खरी-खरी

बाप का पाप बेटे की ऐसी मौत बन गया कि खौफ का कारवां लेकर चलने वाला दरिंदा चार कांधों के लिए तरस गया…

असद का लाश बनना जायज है…उस नापाक जिंदगी का हक छीनना माकूल था…वो हिमाकत की उस इंतहा पर पहुंच चुका था, जहां दानव पहुंचते हैं…उस मगरूर ने एक हंसते-खेलते परिवार से एक बेटे को छीन लिया…एक पत्नी को विधवा बना दिया… बच्चों को अनाथ कर दिया…उसे भी उसी अंजाम पर पहुंचाना, उसके परिवार का भी उसी दर्द से तारूफ कराना वक्त का इंसाफ है…अतीक जेल में सड़ रहा है…बेटा लाश बनकर पड़ा है…मां आंसू बहा रही है…जेल की सींखचों के डर से जनाजे तक में नहीं आ पा रही है…सारे भाई जेल की जहन्नूम भोग रहे हैं… परिवार के बाकी लोग खौफजदा होकर भाग रहे हैं…सामने मौत देखकर घबरा रहे हैं…जिस परिवार के आगे-पीछे रुतबे का कारवां हुआ करता था, उस परिवार के मरे पड़े दरिंदे के लिए चार कांधे भी नसीब नहीं हो रहे हैं… जिनके खौफ से धरती कांपती थी…आज वो लाश पर आंसू बहा रहे हैं… जिनके रुतबे और रौब के किस्से गलियों में शुमार होते थे…वो आज कीड़ों की तरह मारे जा रहे हैं…जो दौलत की दुनिया के बेताज बादशाह होते थे…वो फकीरों की तरह गिड़गिड़़ा रहे हैं…यह वही अतीक है, जो उत्तरप्रदेश की सियासत के अंग और अंश कहलाते थे…वो आज सियासत के ही पैरों तले रौंदे जा रहे हैं…लोग इसे सत्ता का कहर मान रहे हैं…राज्य के मुखिया योगी की माया जान रहे हैं, लेकिन हकीकत तो यह है कि यह वक्त का वो सितम है, जो हर अंधकार को रौंदना जानता है…जो हर नापाक हिमाकत का हिसाब चुकाता है…जो इंसान के गुरूर को इंतहा तक पहुंचाता है…फिर पैरों तले रौंदकर जमाने को बताता है कि जो जितना ऊंचा उड़ेगा, वो उतना नीचे गिरने का दर्द सहेगा… यही अतीक के साथ हुआ…चंद दिनों में अहंकार की सल्तनत सुपुर्द-ए-खाक हो गई…रुतबे की हैवानियत तक पहुंचे परिवार का पतन हो गया…पति के वजूद पर इठलाती पत्नी अपने पति को लानतें भेजती नजर आ रही है और बाप के पाप से पले बेटे की लाश पर बैठकर आंसू बहा रही है…क्या काम आई वो दौलत, जो लोगों के आंसुओं के बूते पर जमा की… लाशों को लांघकर जिन मीनारों को बनाया…उन्हें वक्त ने जमीन में मिलाया…जिन साथियों हिमायतियों और चाटुकारों ने हौसला बढ़ाया… आज उन्होंने भी नजरें फेरकर बदला हुआ किरदार निभाया… आज अतीक को अपना गुनाह नजर आ रहा है… बेटे की मौत का जिम्मेदार खुद को बता रहा है … अतीक यदि गुनाह कर रहा था तो उसका परिवार उसके गुनाह के साए में पल रहा था…यदि अतीक सज्जनता, सभ्यता से लूट रहा था तो उसका परिवार दुर्जन बनकर कहर ढा रहा था…अतीक यदि पाप की कमाई से घर भर रहा था तो उसका परिवार उसी कमाई से ऐश्वर्य और वैभव की जिंदगी बिता रहा था… वक्त का यह सबक है, दूसरों के हक पर डाका डालना जुर्म कहलाता है… दौलत से हासिल बर्बरता जुल्म कहलाती है और पाप की कमाई में भागीदारी न केवल सभ्यता को खा जाती है, बल्कि परिवार को जालिम बनाती है…दौलत बटोरने और परिवार के लिए वैभव और ऐश्वर्य जुटाने की लालसा में इंसान इस कदर खो जाता है कि पाप का पहाड़ खड़ा कर जाता है और उसी पहाड़ पर खड़े परिवार को जमाना बौना नजर आता है…फिर जब घड़ा भर जाता है…पहाड़ ज्यादा ऊंचा हो जाता है तो वक्त की सुनामी पहाड़ को मिट्टी में मिला देती है…जो जितना ऊपर होता है, वो उतना नीचे गिरता है…कभी वो विकास दुबे नजर आता है…कभी अतीक की तरह कांपता है…कभी असद बनकर पुलिस की गोलियां खाता है…कभी उसकी मां शाहिस्ता को खून के आंसू रुलाता है और समझाता है कि मैं वक्त हूं… बेवक्त आता हूं…सबका हिसाब कर जाता हूं… हर वो पिता गुनहगार है, जो बेटे को पाप की कमाई से पालता है…वो पति गुनहगार है, जो पत्नी की ख्वाहिशों के लिए दूसरों के अधिकारों का कत्ल कर डालता है… वो परिवार गुनहगार है, जो पाप की कमाई पर अहंकार की खेती करता है…वो अतीक नहीं प्रतीक है वक्त के इंसाफ का…वो याद है उस सबक की कि जैसा करोगे वैसा भरोगे…दूसरों का कत्ल करोगे…अहंकार की राह पर चलोगे…जुल्म और ज्यादतियों की इंतहा करोगे तो कुत्ते की मौत मरोगे…

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