
इलाहाबाद: Marriage: भारत में शादी-विवाह (Wedding Marriage) को एक पवित्र बंधन माना जाता है. ऐसे में कुछ संस्थाएं लोगों का फर्जी (Bogus) शादी-विवाह कर देती है. उस विवाह का कोई असली दस्तावेज भी नहीं होता है. इसे लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश सरकार (UP Goverment) को राज्य में विवाह पंजीकरण में शामिल ‘फर्जी’ आर्य समाज (Arya Samaj) समितियों की जांच शुरू करने का निर्देश दिया है. जारी आदेश में कहा गया है कि इस बात की जांच करे कि कैसे फर्जी आर्य समाज समितियां जो दूल्हा और दुल्हन की उम्र की पुष्टि किए बिना और राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून (Anti-conversion Law) का उल्लंघन करते हुए विवाह कराती हैं पूरे राज्य में फल-फूल रही हैं.
एक मुस्लिम व्यक्ति पर नाबालिग हिंदू लड़की का अपहरण, जबरन शादी और उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाने वाला एक मामला हाईकोर्ट में पहुंचा. मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि राज्य में आर्य समाज द्वारा संपन्न विवाहों सहित कई विवाह, उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून और विवाह पंजीकरण नियमों के तहत अनिवार्य प्रक्रियाओं को दरकिनार कर दिया जाता है. आरोपी ने आर्य समाज मंदिर में शादी करने का दावा किया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश उन न्यायिक आदेशों की श्रृंखला में नवीनतम हैं जिनमें आर्य समाज द्वारा संपन्न विवाहों की जांच का आदेश दिया गया है. ऐसे विवाहों को 88 साल पुराने आर्य विवाह मान्यता अधिनियम के तहत कानूनी मान्यता प्राप्त है.
आर्य समाज की औपचारिक स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में एक हिंदू पुनरुत्थानवादी आंदोलन के रूप में की थी. 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसे उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान सहित) में प्रमुखता मिली. अन्य बातों के अलावा आर्य समाज ने अन्य धर्मों या विचारधाराओं के लोगों को वैदिक, एकेश्वरवादी हिंदू धर्म के अपने संस्करण में परिवर्तित करने का पहला प्रयास किया. जिसे उन्होंने ‘शुद्धि’ (शुद्धिकरण) नामक प्रक्रिया के माध्यम से किया. अंतरजातीय और यहां तक कि अंतर्धार्मिक विवाहों के प्रति प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाकर इसने इसे सुगम बनाया. वास्तव में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के लागू होने तक आर्य समाज ही हिंदुओं के लिए जाति या धर्म से बाहर विवाह करने और अपनी जाति बनाए रखने का एकमात्र तरीका था.
1937 में आर्य विवाह मान्यता अधिनियम पारित किया गया ताकि ‘संदेह दूर’ किया जा सके और आर्य समाज विवाहों को मान्यता दी जा सके. ये विवाह विशिष्ट हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार होते हैं. लेकिन इसके लिए केवल वर-वधू की विवाह योग्य आयु और खुद को आर्य समाजी घोषित करना आवश्यक होता है. चाहे उनकी जाति या धर्म कुछ भी हो. 1937 के कानून में कहा गया है: “हिंदू कानून के किसी भी प्रावधान, प्रथा या प्रथा के विपरीत होने के बावजूद, इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में दो व्यक्तियों के बीच हुआ कोई भी विवाह. जो विवाह के समय आर्य समाजी थे, केवल इस तथ्य के कारण अमान्य नहीं होगा या अमान्य नहीं माना जाएगा. कि पक्ष किसी भी समय हिंदुओं की विभिन्न जातियों या विभिन्न उपजातियों से संबंधित थे. या विवाह से पहले किसी भी समय पक्षों में से कोई एक या दोनों पक्ष हिंदू धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म के थे.”
इलाहाबाद हाईकोर्ट और मध्य प्रदेश हाईकोर्टने उन मामलों की पुलिस जांच का आदेश दिया है. जहां इन संगठनों ने कथित तौर पर जाली दस्तावेजों का उपयोग करके नाबालिगों का विवाह कराया. साथ ही इन राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों द्वारा अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किए बिना धर्मांतरण की सुविधा प्रदान की. 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि आर्य समाज को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है, जबकि दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष एक आर्य समाज मंदिर को यह सुनिश्चित करने के लिए सत्यापित गवाहों का उपयोग करने का निर्देश दिया था कि मंदिर द्वारा संपन्न विवाह वास्तविक थे. न्यायमूर्ति कुमार ने अपने आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मई महीने के एक ऐसे ही फैसले का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि मुस्लिम व्यक्ति और हिंदू लड़की के बीच विवाह अमान्य होगा. क्योंकि लड़की नाबालिग थी और व्यक्ति ने उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून के अनुसार धर्म परिवर्तन नहीं किया था.
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