियां हैं कि चीन को रोकना लगभग असंभव हो गया है. तीसरे पक्ष से खरीद, क्लाउड रेंटल और पुराने प्रतिबंधों में मौजूद खामियों की वजह से चीन ने सिर्फ 2024 में ही 20.7 अरब डॉलर के अमेरिकी चिपमेकिंग उपकरण खरीद लिए.
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